गरुड़ पुराण : जानिए क्या महिलाओं को सनातन धर्म में है श्राद्ध और तर्पण का अधिकार

सनातन धर्म में श्राद्ध और तर्पण करने का बड़ा महत्व है। किसी जातक की मृत्यु के बाद अगर उसका श्राद्ध न किया जाये तो उसकी आत्मा को शांति नहीं मिलती है। हालांकि आम लोगों के बीच यह मान्यता है कि श्राद्ध सिर्फ पुरुष ही कर सकते हैं क्योंकि यही शास्त्र संगत है लेकिन यह धारणा पूरी तरह से सही नहीं है। गरुड़ पुराण में कुछ विशेष परिस्थितियाँ बताई गई हैं जब एक महिला भी किसी मृतक का श्राद्ध कर सकती है। न सिर्फ गरुड़ पुराण बल्कि रामायण में भी एक जगह स्त्री द्वारा श्राद्ध करने का जिक्र मिलता है। आज इस लेख में हम आपको ये सारी बातें बताने वाले हैं।

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क्या कहता है गरुड़ पुराण?

गरुड़ पुराण सनातन धर्म में 18 पुराणों में से एक है। सनातन धर्म में इस पुराण को विशेष तौर पर तब पढ़ा जाता है जब घर में किसी की मृत्यु हो जाती है। गरुड़ पुराण के 11, 12, 13 और 14 संख्या श्लोक में इस बात का स्पष्ट जिक्र है कि सनातन धर्म में कौन श्राद्ध कर सकता है। श्लोक है :

पुत्राभावे वधु कूर्यात, भार्याभावे च सोदन:। शिष्‍यों वा ब्राह्म्‍ण: सपिण्‍डो वा समाचरेत।। ज्‍येष्‍ठस्‍य वा कनिष्‍ठस्‍य भ्रातृ: पुत्रश्‍च: पौत्रके। श्राध्‍यामात्रदिकम कार्य पुत्रहीनेत खग:।

अर्थात :

बड़े या छोटे बेटे या बेटी के अभाव में पत्नी या बहू भी श्राद्ध कर सकती है। यदि पत्नी जीवित नहीं हो तो सगा भाई, भतीजा, भांजा भी श्राद्ध कर सकता है। अगर इन सब में से कोई भी न हो तो कोई शिष्य, मित्र या रिश्तेदार भी श्राद्ध कर सकता है। 

गरुड़ पुराण के इस श्लोक के मुताबिक महिलाओं के पास भी श्राद्ध व तर्पण करने का अधिकार है। हालांकि उसके लिए परिस्थितियाँ पहले से ही तय हैं। हालांकि यदि पुरुष है और श्राद्ध व तर्पण करने में सक्षम है तो सबसे पहले वरीयता उसे ही दी जाएगी।

माता सीता ने किया था अपने श्वसुर का श्राद्ध

वाल्मीकि रामायण के अनुसार वनवास के दौरान जब प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण जी और माता सीता पितृपक्ष के दौरान राजा दशरथ का पिंडदान करने के लिए गया धाम पहुँचे तब जरूरी सामान लाने के लिए प्रभु राम और लक्ष्मण जी नगर की ओर गए थे। तभी वहां आकाशवाणी हुई कि पिंडदान का शुभ समय निकला जा रहा है। माता सीता को स्वयं राजा दशरथ की आत्मा ने दर्शन दिये और उनसे पिंडदान करने को कहा।

अपने ससुर के आदेश का पालन करते हुए माता सीता ने तब फालगु नदी, केतकी के फूल, गाय और वट वृक्ष को साक्षी मान कर बालू की पिंडी बना कर राजा दशरथ का पिंडदान किया था।

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