वास्तु शास्त्र हमें बताता है कि हमें अपने घर को किस तरह से रखना चाहिए ताकि घर में सुख-शांति का माहौल बना रहे और गलत जगहों पर गलत समान से निकालने वाली नकारात्मक ऊर्जा हमारे परिवार को किसी भी तरह का कोई नुकसान न पहुंचाए।
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जाहीर है कि घर के जरूरत के सामानों में शीशा भी एक अभिन्न अंग जैसा है। हम न जाने दिन में कितनी बार शीशा देखते हैं और न जाने कितनी बार उसके सामने से बिना उस पर गौर किए उसके सामने से यूं ही निकल जाते हैं। लेकिन शीशे से जुड़े भी वास्तु शास्त्र में कई नियम हैं जिनका अगर पालन नहीं किया जाये तो यह आपके परिवार और आपको नुकसान पहुंचाने लगता है। ऐसे में आज हम आपको इस लेख में शीशे से जुड़े वास्तु शास्त्र के कुछ महत्वपूर्ण नियम बताएँगे जिसे अपना कर आप अपने घर में फैली नकारात्मक ऊर्जा को खत्म कर सकते हैं।
शीशे से जुड़े वास्तु शास्त्र के नियम
पहला नियम : कई लोग अपने घर में टूटा हुआ शीशा रखते हैं या फिर ऐसा शीशा रखते हैं जिसके किनारे टूट चुके हैं लेकिन उसका मध्य हिस्सा सुरक्षित है। ऐसे किसी भी शीशे को जितनी जल्दी हो घर से बाहर करें क्योंकि वास्तु शास्त्र ऐसे शीशे को घर में रखने से मना करता है। इन शीशे से निकलने वाली नकारात्मक ऊर्जा आपके जीवन में दुर्भाग्य और निर्धनता लेकर आता है। यहाँ तक की रसोई में मौजूद टूटे काँच के बर्तन भी बेहद नकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। ऐसे बर्तनों को भी जितनी जल्दी हो सके घर से बाहर कर देना चाहिए।
दूसरा नियम : घर में यदि कोई ऐसा शीशा हो जिसमें ढंग से चेहरा न दिखाई देता हो या फिर कहें तो धुंधली छवि दिखती हो तो ऐसे शीशे को भी बदल दें। ऐसे शीशे में शक्ल देखने से समाज में आपकी प्रतिष्ठा कम होती है।
तीसरा नियम : घर में कभी भी दक्षिण और पश्चिम दिशा में शीशा नहीं लगाना चाहिए। इससे घर में कलह शुरू हो जाती है। घर के स्वामी को मानसिक तनाव रहने लगता है। घर में शीशा लगाने की सही दिशा उत्तर या पूर्व मानी जाती है।
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चौथा नियम : घर में लगाए गए शीशे का आकार हमेशा चौकोर होना चाहिए। अन्य किसी भी प्रकार का शीशा वास्तु के नियमों के मुताबिक शुभ फल नहीं देता है।
पांचवा नियम : किसी भी कमरे में दो दीवारों के ठीक आमने सामने शीशा नहीं लगाना चाहिए। इससे परिवार के सदस्यों में अवसाद व चिड़चिड़ापन जैसी समस्या पैदा होने लगती है। वहीं अलमाड़ी या तिजोरी के सामने शेस्शा लगाने से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
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