सावन के इस पावन महीने में काँवड़ियों की भीड़ हरिद्वार, प्रयाग, काशी, उज्जैन और नासिक में उमड़ी हुई है। इन दिनों काँवड़िए जोगी बनकर भोले के रंग में सराबोर हैं। काँवड़ यात्रा के दौरान काँवड़िये अपने कांधे में काँवड़ धरकर समूह में एक साथ चलते हैं। कहा जाता है कि इन दिनों काँवड़ उठाने वाले भक्तों को पुण्य और मनवाँछित फलों की प्राप्ति होती है। लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि सबसे पहले काँवर किसने उठाई थी। या फिर इस बात यूँ कहें कि सबसे पहला काँवड़ियाँ कौन था? आज हम इस ख़बर के माध्यम से काँवड़ से जुड़ी हुई कुछ रोचक बात बताएंगे।
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कौन था पहला काँवड़
किसी पावन तीर्थ से कंधे पर गंगाजल लेकर आने और अपने किसी नजदीक के शिव मंदिर अथवा ज्योतिर्लिंग पर चढ़ाने को काँवड़ यात्रा कहलाती है। मान्यता के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि सबसे पहला काँवड़ियाँ रावण था। रावण को शिव का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है। कहते हैं रावण अपने आराध्य बाबा बैद्यनाथ से मिलने के लिए पैदल ही काँटो से भरे मार्ग की यात्रा पर चल पड़ा था।
वहीं एक मान्यता यह भी है कि भगवान राम पहले काँवड़िये थे, जो मीलों यात्रा कर रामेश्वरम पहुंचे और वहां शिवलिंग की पूजा-अराधना की। सत्य चाहे जो भी हो, हिंदू धर्म में धार्मिक यात्राओं का बहुत महत्व है। सभी माह में श्रेष्ठ श्रावण में भी कांवड़िए दूर-दूर से यात्राएं पूरी कर भोले शंकर का गंगा जल से अभिषेक करते हैं।
काँवड़ से जुड़े नियम
काँवड़ यात्रा के कई नियम भी हैं, जिन्हें हर काँवड़िए को पूरा करना आवश्यक होता है तभी उनकी यात्रा सफल मानी जाती है। जैसे कि यात्रा में नशा, माँस, मदिरा और तामसिक भोजन वर्जित है। बिना स्नान किए काँवड़ को हाथ नहीं लगा सकते, चमड़े की वस्तु का स्पर्श नहीं करते, वाहन का प्रयोग, चारपाई का उपयोग, वृक्ष के नीचे भी कावड़ नहीं रखना, कावड़ को अपने सिर के ऊपर से लेकर जाना भी वर्जित माना गया है।
काँवड़ यात्रा से मिलता है अश्वमेघ यज्ञ के समान फल
काँवड़ यात्रा से अश्वमेघ यज्ञ करने जितना मिलता है। कहा जाता है कि जो भी शिवभक्त सच्चे मन से सावन में कांधे पर कांवड़ रखकर बोल बम का नारा लगाते हुए पैदल यात्रा करता है, उसे हर कदम के साथ एक अश्वमेघ यज्ञ करने जितना फल प्राप्त होता है। उसके सभी पापों का अंत हो जाता है। उसको जीवन में कभी किसी चीज की कमी नहीं रहती है। मृत्यु के बाद उसे शिवलोक की प्राप्ति होती है।