महाभारत की एक बहुत ही लोकप्रिय कथा है। अज्ञातवास के दौरान जब पांडव एक जगह से दूसरी जगह भटक रहे थे तब एक समय ऐसा आया जब उन्हें बहुत तेज प्यास लगी लेकिन आसपास जल का कोई स्त्रोत नजर नहीं आ रहा था। तब युधिष्ठिर ने अपने भाइयों से जल का प्रबंध करने को कहा। जिसके फलस्वरूप सभी भाई यानी कि अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव जल का प्रबंध करने के लिए निकल पड़े। लेकिन काफी समय बीत जाने के बाद भी जब उनमें से कोई भी वापस नहीं आया तो युधिष्ठिर को अपने भाइयों की चिंता हुई और वे भी उनकी तलाश में निकले। अपने भाइयों को ढूंढते-ढूंढते युधिष्ठिर एक कुंड के पास पहुंचे जहां उनके चारों भाई मूर्छित अवस्था में पड़े थे। दरअसल उस कुंड पर एक यक्ष का अधिकार था और जिसको भी उस कुंड से जल लेना होता, उसे यक्ष के प्रश्नों का सही उत्तर देना होता था। लेकिन युधिष्ठिर के चारों भाइयों ने यक्ष की आवाज को अनसुना करते हुए जल लेने की कोशिश की और वे मूर्छित हो गए। इसके बाद युधिष्ठिर ने यक्ष के सारे सवालों का सही जवाब दिया और अपने भाइयों को वहां से सही-सलामत ले जाने में कामयाब हुए। यक्ष ने ही तब युधिष्ठिर को धर्मराज की उपाधि दी थी।
आप में से कइयों ने इस कथा को सुन रखा होगा। लेकिन अगर हम आपसे पूछें कि क्या आप जानते हैं कि वो जगह अब कहाँ स्थित है जहां यह घटना घटी थी तो शायद अधिकतर लोगों को इसका जवाब नहीं पता हो। लेकिन हम आपको बता दें कि महाभारत काल की यह लोकप्रिय घटना जहां घटी थी वह जगह वर्तमान समय में भी मौजूद है। आज हम इस लेख में आपको उसी जगह की जानकारी देने वाले हैं।
कहाँ पूछे थे यक्ष ने युधिष्ठिर से प्रश्न?
यक्ष प्रश्न की घटना जहां घटी थी वह जगह हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में मौजूद है और इसे वर्तमान समय में कटास राज मंदिर के नाम से जाना जाता है। पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के उत्तरी भाग में चकवाल जिला है। इसी जिले के पोठोहर पहाड़ी क्षेत्र में नमक कोह नामक पर्वत श्रृंख्ला में यह मंदिर मौजूद है। इस जगह पर मंदिरों की श्रृंखला है जो कि 10वीं शताब्दी के बताये जाते हैं। मान्यता है कि ये सारे मंदिर भगवान श्री कृष्ण ने बनवाये थे और यहाँ मौजूद प्राचीन शिव मंदिर में शिवलिंग की स्थापना भी श्री कृष्ण ने स्वयं अपने हाथों से की थी।
इस जगह पर आज भी एक सरोवर मौजूद है जिसके बारे में कहा जाता है कि यक्ष ने अपने सारे सवाल इसी सरोवर के किनारे पांडवों से किए थे। इस सरोवर को लेकर भी एक मान्यता है। मान्यता यह कि जब माता सती प्रजापति दक्ष के यज्ञ कुंड में सती हुई थीं तब भगवान शिव की आँखों से आंसू छलक कर धरती पर इसी जगह गिरे थे जिससे इस सरोवर का निर्माण हुआ। मंदिर के आसपास खुदाई के दौरान 6000 से 7000 ईसा पूर्व के अवशेष बरामद हुए हैं जोकि इस मंदिर के बेहद प्राचीन होने की पुष्टि करते हैं। हालांकि यह मंदिर अब जीर्णशीर्ण अवस्था में है जिसको लेकर हाल के कुछ वर्षों में पाकिस्तान कोर्ट ने चिंता भी जाहिर की थी। आपको बताते चलें कि यह जगह सिख गुरु नानक देव जी को भी काफी प्रिय था और यहाँ पर सम्राट अशोक के द्वारा बनवाया गया एक स्तूप भी मौजूद है।
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