हिंदू कैलेंडर के अनुसार पूर्णिमा तिथि या कार्तिक शुक्ल पक्ष को बेहद ही शुभ नया चंद्र दिवस माना जाता है। इस दिन हम भगवान शिव की असुर त्रिपुरासुर पर विजय का जश्न मनाते हैं और साथ ही इसी दिन भगवान कार्तिकेय का जन्म दिन भी पड़ता है इसीलिए इस दिन को त्रिपुर पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा का यह दिन बेहद ही शुभ होता है और इस दिन आप अपने पूर्व जन्म के भी सभी पाप आदि से छुटकारा पाकर धर्म-कर्म, अर्थ, और मोक्ष के मार्ग की ओर प्रगति कर सकते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास आठवां चंद्र मास होता है। कार्तिक पूर्णिमा वह दिन होता है जब पूर्णिमा कार्तिक माह के दौरान पड़ती है। इस दिन से पांच दिवसीय त्योहार प्रारंभ हो जाते हैं। त्योहारों की शुरुआत होती है देवउठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी के दिन से। कार्तिक पूर्णिमा का दिन हिंदू समुदाय के लिए बेहद महत्वपूर्ण दिन माना गया है क्योंकि इस दिन कई त्यौहार और अनुष्ठानों का समापन होता है।
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कार्तिक पूर्णिमा 2021
19 नवंबर, 2021 (शुक्रवार)
कार्तिक पूर्णिमा व्रत मुहूर्त
नवंबर 18, 2021 को 12:02:50 से पूर्णिमा आरम्भ
नवंबर 19, 2021 को 14:29:33 पर पूर्णिमा समाप्त
(यह मुहूर्त दिल्ली के लिए मान्य है. अपने शहर के अनुसार शुभ मुहूर्त जानने के लिए यहाँ क्लिक करें)
कार्तिक पूर्णिमा के पांच दिवसीय उत्सव निम्नलिखित हैं
पहला उत्सव है तुलसी विवाह: हिंदू पंचांग और शास्त्रों के अनुसार कार्तिक माह में एकादशी और कार्तिक पूर्णिमा के बीच तुलसी विवाह का पर्व मनाया जाता है। इस दिन लोग भगवान शालिग्राम के साथ तुलसी के विवाह की रस्म करवाते हैं। बता दे भगवान शालिग्राम भगवान विष्णु का प्रतिनिधित्व करते हैं।
दूसरा उत्सव है भीष्म पंचक: यह व्रत देवउठनी एकादशी से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा के दिन समाप्त होता है। माना जाता है कि कार्तिक माह के अंतिम 5 दिनों के दौरान भीष्म पंचक व्रत करने वाले लोगों को अपने जीवन में तमाम तरह के लाभ और पुण्य प्राप्त होते हैं। इस दिन को विष्णु पंचक भी कहा जाता है और इस दिन का बेहद ही महत्व बताया गया है।
तीसरा उत्सव है वैकुंठ चतुर्दशी: बैकुंठ चतुर्दशी की पूजा एक ऐसी पूजा है जो कार्तिक पूर्णिमा के एक दिन पहले की जाती है। इस दिन भगवान विष्णु के भक्त व्रत करते हैं। इस दिन शिव मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना में भगवान शिव के साथ भगवान विष्णु की पूजा का विधान बताया गया है। बैकुंठ चतुर्दशी के इस दिन को बेहद ही महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन बहुत से लोग वाराणसी में मणिकर्णिका घाट पर पवित्र गंगा नदी में गंगा स्नान करते हैं। यह स्नान सूर्योदय से पहले किया जाता है।
चौथा उत्सव होता है देव दिवाली: इस दिन को भगवानों के दिवाली के नाम से भी जाना जाता है और हिंदू शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव ने राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया था। भगवान शिव की इस जीत और त्रिपुरासुर असुर की हार से देवताओं ने प्रफुल्लित होकर मंदिरों में मिट्टी के दीए जलाए थे और तभी से कार्तिक पूर्णिमा को देव दिवाली के रूप में मनाए जाने की परंपरा की शुरुआत हुई।
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कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
हिंदू धार्मिक मान्यताओं में कार्तिक पूर्णिमा का बेहद ही धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व बताया गया है। मान्यता है कि इस दिन भक्त भगवान विष्णु की पूजा कर कार्तिक स्नान करें तो उन्हें भाग्य और सुख समृद्धि का वरदान प्राप्त होता है। इसके अलावा कार्तिक पूर्णिमा का यह शुभ दिन किसी भी तरह के शुभ काम और मांगलिक काम को करने के लिए बेहद ही पवित्र दिन माना गया है क्योंकि इस दिन किए गए कार्य से व्यक्ति को सार्थक परिणाम, सुख और आनंद प्राप्त होता है। बहुत से लोग इस बात को भी मानते हैं कि कार्तिक माह में कार्तिक स्नान करने से सौ अश्वमेधा यज्ञ के बराबर फल की प्राप्ति होती है।
कार्तिक पूर्णिमा व्रत
इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा व्रत 19 नवंबर के दिन किया जाएगा। कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु के लिए व्रत किया जाता है।
- व्रत करने वाले लोग इस दिन जल्दी उठने के बाद पवित्र स्नान करते हैं।
- उसके बाद कार्तिक पूर्णिमा व्रत की कथा पढ़ते हैं। इस कथा में इस कहानी का वर्णन है कि कैसे भगवान शिव ने राक्षस त्रिपुरासुर को पराजित किया था।
कार्तिक पूर्णिमा वृंदा की जयंती के रूप में मनाई जाती है जो तुलसी के पौधे का ही एक व्यक्तित्व माना जाता है। इस दिन को भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है। कार्तिक माह के अंतिम 5 दिनों के दौरान श्रद्धालु कार्तिक पूर्णिमा का व्रत करते हैं जिसमें वह दिन में केवल एक बार भोजन करते हैं जिसे हबिषा के नाम से जाना जाता है। कार्तिक माह में यह 5 दिन सबसे पवित्र और पावन माने गए हैं।
कार्तिक पूर्णिमा व्रत के नियम
- श्रद्धालुओं को ब्रम्हचर्य का पालन करना चाहिए।
- सुबह जल्दी उठना चाहिए।
- जो लोग गंगा नदी के आसपास रहते हैं उन्हें अपने पिछले जन्म के पाप से छुटकारा पाने के लिए गंगा के पवित्र जल में डुबकी अवश्य लगानी चाहिए।
- हालाँकि जिन लोगों के पास गंगा नदी में स्नान करने की सुविधा नहीं है वह अपने स्नान के पानी में यदि कुछ बूंदे गंगाजल की मिला लें तो उन्हें उससे भी अनुकूल परिणाम प्राप्त होते हैं।
- नहाने के बाद साफ और नए कपड़े पहनें।
- सूर्य देव की पूजा करें और उन्हें जल अर्पित करें।
- किसी भी परिस्थिति में मांस, तंबाकू, और शराब का सेवन ना करें।
- जो लोग व्रत कर रहे हैं उन्हें अपने व्रत में गेहूं, मसूर, और चावल भूल से भी शामिल नहीं करना चाहिए।
- भगवान विष्णु और भगवान शिव से आशीर्वाद लें और उनके पवित्र मंत्रों का स्पष्ट उच्चारण पूर्वक जाप करें।
- इस दिन दान का विशेष महत्व बताया गया है। ऐसे में अपनी यथाशक्ति के अनुसार जरूरतमंद लोगों को दान पुण्य अवश्य करें।
कार्तिक पूर्णिमा पूजन विधि
- कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा करें।
- भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा करें।
- पूजा अर्चना प्रारंभ करने से पहले सबसे पहले प्रथम पूजनीय भगवान गणेश की पूजा करना ना भूलें। उसके बाद ही अनुष्ठान शुरू करें।
- लकड़ी के एक पटरी पर गंगाजल छिड़क कर उसे पवित्र करें और उसके बाद उस पर पीला या लाल रंग का साफ कपड़ा बिछा दें।
- भगवान गणेश, भगवान विष्णु, भगवान शिव, भगवान कार्तिकेय, की मूर्ति इस पटरे पर स्थापित करें।
- घी या फिर तेल का दीपक जलाएं।
- भगवान गणेश को जल अवश्य अर्पित करें।
- इसके बाद हल्दी, कुमकुम, चंदन, अक्षत, जनेऊ, और मौली पूजा में शामिल करें।
- सुगन्धित फूल, दूर्वा घास, दीपक, धूप और भोग भगवान को चढ़ाए।
- इसके बाद दो पान के पत्ते, दक्षिणा, सुपारी, और फल भगवान को अर्पित करें।
- भगवान गणेश से आशीर्वाद लें और अन्य सभी देवी देवताओं का भी आशीर्वाद लें।
- इस बात का विशेष ध्यान रखें कि गणेश भगवान को दूर्वा घास, भगवान विष्णु को तुलसी, भगवान शिव को बिल्वपत्र, भगवान कार्तिकेय को फूल या पंचामृत, भगवान शिव को कुमकुम चढ़ाएं।
- इस दिन की व्रत कथा पढ़ें। पूजा अर्चना करने के बाद आरती करें। इस तरह से आपकी पूजा का समापन हो जाएगा।
कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा
किंवदंतियों के अनुसार भगवान कार्तिकेय ने तारकाक्ष, कमलक्ष और विद्यानामली के पिता राक्षस तारकासुर का वध कर दिया था। जिसके बाद तारकासुर के तीनों बेटे अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए देवताओं के विरुद्ध खड़े हो गए थे। इसके लिए तीनों राक्षस भाइयों ने कठिन तपस्या की ताकि वे भगवान ब्रह्मा से अमरत्व का वरदान प्राप्त कर सकें और पूरे ब्रह्मांड पर राज कर सकें।
इन तीनों भाइयों ने कई वर्षों तक कठोर तपस्या की जिससे भगवान ब्रह्मा का ध्यान उनकी तरफ आखिरकार चला ही गया। हालांकि भगवान ब्रह्मा ने इन राक्षसों को अमरता का वरदान देने से इनकार कर दिया क्योंकि यदि वह ऐसा करते तो इसका हर्जाना पूरे ब्रह्मांड को देना पड़ता। तब तीनों भाइयों ने बदले में भगवान से ढाल प्रदान करने का वरदान मांगा। वरदान के अनुसार उनमें से तीन ने तीन किलों का निर्माण किया। एक पृथ्वी पर, एक आकाश में, और एक स्वर्ग में, क्रमशः लोहा, चांदी, और सोने के साथ।
इन किलों को सामूहिक रूप से त्रिपुरा के नाम से जाना गया। साल में केवल एक बार ही त्रिपुरा सीधे पंक्ति में आते थे और ऐसी स्थिति में ही कोई एक तीर से इन तीनों किलो को नष्ट कर सकता था और तीनों भाइयों को मार सकता था। कहा जाता है भगवान शिव ने त्रिपुरारी के रूप में प्रकट होकर एक बाण से त्रिपुरा का नाश किया था और देवताओं को इन असुरों के पांडव और आतंक से मुक्त कराया था।
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