पढें भारत के आखिरी छोर में स्थित इस मंदिर की पौराणिक कथा!

भारत के प्राचीन मंदिरों में से एक कन्याकुमारी मंदिर भारत के तमिलनाडु प्रांत में स्थित है। भारत के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित यह मंदिर कई वर्षों से संस्कृति कला और सभ्यता का प्रतीक रहा है। पर्यटक यहां भक्ति भाव से आकर मनोकामनाएं तो मांगते ही हैं लेकिन इसके साथ ही सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा देखने भी यहां लोग पहुंचते हैं। माना जाता है कि सच्चे दिल से अगर कोई यहां मन्नत मांगे तो वह अवश्य पूरी होती है। माता का आशीर्वाद लेने के लिये दुनिया के कोने-कोने से यहां लोग आते हैं। 

कन्याकुमारी से जुड़ी पौराणिक कथा

ऐसा माना जाता है कि दक्षिण के जिस क्षेत्र में कन्याकुमारी का मंदिर है, वहां किसी समय बानासुरन नाम के एक असुर का आतंक था। बानासुरन को भगवान शिव का वरदान था कि उसकी मृत्यु किसी कुंवारी कन्या के हाथों होगी। उसी दौरान भरत नाम का एक राजा हुआ जिसकी 8 पुत्रियां तथा एक पुत्र था। भरत ने अपना पूरा राज्य अपनी पुत्रियों और एक पुत्र में बांट दिया। दक्षिण का हिस्सा भरत की पुत्री कुमारी को मिला। कुमारी भगवान शिव से शादी करना चाहती थी और इसके लिए उसने कड़ी तपस्या भी की और भगवान शिव कुमारी से शादी करने के लिए राजी भी हो गए थे, लेकिन नारद मुनि चाहते थे कि कुमारी के हाथों द्वारा बाणासुर का वध हो। इसलिए शिव और कुमारी का विवाह नहीं हो पाया। 

कुमारी की सुंदरता का बखान सुनकर एक बार बानासुरन ने कुमारी से शादी करने की इच्छा जाहिर की, तो कुमारी ने कहा कि मैं शादी करूंगी लेकिन इस शर्त पर कि तुम्हें मुझे युद्ध में हराना होगा। इसके बाद कुमारी और बानासुरन के बीच युद्ध हुआ और युद्ध में बानासुरन की मृत्यु हुई। माता कुमारी की याद में ही दक्षिण भारत के इस मंदिर को कन्याकुमारी नाम दिया गया। वहां के लोगों का मानना है कि शिव और कुमारी के विवाह के लिए जो सामान रखा गया था उसने बाद में रेत का रूप ले लिया और यह यह रेत आज भी रंग बिरंगी नजर आती है।

क्या है कन्याकुमारी मंदिर की खासियत

कन्याकुमारी मंदिर अपने सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य के लिए काफी प्रसिद्ध है। इस मंदिर का दर्शन करने आने वाले लोग सुबह और शाम को सूर्य की रोशनी में इस मंदिर को देखना पसंद करते हैं और यह बहुत दर्शनीय और मनमोहक होता भी है। सुबह और शाम के समय होटलों की छतों पर पर्यटक कन्याकुमारी मंदिर पर पड़ रही धूप का मनोहरी दृश्य देखने के लिए खड़े रहते हैं। इसके साथ ही इस मंदिर में यह प्रथा भी है कि इसके अंदर पुरुष कमर से ऊपर कपड़ा नहीं पहन सकते। सागर के मुहाने पर बसे इस मंदिर को माता पार्वती को समर्पित माना जाता है। मंदिर में प्रवेश करने से पहल त्रिवेणी संगम में भक्तों द्वारा स्नान किया जाता है। यहां समुद्र की लहरों की आवाज भी बहुत सुकूनदायक होती है।

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