कालाष्टमी के दिन इस पूजा विधि से पाएँ राहु के सभी दोषों से मुक्ति। जानें काल भैरव जयंती का महत्व और उससे मिलने वाले लाभ।
कालाष्टमी जिसे काल भैरव जयंती भी कहा जाता है। ये हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस विशेष दिन भगवान शिव के रूद्र अवतार कालभैरव की पूजा-अर्चना करने का विधान हैं। काल भैरव को समर्पित इस दिन भक्त साल भर आने वाली हर कालाष्टमी पर उपवास कर भगवान शिव, मां दुर्गा और भैरवनाथ को प्रसन्न करते हैं। ये व्रत हर महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, इसलिए भी इसे कालाष्टमी कहते है।
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भगवान शिव ने बुरी शक्तियों का नाश करने के लिए लिया था रूद्र अवतार
हिन्दू पंचांग अनुसार माना जाता है कि यदि अष्टमी पहले दिन केवल प्रदोषव्यापिनी और दूसरे दिन मध्याह्वव्यापिनी हो तो पहले दिन यानी प्रदोषव्यापिनी वाले दिन ही यह पर्व मनाया जाएगा। ऐसे में अब कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की कालाष्टमी 19 नवंबर, मंगलवार यानी की आज देशभर में मनाई जा रही है। कृष्ण पक्ष की अष्टमी भैरवाष्टमी के नाम से भी विख्यात है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव के रूद्र अवतार का पूजन करने से घर-परिवार में फैली हर प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है। क्योंकि सनातन धर्म की माने तो भगवान शिव ने बुरी शक्तियों का नाश करने के लिए ही रौद्र रुप धारण किया था। कई राज्यों में इस दिन मां दुर्गा की पूजा करने का विधान भी होता है।
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कालाष्टमी व्रत का पौराणिक महत्व
जैसा हमने आपको पहले ही बताया कि कालभैरव को भगवान शिव का रूद्र अवतार माना जाता है, इसलिए शास्त्रों अनुसार जो भी व्यक्ति इस विशेष दिन उपवास कर कालभैरव की सच्ची भाव सहित आराधना करता है उसे भगवान शिव सदैव सभी नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति दिलाते हैं।
इसके साथ ही काल भैरव की उपासना करने से व्यक्ति को शीघ्र ही शुभ फलों की प्राप्ति तो होती ही है। साथ ही व्यक्ति की कुंडली में मौजूद किसी भी प्रकार का राहु दोष भी दूर हो जाता है। तो आइये अब जानते है काल भैरव को प्रसन्न करके और उनसे मनचाहा फल पाने के लिए कालाष्टमी पर किन विशेष बातों का हर जातक को ज़रूर ध्यान रखना चाहिए।
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कालभैरव जयंती व्रत की सही पूजा विधि:-
- चूँकि भैरव को तांत्रिकों के देवता माना गया है, इसलिए कालभैरव जयंती की पूजा केवल और केवल रात के समय ही की जानी चाहिए।
- इस दिन काले कुत्ते को भोजन कराना शुभ होता है। क्योंकि माना गया है कि ऐसा करने से भैरवनाथ प्रसन्न होते हैं।
- इस दिन भैरवनाथ की पूजा के साथ-साथ माता वैष्णो देवी की भी पूजा करने का विधान है।
- इस दिन विशेष तौर पर भैरव जयंती से एक दिन पहले रात्रि के समय पूजा करने का अधिक महत्व होता है। इसलिए रात के समय काल भैरव के साथ-साथ मां दुर्गा की भी रात्रि में पूजा-आराधना करें।
- रात भर पूजा करने से इसके बाद अगली सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि कर साफ़ वस्त्र पहने और उसके बाद ही भैरव देव की पूजा करें।
- मान्यता अनुसार कालभैरव जयंती पर भैरव देव की पूजा के लिए शमशान घाट से लायी गयी राख ही चढ़ाई जाती है।
- इसके पश्चात पूजा कर काल भैरव कथा सुनने से लाभ मिलता है।
- इस दौरान काल भैरव के मंत्र “ॐ काल भैरवाय नमः” का जाप करना चाहिए।
- इसके साथ ही इस दिन मां बंगलामुखी का अनुष्ठान भी इस दौरान करना बेहद शुभ माना गया है। इससे व्यक्ति को शुभाशुभ लाभ की प्राप्ति होती है।
- इस दिन श्रद्धा अनुसार ग़रीबों को अन्न और वस्त्र का दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
- अगर मुमकिन हो तो कालाष्टमी के दिन मंदिर में जाकर कालभैरव के समक्ष तेल का एक दीपक ज़रूर जलाएं।
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कालभैरव जयंती के दिन भूल से भी न करें ये काम:-
काल भैरव जयंती के दिन व्रत करने का विधान है। ऐसे में इस दिन कुछ विशेष नियमों का पालन करने की भी सलाह दी जाती है।
- काल भैरव जयंती के दिन झूठ बोलने से बचें और केवल और केवल सच ही बोले।
- व्रत करने वाले लोगों को इस दिन अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए।
- इस दिन नमक का त्याग करना चाहिए। हालांकि अगर मुमकिन न हो तो आप सेंधा नमक का प्रयोग कर सकते हैं।
- अपने आस-पास बिलकुल भी गन्दगी न फैलाएं। इस दिन विशेष रूप से घर की साफ-सफाई करें।
- किसी भी कुत्ते को न मारे और संभव हो तो कुत्ते को इस दिन भोजन कराए। इससे भैरवनाथ खुश होते हैं।
- अपने माता-पिता और गुरुतुल्य लोगों का आशीर्वाद ज़रूर लें।
- भैरव जयंती के दिन बिना भगवान शिव और माता पार्वती के पूजा नहीं करना चाहिए।
- इससे एक दिन पूर्व की रात में सोना नहीं चाहिए। इस दौरान सपरिवार काल भैरव और मां दुर्गा की आराधना करते हुए जागरण करें।
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हम आशा करते हैं कि हमारा ये लेख आपको पसंद आया होगा। आप सभी को कालभैरव जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ।