जानें कैसे हुआ कर्मफल दाता “शनि” का जन्म !

शनि जिनका नाम सुनते ही लोग अक्सर सहम जाते हैं, लेकिन आपको बता दें कि हिन्दू धर्म में शनि को न्याय का देवता माना जाता है। पीले रंग का यह ग्रह सूर्य से छठा और सौरमंडल में बृहस्पति के बाद दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनि एक न्यायधीश की भूमिका निभाते हैं और इनका न्याय निष्पक्ष होता है। वह अच्छे कर्मों का फल अच्छा और बूरे कर्मों का फल बूरा देने वाले ग्रह हैं। वैदिक ज्योतिष में शनि ग्रह का बड़ा महत्व है। ज्योतिष में शनि ग्रह को आयु, दुख, रोग, पीड़ा, विज्ञान, तकनीकी, लोहा, कर्मचारी आदि का कारक मानते हैं। शनि मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं। तुला राशि में शनि उच्च के होते हैं वहीँ मेष राशि में ये नीच के माने जाते हैं। नौ ग्रहों में शनि की गति सबसे धीमी होती है। 

हिन्दू धर्म में शनि देव की पूजा के लिए खासतौर पर शनिवार का दिन निर्धारित किया गया है। शनि देव को प्रसन्न करने के लिए लोग ढेरों उपाय आदि करते हैं। हर देवी-देवता के जन्‍म से जुड़ी आपने ढेरों कहानियां सुनी होंगी, लेकिन क्या आपको पता है कि कर्मफल दाता कहे जाने वाले शनि देव का जन्म कैसे हुआ था और इनके माता-पिता कौन थे? शनि देव के जन्म को लेकर लोगों में अलग-अलग मान्‍यताएं हैं। तो चलिए आज आपको बताते हैं कि शनि देव का जन्म कैसे हुआ था ? 

शनि देव की जन्म कथा

पौराणिक कथा के अनुसार शनि देव, सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं। सूर्य देव का विवाह राजा दक्ष की पुत्री संज्ञा से हुआ, जिनसे उन्हें तीन संतान वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना की प्राप्ति हुई। विवाह के कुछ सालों तक संज्ञा सूर्य देव के साथ ही रहीं, लेकिन सूर्य देव का तेज बहुत अधिक था, जिसे लेकर संज्ञा परेशान रहती थी। सूर्य देव के तेज को वो अधिक समय तक सहन नहीं कर पाईं। इसलिए संज्ञा ने अपनी छाया को सूर्य देव की सेवा में छोड़ स्वयं तपस्या करने चली गयी। 

कुछ समय बाद छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ। धर्मग्रंथो के अनुसार जब शनि देव छाया के गर्भ में थे, तब छाया ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की जिसका प्रभाव उसके पुत्र पर पड़ा और उसका रंग काला हो गया। शनि के काले रंग को देख सूर्य देव ने छाया पर यह आरोप लगाया की शनि उनका पुत्र नहीं हैं। कहते हैं इसके बाद से ही शनि और सूर्य पिता-पुत्र होने के बावजूद एक-दूसरे के प्रति बैर भाव रखने लगे। आपको बता दें कि सूर्यदेव और छाया के मिलन से भी तीन संतान मनु, शनिदेव और भद्रा (तपती) ने जन्म लिया था। 

पिता द्वारा अपमानित शनि देव ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की। शनि की साधना से शिवजी ने उन्हें वरदान देते हुए कहा कि नवग्रहों में तुम्हारा स्थान सर्वश्रेष्ठ होगा। मनुष्य तो क्या देवता भी तुम्हारे नाम से भयभीत रहेंगे। 

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