आत्मनिर्भर शब्द का प्रयोग तब किया जाता है जब व्यक्ति किसी अन्य पर निर्भर नहीं होता। सीधे तौर पर कहा जाए तो जो व्यक्ति अपने पैरों पर खड़ा है वह आत्मनिर्भर कहा जाता है। आज अपने इस लेख में हम आपको बताएंगे कि ज्योतिष के अनुसार व्यक्ति में आत्मनिर्भरता का गुण कब आता है। कुंडली के कौन से ऐसे योग हैं जो व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाते हैं।
आत्मनिर्भर बनाने वाले कारक ग्रह
ज्योतिषशास्त्र में सूर्य को आत्मा का कारक ग्रह माना जाता है, वहीं मंगल पराक्रम और नेतृत्व का गुण प्रदान करता है। जबकि देवताओं के गुरु बृहस्पति ज्ञान, मार्गदर्शन और वैराग्य के कारक माने जाते हैं। यह तीनों ग्रह मुख्य रूप से आत्मनिर्भर होने के लिए जिम्मेदार होते हैं। इसके अलावा अन्य ग्रह भी कुछ विशेष परिस्थितियों में व्यक्ति को आत्मनिर्भरता का गुण देते हैं, साथ ही लग्नेश और चंद्रेश की स्थिति को देखना भी जरूरी होता है।
सूर्य बनाता है आत्मनिर्भर
जिन जातकों की कुंडली में यह अनुकूलता के साथ विराजमान होता है वह आत्मनिर्भर होते हैं और अपने बलबूते पर समाज में अपनी पहचान बनाते हैं। ऐसे लोग सरकारी क्षेत्रों, राजनीति आदि में अच्छी पहचान बनाने में कामयाब होते हैं। आइए जानते हैं कुंडली में सूर्य की कुछ विशेष स्थितियां जिनमें व्यक्ति आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ता है।
1. कुंडली में यदि सूर्य उच्च का हो यानि अपनी उच्च राशि मेष में विराजमान हो और किसी पाप ग्रह की दृष्टि सूर्य पर न पड़ रही हो तो व्यक्ति आत्मनिर्भर होता है।
2. यदि कुंडली में सूर्य अपनी मित्र राशि में है और किसी पाप ग्रह की दृष्टि इस पर नहीं पड़ रही तब भी व्यक्ति जीवन में आत्मनिर्भर बनता है।
3. कुंडली के प्रथम भाव में विराजमान सूर्य व्यक्ति के क्रोध में अधिकता कर सकता है और साथ ही आलस्य भी दे सकता है लेकिन इन दुर्गुणों पर यदि व्यक्ति काबू पा ले तो इस भाव में बैठा सूर्य व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाता है।
4. दशम भाव में बैठा सूर्य भी व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाता है और ऐसे व्यक्ति को करियर में सफलता मिलती है।
5. यदि लग्न कुंडली में सूर्य अच्छी राशि में विराजमान नहीं है लेकिन नवमांश कुंडली में उच्च का है तो ऐसे में भी व्यक्ति आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ता है।
6. नवम भाव में बैठा सूर्य व्यक्ति को परिवार और अपने धर्म से अलग करके आत्मनिर्भरता की ओर ले जा सकता है।
मंगल भी देता है आत्मनिर्भरता का गुण
कुंडली में सूर्य के साथ-साथ मंगल भी एक ऐसा ग्रह है जो व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाने में कामयाब होता। ज्योतिष में मंगल को पराक्रम का कारक माना जाता है और इसको सभी ग्रहों में सेनानायक का दर्जा प्राप्त है। इसलिए कुंडली में आत्मनिर्भरता के लिए इसकी स्थिति को देखना भी अति आवश्यक हो जाता है।
1. किसी व्यक्ति की कुंडली में यदि मंगल ग्रह मकर राशि में विराजमान है और इस पर किसी क्रूर ग्रह की दृष्टि नहीं है तो व्यक्ति को आत्मनिर्भर होने से कोई नहीं रोक सकता। ऐसे लोग किसी भी काम को अधूरा नहीं छोड़ते और इसलिए अच्छे पदों पर इनको देखा जाता है। इसके साथ ही ऐसे लोग परोपकारी तो होते हैं लेकिन किसी के अंडर काम करने में इनको परेशानी आती है और इसलिए यह आत्मनिर्भर होकर अपना काम करते हैं या किसी उच्च पद पर विराजमान होते हैं।
2. यदि कुंडली में मंगल मित्र राशि में विराजमान है तो यह व्यक्ति को आत्मनिर्भरता का गुण देता है।
3. मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल है, यदि किसी का लग्न इन दोनों राशियों का है और साथ ही मंगल भी कुंडली में मित्र राशि में है और इसपर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि पड़ रही है तो व्यक्ति आत्मनिर्भर होने की हर संभव कोशिश करेगा।
शुभ बृहस्पति बनाता है व्यक्ति को आत्मनिर्भर
ज्योतिष में बृहस्पति को शुभ ग्रह माना जाता है और यदि कुंडली में इसकी स्थिति अच्छी है तो यह भी व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाता है। जिन जातकों की कुंडली में गुरु शुभ स्थानों में बिना किसी क्रूर ग्रह की दृष्टि के विराजमान है वह आत्मनिर्भर बनते हैं। ऐसे लोग अपना व्यवसाय करके आत्मनिर्भर होना पसंद कर सकते हैं। वहीं आध्यात्मिक क्षेत्र, ज्योतिष और योग में महारत पाकर भी यह आत्मनिर्भर बन सकते हैं। यदि किसी की कुंडली में गुरु कर्क राशि में विराजमाना है तो यह शुभ माना जाता है क्योंकि कर्क गुरु की उच्च राशि है। इस राशि में बैठा गुरु व्यक्ति को समाज से मान-सम्मान दिलाता है और ऐसे लोग अच्छे मार्गदर्शक हो सकते हैं। इसके साथ ही ऐसे लोगों को आत्मनिर्भरता के साथ जीवन जीना पसंद होता है। यदि कुंडली में गजकेसरी योग बन रहा है तो यह भी व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाने का काम करता है।
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लग्न के स्वामी और चंद्रेश की स्थिति
किसी भी कुंडली में लग्नेश और चंद्रेश को सबसे अहम माना जाता है। लग्नेश और चंद्रेश की राशियां यदि एक ही तत्व की हैं तो व्यक्ति में आत्मनिर्भरता का गुण देखा जा सकता है। हालांकि इसके लिए कुंडली में यह देखना भी जरूरी है कि लग्नेश और चंद्रेश विराजमान कहां हैं। यदि यह दोनों मित्र राशि, मूल त्रिकोण राशि या अपनी उच्च राशि में हैं तो व्यक्ति बिना किसी संदेह के आत्मनिर्भरता को पाने के लिए भरसक प्रयास करेगा। वहीं इन दोनों की खराब स्थिति व्यक्ति को जीवन में दूसरों पर निर्भर कर सकती है।
दशा-महादशाएं भी बनाती हैं आत्मनिर्भर
कई बार ऐसा देखा जाता हैं कि लंबे समय से किसी पर निर्भर व्यक्ति अचानक आत्मनिर्भर बन जाता है। इसका मुख्य कारण दशा-महादशा हो सकती है।
1. जब किसी ग्रह की महादशा में सधर्मी ग्रह (केंद्र के स्वामी, त्रिकोणेश के स्वामी, लग्न-सप्तम के स्वामी, द्वितीय-द्वादश के स्मामी, सधर्मी कहलाते हैं) की अंतर्दशा होती है और यह ग्रह यदि कुंडली में कारक भी हैं तो व्यक्ति आत्मनिर्भर बनता है।
2. राहु और केतु शुभ ग्रह नहीं माने जाते लेकिन यह कुंडली में केंद्र या त्रिकोण में हों और केंद्र या त्रिकोण के स्वामी से संबंध बना रहे हों तो इनकी दशा अंतर्दशा भी व्यक्ति को अच्छे फल देती है और ऐसी स्थिति में भी व्यक्ति आत्मनिर्भर बन सकता है।
क्या कुंडली के अनुसार आप भी बनेंगे आत्मनिर्भर जानने के लिए हमारे विद्वान ज्योतिषियों से करें बात