हर साल आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के दिन महिलाओं द्वारा अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए विशेष व्रत रखा जाता है जिसे जया पार्वती व्रत या मंगला गौरी व्रत के नाम से जाना जाता है। इस व्रत को रखकर स्त्रियां माता पार्वती को प्रसन्न कर उनसे अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। यहाँ हम आपको जया पार्वती व्रत के महत्व और उसकी पूजा विधि के बारे में बता रहे हैं।
क्यों रखती हैं महिलाएं ये व्रत ?
हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन माह के प्रत्येक मंगल वार को स्त्रियां अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए जया पार्वती या मंगला गौरी व्रत रखती हैं। इस व्रत को विवाहित महिलाओं के साथ ही कुंवारी लड़कियां भी रख सकती है। जहाँ एक तरफ विवाहित स्त्रियां ये व्रत वैवाहिक जीवन में आने वाली कमियों को दूर करने के रखती हैं वहीं कुंवाड़ी लड़कियां ये व्रत विवाह में आने वाली अड़चनों को दूर करने और सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए रखती हैं। ऐसी मान्यता है की एक बार इस व्रत को आरंभ करने पर कम से कम पांच सालों तक लगातार इसे रखना होता है। पांच साल तक इस व्रत को रखने के बाद विधि पूर्वक इसका उद्यापन कर देना चाहिए।
जया पार्वती/मंगला गौरी व्रत की पूजा विधि
- इस व्रत को करने वाली महिलाओं को विशेष रूप से इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि क्रियाओं से निवृत हो जाना चाहिए।
- इस दिन अपनी सामर्थ्य अनुसार नए कपड़े पहने या फिर साफ़ सुथरे धुले कपड़े धारण करें।
- इस व्रत के दौरान सिर्फ एक समय का भोजन ही ग्रहण किया जाता है।
- सबसे पहले माता गौरी या पार्वती माँ का चित्र या मूर्ती स्थापित करें।
- इसके बाद माँ गौरी के “मम पुत्रापौत्रासौभाग्यवृद्धये श्रीमंगलागौरीप्रीत्यर्थं पंचवर्षपर्यन्तं मंगलागौरीव्रतमहं करिष्ये” इस मंत्र का जाप करते हुए व्रत का संकल्प लें।
- इस पूजा के लिए उपयोग की जाने वाले सभी वस्तुओं की संख्या 16 होनी चाहिए।
- माँ गौरी को 16 मालाएं, लौंग, इलायची, पान, लड्डू, फल, सुपारी और चूड़ियां चढ़ाई जाती है।
- पूजा विधि संपन्न होने के बाद माँ गौरी की कथा जरूर सुननी चाहिए।
- इस दिन ग्यारह ब्राह्मण एवं उनकी पत्नियों को भोजन करवाकर उनका आशीर्वाद लेना भी बेहद शुभ माना जाता है।