जिस तरह सावन महीने का महादेव के सभी भक्त बेसबरी से इंतजार करते रहते हैं। वैसे ही भगवान श्री कृष्ण के भक्तों को भाद्र मास का इंतजार रहता है क्योंकि इस महीने ही भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव ‘जन्माष्टमी’ मनाया जाता है। भगवान कृष्ण सनातन धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। सनातन धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथों में से एक भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण के द्वारा ही अर्जुन को जीवन-मृत्यु और पाप-पुण्य समझाया गया है। यही वजह है कि भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव का सनातन धर्म के अनुयायियों के बीच काफी महत्व है और भगवान कृष्ण में अटूट श्रद्धा भी।
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ऐसे में आज हम आपको इस लेख में जन्माष्टमी की तिथि, मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत से जुड़े नियमों की जानकारी देने वाले हैं।
कब है जन्माष्टमी?
प्रत्येक साल हिन्दू पंचांग के अनुसार जन्माष्टमी का पर्व भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह पर्व 30 अगस्त 2021 को पड़ने जा रहा है।
जन्माष्टमी पूजा मुहूर्त : 23:59:27 से 24:44:18
अवधि : 44 मिनट
पारण मुहूर्त : 31 अगस्त को 05:57:47 के बाद कभी भी।
आइये अब आपको जन्माष्टमी की पूजा विधि बता देते हैं।
जन्माष्टमी पूजा विधि
जन्माष्टमी का व्रत अष्टमी तिथि के उपवास और पूजन से शुरू होता है और नवमी को पारण से इस व्रत का समापन होता है। ऐसे में वे जातक जो जन्माष्टमी का व्रत रखने जा रहे हैं, वे अष्टमी से एक दिन पूर्व सप्तमी तिथि को हल्का और सात्विक भोजन करें। साथ ही ब्रह्मचर्य का भी पालन करें। अगले दिन अष्टमी तिथि को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर साफ वस्त्र धारण करें। आसान बैठा कर उत्तर या पूर्व मुख कर बैठ जाएं। सभी देवी-देवताओं को प्रणाम करने के बाद हाथ में जल, फल और पुष्प लेकर अष्टमी तिथि को व्रत रखने का संकल्प लें।
इसके बाद स्वयं के ऊपर काला तिल छिड़क कर माता देवकी के लिए एक प्रसूति घर का निर्माण करें। फिर इस प्रसूति गृह में सुन्दर बिछावन लगाकर कलश स्थापना करें। इसके साथ-साथ भगवान श्रीकृष्ण को स्तनपान करवाती हुई माता देवकी का चित्र या प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद देवकी, वासुदेव, बलदेव, नन्द, यशोदा और लक्ष्मी जी इन सबका नाम क्रमशः लेते हुए विधिवत पूजन करें। आपको बता दें कि इस व्रत में फलाहार के रूप में कट्टू के आटे की पूरी, मावे की बर्फी और सिंघारे के आटे का हलवा बनाया जाता है।
आइये अब आपको जन्माष्टमी व्रत से जुड़े कुछ नियम बता देते हैं।
जन्माष्टमी व्रत नियम
जन्माष्टमी का व्रत एकादशी के व्रत की ही तरह रखा जाता है। इस दिन अन्न ग्रहण करना निषेध माना गया है। जन्माष्टमी का व्रत एक निश्चित अवधि में ही तोड़ा जाता है जिसे पारण मुहूर्त कहते हैं। जन्माष्टमी का पारण सूर्योदय के बाद अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने के बाद तोड़ा जाता है। यदि सूर्योदय के बाद इन दोनों में से एक भी मुहूर्त सूर्यास्त से पहले समाप्त नहीं होता है तो व्रत सूर्यास्त के बाद तोड़ा जाता है। ऐसी स्थिति में इन दोनों में से कोई भी एक मुहूर्त पहले समाप्त हो जाये, उसे ही जन्माष्टमी व्रत का पारण मुहूर्त माना जाता है। यही वजह है कि जन्माष्टमी का व्रत कभी-कभी 02 दिनों के लिए भी रखना पड़ सकता है।
हालांकि धर्म सिंधु में जन्माष्टमी को लेकर यह वर्णित है कि वे जातक जो 02 दिनों तक व्रत रखने में सक्षम नहीं हैं। वे अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत खोल सकते हैं।
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