भारत समेत दुनियाभर में प्रसिद्ध पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा 12 जुलाई को आयोजित की जा रही है। पद्मपुराण के अनुसार आषाढ माह के शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि सभी कार्यों को करने के लिए सिद्धि प्रदान करने वाली होती है। पिछले कुछ दिनों से इस बात पर चर्चा बनी हुई थी कि इस साल क्या भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाएगी या नहीं? लेकिन आखिर में जीत आस्था की हुई और पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से हरी झंडी मिल गई। कोरोना वायरस के प्रकोप को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ रथयात्रा की इजाजत दी है। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले की वजह से लोगों में वापस ख़ुशी की लहर दौड़ गई है। तो चलिए आज हम आपको अपने इस लेख के ज़रिए रथ यात्रा से जुड़ी कुछ ऐसी बातें बताते हैं, जिससे आप अभी तक अनजान हैं–
हिन्दू पंचांग के अनुसार हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को यह यात्रा शुरू की जाती है और दशमी के दिन समाप्त होती है। भगवान जगन्नाथ को पूरे साल में एक बार उनके गर्भ गृह से निकालकर यात्रा कराते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान लोगों के सुख-दुःख को देखते हैं। अपनी बढ़ती समस्याओं के समाधान के लिए हमारे विशेषज्ञ ज्योतिषी से परामर्श हेतु यहाँ क्लिक करें।
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शर्तों और नियमों के साथ होगी इस साल जगन्नाथ रथयात्रा
इस साल रथ यात्रा पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी, जिससे लोग काफी निराश थे, लेकिन लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए आख़िरकार कोर्ट ने अपने फैसले को बदलते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार यह रथ यात्रा बेहद सीमित दायरे में केवल पुरी में निकाली जायेगी। सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना के डेल्टा प्लस वैरिएंट के बढ़ते प्रकोप और तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए राज्य सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए पूरे ओडिशा राज्य में रथ यात्रा को निकालने पर पाबंदी लगा दी है।
ओडिशा विशेष राहत आयुक्त प्रदीप के जेना ने बताया कि, “केवल COVID-19 नेगेटिव और पूरी तरह से टीकाकृत सेवकों को ही अनुष्ठानों में भाग लेने की अनुमति दी गई और इस बार भी श्रद्धालुओं के यात्रा में शामिल होने पर मनाही है।”
जानकारी के लिए बता दें कि, यह दूसरा मौका है, जब रथ यात्रा में कोरोना की वजह से इतना फेरबदल किया गया है। इसके अलावा एक बार मुगलों के दौर में भी यह यात्रा रोकी भी गई थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक 284 साल पहले 1733 से 1735 के बीच रथ यात्रा नहीं हो सकी थी, क्योंकि उस वक्त तकी खान ने मंदिर पर हमला किया था, जिसकी वजह से मूर्तियों को किसी और स्थान पर रखना पड़ा था। अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के चलते 10 दिनों तक चलने वाली पुरी की रथ यात्रा भारत समेत पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। ओडिशा राज्य के पुरी में होने वाला यह आयोजन एक बहुत बड़ा महोत्सव है, जिसका हिस्सा बनने के लिए देश और दुनिया के लाखों श्रद्धालु यहां पहुँचते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो लोग रथ खींचने में सहयोग करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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जगन्नाथ रथ यात्रा 2021 मुहूर्त
जगन्नाथ रथयात्रा मुहूर्त
जुलाई 11, 2021 को 07:49:15 से द्वितीया आरम्भ
जुलाई 12, 2021 को 08:21:39 पर द्वितीया समाप्त
अभिजीत मुहूर्त – 12 बजकर 05 मिनट– 12 बजकर 59 मिनट
अमृत काल – 01 बजकर 35 मिनट (सुबह से) – 03 बजकर 14 मिनट तक (सुबह)
ब्रह्म मुहूर्त – 04 बजकर 16 मिनट (सुबह से) – 05 बजकर 04 मिनट तक (सुबह)
धरती का बैकुंठ माना जाता है जगन्नाथ पुरी
हिन्दू धर्म में चार धामों(बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथ पुरी और रामेश्वरम) का विशेष महत्व है। जगन्नाथ पुरी इन पवित्र चार धामों में से एक माना जाता है। पुराणों के अनुसार जगन्नाथ पुरी को धरती का बैकुंठ है। यहाँ स्थित मंदिर 800 वर्ष से भी अधिक प्राचीन है। इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण, जगन्नाथ के रूप में विराजित हैं। उनके बड़े भाई बलराम और बहन देवी सुभद्रा की भी पूजा यहाँ की जाती है। होली, दीवाली, दशहरा आदि की तरह पुरी की रथयात्रा भी एक बड़ा त्यौहार है। पुरी के अलावा रथयात्रा का आयोजन भारत के अलग-अलग शहरों में भी किया जाता है। हिन्दू धर्म में जगन्नाथ यात्रा काफी खास है, क्योंकि इसका वर्णन स्कंद पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण, बह्म पुराण आदि में भी मिलता है।
रथ खींचने वाले को मिलता है सौ यज्ञ और मोक्ष बराबर पुण्य
भगवान जगन्नाथ को श्रीकृष्ण का अवतार माना गया हैं। इनकी महिमा के बारे में हमें धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में भी जानकारी मिल जाती है। जगन्नाथ रथयात्रा में भगवान श्रीकृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा का रथ होता हैं। ऐसा माना जाता है कि जो भी इस रथयात्रा में शामिल होकर रथ को खींचता है, उसे सौ यज्ञ के बराबर पुण्य मिलता हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार कि जो लोग रथ खींचने में सहयोग करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और इस यात्रा के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। इसीलिए रथयात्रा के दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।
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जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़ी पूरी जानकारी
पुरी रथयात्रा के लिए श्रीकृष्ण, बलराम और देवी सुभद्रा के लिए लकड़ी के तीन अलग-अलग रथ बनाए जाते हैं। इस रथ यात्रा में सबसे आगे बलराम जी का रथ होता है, बीच में देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ होता है। रथों को उनके रंग और ऊंचाई से पहचाना जाता है और इनके निर्माण में किसी भी तरह के कील या अन्य किसी धातु का इस्तेमाल नहीं होता है।
बसंत पंचमी के दिन से रथों के लिए काष्ठ का चयन शुरू होता है, जबकि उनका निर्माण अक्षय तृतीया से प्रारम्भ हो जाता है। भगवान जगन्नाथ के रथ में 16 पहिए लगे होते हैं, जो कि लाल और पीले रंग का होता है, बलराम के रथ में 14 पहिए होते हैं और ये लाल और हरे रंग का होता है और सुभद्रा के रथ में 12 पहिए लगे होते हैं जो कि काले और नीले रंग का होता है।
आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ मंदिर से रथयात्रा आरम्भ होती है। ढोल, नगाड़ों और शंखध्वनि के बीच श्रद्धालु इन रथों को खींचते हैं। ये रथ यात्रा मंदिर से होकर पुरी नगर से गुजरते हुए गुंडीचा मंदिर पहुंचते हैं, जहाँ भगवान जगन्नाथ, बलराम और देवी सुभद्रा सात दिनों के लिए विश्राम करते हैं। गुंडीचा मंदिर जिसे ‘गुंडीचा बाड़ी’ भी कहा जाता है, इसे भगवान की मौसी का घर मानते हैं। नौ दिन पूरे होने के बाद भगवान जगन्नाथ, जगन्नाथ मंदिर में अपने भाई बहन के साथ वापस चले आते हैं।
जगन्नाथ मंदिर का ‘महाप्रसाद’
पूरे देश में जगन्नाथ मंदिर ही एक अकेला ऐसा मंदिर है, जहां का प्रसाद ‘महाप्रसाद’ कहलाता है। दुनिया के बाकि सभी हिन्दू मंदिरों के प्रसाद केवल प्रसाद कहते हैं। महाप्रसाद एक सर्वोच्च प्रसाद है, जिसे बिना किसी भेदभाव हर किसी को बराबर मात्रा में बाँटा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जगन्नाथ मंदिर की रसोई दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है। मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने की प्रक्रिया कह लो या चमकार बेहद अनोखा है। इसके लिए 7 बर्तन को एक-दूसरे पर रखा जाता है, और सब कुछ लकड़ी पर ही पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में ऊपर के बर्तनों में रखी सामग्री पहले पकती है, फिर नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है। इस मंदिर में बनने वाला महाप्रसाद कभी भी लोगों को कम नहीं पड़ता है, लेकिन जैसे जी मंदिर के पट बंद होते हैं, महाप्रसाद खत्म हो जाता है।
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क्यों निकाली जाती है रथ यात्रा ?
रथ, मंदिर, प्रसाद, रथ यात्रा से जुड़ी ढेरों जानकारियाँ आपको ऊपर मिल गयी होंगी। लेकिन एक सवाल जो आप सभी के मन में अभी भी होगा और वो ये कि आखिर यह रथ यात्रा क्यों निकली जाती है! भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा को लेकर कई तरह की बातें प्रचलित हैं। ऐसा कहा जाता हैं कि एक दिन भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने नगर देखने की इच्छा ज़ाहिर की और उनसे द्वारका के दर्शन कराने की प्रार्थना की। बहिन के आग्रह को स्वीकार करते हुए भगवान जगन्नाथ ने उन्हें रथ में बिठाकर नगर का भ्रमण करवाया था। तब से लेकर आज तक यहां हर साल जगन्नाथ रथयात्रा निकाली जाती है।
जगन्नाथ मंदिर से जुड़े हैरान कर देने वाले तथ्य
- जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर एक झंडा लगा है, जो हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है।
- आश्चर्य है कि दोपहर में किसी भी समय मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती है।
- मंदिर परिसर में कुल 752 चूल्हे हैं, जिनमें महाप्रसाद बनाया जाता है। स्थानीय लोगों के अनुसार यहाँ जलने वाली अग्नि कभी नहीं बुझती है।
- जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर कभी कोई पक्षी नहीं बैठता है। इसके अलावा कोई विमान आदि भी मंदिर के ऊपर से नहीं निकलता है।
- पुरी में आप किसी भी स्थान से यदि मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को देखेंगे, तो वह आपको हमेशा एक जैसा ही लगा दिखेगा।
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