जून की महीने का आरंभ हो चुका है, इसी के साथ अब देशभर में गर्मी का प्रकोप अपने चरम पर जारी है। सूर्य देव का ताप इस कदर अपना कहर ढा रहा है कि मानो इस ग्रीष्म में हर जीव-जंतु बहाल है। बढ़ते गर्मी के कहर से सबसे अधिक उत्तरी भारत के राज्य परेशान है, जहाँ सतही भूमि का तापमान हाल ही में 45 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक दर्ज किया गया।
भारत के उत्तर पश्चिम इलाकों में भी भीषण गर्मी का कहर देख न केवल वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ गई है, बल्कि ज्योतिषी अब इस गर्मी से त्रस्त होकर वैदिक ज्योतिष विद्या की मदद से वर्षा ऋतु के आगमन का आंकलन कर रहे हैं। क्योंकि समस्त प्राणियों की तरह ही वे भी जानते हैं कि अब केवल इंद्र देव ही वर्षा ऋतु के माध्यम से सूर्य देव के इस प्रकोप से उनका बचव कर सकते हैं।
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ज्योतिष विज्ञान में वर्षा होने के योग
भारत में वर्षा ऋतु प्रकृति हरियाली की चादर ओढ़े पृथ्वी को न केवल गर्मी से राहत दिलाती है, बल्कि भूमि में खाद्यान्न उत्पन्न भी करने में मददगार सिद्ध होती है। इसलिए वर्षा का महत्व समस्य मनुष्य जीवन के लिए अत्यंत विशेष है। वर्षा की इसी विशेषता को समझते हुए ज्योतिष विज्ञान में उत्तम वर्षा व वर्षा होने के संकेत अनेक योगों के रूप में सुझाए गए हैं।
वर्तमान में भले ही वर्षा और मौसम से संबंधित जानकारी मौसम विभाग अनेक नई मौसम वैज्ञानिक प्रणालियों की मदद से देता हो। परंतु पौराणिक काल में भारत में मौसम या वर्षा की सटीक जानकारी पाने के लिए ज्योतिष शास्त्र की गणना का प्रयोग किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र का ये तरीका आज भी कई ज्योतिषी विशेषज्ञ अपनाते हुए वर्षा की भविष्यवाणी करते हैं और आज भी पंचांग की मदद से वर्षा के बनने वाले योग और सटीक समय बताते हैं।
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वैज्ञानिक और ज्योतिषीय दोनों तरीकों से की जाती है वर्षा की भविष्यवाणी
वैज्ञानिकों का मानना है कि वर्षा वायु तथा बादलों का ही एक रूप है और आकाश मंडल में सभी बादलों को हवा ही संचालित करती है। इसलिए भी वायु का वर्षा करने में विशेष योगदान होता है। वायु न केवल बादलों को संचालित करती हैं, बल्कि इसका तूफानी रूप जंगलों, वृक्षों तथा पर्वत की शीलाओं को भी उखाड़ फेंकने का समर्थ रखता है।
जबकि ज्योतिष में वर्षा को आकृष्ट करने के लिए कई ज्योतिषी यज्ञ को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं। साथ ही उनके अनुसार सौमंडल में ग्रह-नक्षत्रों के संयुक्त होने के कारण वर्षा के मेघ उत्पन्न होते हैं। जिन्हें ज्योतिष विज्ञान के माध्यम से समझा जा सकता है। इस बात की जानकारी श्री नारद पुराण में मिलती है, जिसमें ज्योतिष के विभिन्न तत्वों का विस्तारपूर्वक वर्णन करते हुए, वर्षा के संबंध में और उसकी गणना को लेकर भी बताया गया है। तो आइये अब इस लेख के माध्यम से जानते हैं आखिर कैसे बनते हैं ज्योतिष में वर्षा के योग।
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नक्षत्रों की वर्षा के योग में महत्वपूर्ण भूमिका
- विशेष रूप से समस्त नक्षत्रों में से आर्द्रा, आश्लेषा, उत्तराभाद्रपद, पुष्य, शतभिषा, पूर्वाषाढ़ा एवं मूल नक्षत्रों को वरुण अर्थात जल के नक्षत्र के रूप में देखा जाता है।
- इन नक्षत्रों में ही कुछ विशेष ग्रहों का योग बनने पर वर्षा की भविष्यवाणी की जा सकती है।
- इसके अलावा पंचांग अनुसार यदि रोहिणी नक्षत्र का वास यदि समुद्र में हो तो, ये स्थिति घनघोर वर्षा के योग का निर्माण करेगी।
- वहीं रोहिणी नक्षत्र का वास समुद्र तट पर होने की स्थिति में भी देशभर में वर्षा खूब होगी और देशवासियों को गर्मी से मुक्ति मिलेगी।
- जब सूर्य पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में प्रवेश करें, तब यदि आकाश में बादल छाए हुए हो तो आद्र्रा से मूल पर्यन्त प्रतिदिन वर्षा देखने को मिलती है।
- इसके अतिरिक्त जब सूर्य रेवती नक्षत्र में प्रवेश करें और उस अवधि में वर्षा हो जाए तो उससे दस नक्षत्र आगे यानी रेवती से अश्लेषा तक वर्षा नहीं होती है।
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नवग्रहों की वर्षा के योग में महत्वपूर्ण भूमिका
- यदि सूर्य ग्रह आद्र्रा से स्वाति नक्षत्र तक विचरण करें और इस दौरान चंद्रमा की स्थिति शुक्र से सप्तम भाव में हो, जबकि शनि से चन्द्रमा की स्थिति 5-7-9 भाव में से किसी भी भाव में हो तथा उस पर किसी अन्य शुभ ग्रह की पूर्ण दृष्टि हो तो, ये स्थिति भी वर्षा होने के प्रबल संकेत देगी।
- इसके अलावा जब बुध और शुक्र किसी भी एक राशि में उपस्थित होते हुए युति बनाए और उन पर गुरु बृहस्पति की दृष्टि हो तो भी इस परिस्थिति में अच्छी वर्षा की उम्मीद की जा सकती है। परंतु इस दौरान यदि शनि या मंगल जैसा कोई क्रूर व उग्र ग्रह अपनी दृष्टि डाल रहा हो तो, इस स्थिति में वर्षा की उम्मीद नहीं की जाएगी।
- एक अन्य परिस्थिति के अनुसार बुध और गुरु ग्रह गोचर करते हुए किसी एक राशि में युति करें और उन पर शुक्र की दृष्टि हो तो, ये योग भी अच्छी वर्षा होने के संकेत देंगे।
- यदि बुध, गुरु एवं शुक्र तीनों शुभ ग्रह का एक ही राशि में युति करते हुए त्रिग्रह योग बनाना और उनपर किसी क्रूर ग्रह का दृष्टि करना महावर्षा का योग बनाएगा।
- जबकि शुक्र के साथ शनि और मंगल एक राशि में उपस्थित होकर युति करें, और वहां उसी स्थिति में गुरु की दृष्टि उनपर पड़े तो, ये योग घनघोर वर्षा होने के संकेत देंगे।
- ये भी देखा गया है कि सूर्य-गुरु या गुरु-बुध की एक राशि में युति बनें तो वर्षा तब तक नहीं रुकेगी जब तक बुध या गुरु में से कोई भी एक ग्रह अस्त न हो जाएं।
- इसके अलावा गुरु- शुक्र की युति का बनना व उनपर बुध के साथ-साथ किसी क्रूर ग्रहों की दृष्टि का होना अति वृष्टि योग का निर्माण करत है। इसके परिणामस्वरूप वर्षा इतना विकराल रूप धारण करती है कि उससे भूस्खलन और बाढ़ जैसी परिस्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं।
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वायुमंडल की वर्षा के योग में महत्वपूर्ण भूमिका
- वैदिक ज्योतिष की मानें तो वर्षा से संबंधित भविष्यवाणी के लिए वायुमंडल का विचार किया जाता है।
- इस दौरान यदि वायु का रुख पूर्व तथा उत्तर की ओर हो तो इस स्थिति में शीघ्र वर्षा के संकेत मिलते हैं।
- जबकि वायव्य दिशा में वायु का चलना तूफानी वर्षा के पीछे का कारण बनता है। बता दें कि उत्तर और पश्चिम दिशा के मध्य में वायव्य दिशा का स्थान होता है।
- ईशान कोण के रुख की चलने वाली वायु भी हरियाली वाली वर्षा के संकेत देती है।
- इसके अतिरिक्त श्रावण माह में पूर्व दिशा की और वादों में उत्तर दिशा की वायु का चलना सामान्य से अधिक वर्षा के योग बनाएगा।
- जबकि शेष महीनों में पश्चिमी वायु का चलना भी वर्षा होने के संकेत देती है।
वर्षा का नक्षत्र कौन सा है?
आर्द्रा नक्षत्र वर्षा के लिए सबसे अनुकूल नक्षत्र माना जाता है। हिन्दू पंचांग अनुसार जब सूर्य देव अपना नक्षत्र गोचर करते हुए आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश कर जाते हैं तो, ये स्थिति वर्षा होने की संभावना बढ़ा देती है।
ऐसे में एस्ट्रोसेज के ज्योतिषी विशेषज्ञों के अनुसार, वर्ष 2022 में ग्रहों के राजा सूर्यदेव 22 जून 2022, बुधवार को आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। सूर्यदेव इस नक्षत्र में अगले महीने यानी 6 जुलाई 2022, बुधवार तक रहेंगे उसके बाद आर्द्रा नक्षत्र से निकलकर पुनर्वसु नक्षत्र में चले जाएंगे। इसलिए सूर्य देव का लगभग 15 दिनों तक आर्द्रा नक्षत्र में रहना, भारत में मानसून होने के योग को बल देगा। इससे वातावरण में नमीं और हरियाली बढ़ेगी, साथ ही गर्मी का ताप कम होते हुए मौसम में शीतलता का अहसास भी होगा। क्योंकि माना जाता है कि आर्द्रा नक्षत्र में आने पर सूर्य का प्रभाव काफी कम हो जाता है और आकाश में बादलों का प्रभाव तेजी से बढ़ने लगता है। इस नक्षत्र के स्वामी राहु होते हैं, जिसके कारण भी यहाँ सूर्य का प्रभाव कम होता है। इसलिए ये कहा जा सकता है कि आर्द्रा नक्षत्र में सूर्य का 22 जून से 06 जुलाई 2022 तक उपस्थित होना, देशभर में वर्षा यानी मानसून होने की संभावना दर्शा रहा है।
नोट: दोस्तों इन परिस्थितियों के अलावा भी जैसे आकाशमंडल में चन्द्रमा के होते हुए बिजली का चमकना या मेंढको का एकसाथ आवाज़ लगाते रहना भी वर्षा होने की भविष्यवाणी करता है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि उपरोक्त दिए गए योगों के अतिरिक्त भी अनेक ग्रह-नक्षत्रों के संयोग से वर्षा से संबंधित संकेत दिए जा सकते हैं।
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