ज्योतिष शास्त्र में अक्सर आपने ग्रहों की उच्च और नीच स्थिति के बारे में ज़रूर सुना होगा। हर कुंडली में कोई न कोई ग्रह उच्च का तो कोई नीच का ज़रूर होता है। ज्योतिष की सरल भाषा में समझें तो जो ग्रह शत-प्रतिशत शक्तिशाली होता है, वे उच्च ग्रह कहलाता है। जबकि ग्रह का कमज़ोर या निर्बल होना नीच का होना कहलाता है।
इसी अनुसार ये देखा गया है कि जातक की जन्मकुंडली में किसी ग्रह का उच्च का होना, उस ग्रह से संबंधित शुभ प्रभाव पूर्ण रूप से देने का कार्य करता है। जबकि इसके विपरीत यदि कुंडली में कोई ग्रह नीच का हो तो जातक को अपने जीवन में कई चुनौतियों से दो-चार करना पड़ सकता है।
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कई परिस्थिति में उच्च ग्रह भी देने लगता है नीच का फल
परंतु कई परिस्थितियों में ये भी देखा जाता है कि किसी कुंडली में कई बार उच्च ग्रह भी अपना पूर्ण रूप से उच्च प्रभाव नहीं दे पाते हैं। ज्योतिष विशेषज्ञों अनुसार ये स्थिति तब बनती है जब जातक अपने जीवन में उस उच्च ग्रह से संबंधित विपरीत कार्य करता है और इसके परिणामस्वरूप कुंडली में उच्च का ग्रह भी अपना नीच का प्रभाव देना शुरू कर देता है।
कहने का अर्थ ये है कि जातक के द्वारा किये गए कर्म बुरे हो तो उसकी कुंडली में उच्च ग्रह भी अपना शुभ प्रभाव देना बंद कर देता है। इसलिए ये कहना गलत नहीं होगा कि व्यक्ति स्वयं कई बार अपने व्यवहार या दृष्टि से उच्च ग्रह के शुभ प्रभाव को खत्म कर देता है और इसके चलते ही उसे अपनी कुंडली में उच्च ग्रह से नीच ग्रह की भांति प्रभाव डालने लगता है। इस कारण वे अक्सर अलग-अलग प्रकार की परेशानियों से घिरा हुआ रहता है। अपनी परेशानियों और समस्याओं से निजात पाने हेतु जातक ज्योतिषियों से मदद की उम्मीद करता है।
तो चलिए अब विस्तार से जानें आखिर कुंडली के किस भाव में कौन सा ग्रह उच्च का होता है।
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ग्रह निम्नलिखित भावों में उच्च के होते हैं:-
संख्या | ग्रह | उच्च भाव |
1. | सूर्य ग्रह | लग्न यानी प्रथम भाव में |
2. | चंद्र ग्रह | द्वितीय भाव में |
3. | राहु ग्रह | तृतीय भाव में |
4. | गुरु ग्रह | चतुर्थ भाव में |
5. | बुध ग्रह | छठे भाव में |
6. | शनि ग्रह | सप्तम भाव में |
7. | केतु ग्रह | नवम भाव में |
8. | मंगल ग्रह | दशम भाव में |
9. | शुक्र ग्रह | द्वादश भाव में |
नोट: अगर आपने ध्यान दिया हो तो ये देखा होगा कि कोई भी ग्रह पंचम, अष्टम और एकादश (5-8-11) भाव में उच्च का नहीं होता है।
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उच्च ग्रह से संबंधित इन बुरे कार्यों को करने से मिलते है नीच के फल
- सूर्य ग्रह :
जिस जातक की कुंडली में यदि सूर्य उच्च का हो और वो जातक अनाचारी, अत्याचारी या गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त, अपने कार्यक्षेत्र पर उच्च अधिकारियों, पिता या पिता तुल्य व्यक्तियों से दुर्व्यवहार करता हो तो उच्च के सूर्य भी उसे जीवन भर नीच का फल देते हैं।
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- चंद्र ग्रह :
जिस जातक की कुंडली में चन्द्रमा उच्च के हो, परंतु वो जातक यदि अपनी मां, नानी या दादी का अनादर करता हो तो उस व्यक्ति के लिए उच्च के चंद्र का प्रभाव क्षीण हो जाता है। जिससे उसे अपने जीवन में चंद्र के नकारात्मक प्रभावों से अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
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- मंगल ग्रह :
जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में मंगल उच्च का हो और वो व्यक्ति अपने मित्र, भाई या भाई तुल्य लोगों के साथ विश्वासघात या गलत व्यवहार करता हो तो, उच्च के मंगल उसे नीच का फल देना शुरू कर देते हैं। इससे उसे जीवन भर मंगल के हानिकारक प्रभावों से परेशानी होती है।
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- बुध ग्रह :
किसी कुंडली में यदि बुध उच्च के हो और वो जातक किसी भी महिला, शिक्षकों, गुरुजनों, शिक्षा की सामग्री का निरादर या अपमान करें एवं गौ माता को कष्ट दे तो, उच्च के बुध का प्रभाव समाप्त हो जाता है। जिससे बुध अपने विपरीत फल देते हुए उसकी परेशानी बढ़ा देते हैं।
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- गुरु बृहस्पति ग्रह :
जन्म कुंडली में यदि गुरु बृहस्पति उच्च के हो और वो व्यक्ति किसी ब्राह्मण, देवी-देवता, घर के बड़े सदस्यों जैसे दादा, नाना या पिता आदि का निरादर या अपमान करे तो उच्च बृहस्पति भी नीच का फल देने लगते हैं।
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- शुक्र ग्रह :
किसी कुंडली में शुक्र उच्च के हो और वो व्यक्ति किसी गाय या गोवंश को सताए या फिर किसी भी स्त्री का अपमान करें या अपने जीवनसाथी को प्रताड़ित करें तो उच्च के शुक्र भी नीच के समान प्रभाव देते हुए उस व्यक्ति को कष्ट देना शुरू कर देते हैं।
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- शनि ग्रह :
किसी उच्च शनि वाली कुंडली में यदि जातक मांसाहार व शराब का सेवन करे, कुत्तों को सताए, घर के बड़े पुरुष सदस्यों जैसे ताऊ अथवा चाचा का अपमान या अनादर करें या कार्यस्थल पर काम चोरी करें तो कुंडली में उच्च के शनि अपना शुभ प्रभाव न देते हुए उस जातक को नीच का फल देना शुरू कर देते हैं।
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