हिन्दू धर्म में पितृपक्ष को बेहद आवश्यक माना जाता है। इस दौरान मुख्य रूप से मृत पूर्वजों के लिए पिंडदान की क्रिया की जाती है। आपकी जानकारी के लिए बता दें की पंद्रह दिनों तक चलने वाले पितृपक्ष की शुरुआत बीते 13 सितंबर से हो चुकी है जो की आने वाले 28 सितंबर को समाप्त होगा। इस दौरान आपको मुख्य रूप से विधि पूर्वक अपने पितरों का पिंडदान की क्रिया करनी होती है। आज हम आपको पितृपक्ष से जुड़ी कुछ ख़ास महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं।
पितृपक्ष से संबंधित आवश्यक तथ्य
आपको बता दें कि हिन्दू धर्म के अनुसार आश्विन माह के कृष्णपक्ष के पंद्रह दिनों के अंतराल को ही पितृपक्ष माना जाता है।पितृपक्ष की शुरुआत शुक्लपक्ष के पूर्णिमा से होता है और इसकी समाप्ति अश्विन माह की अमावस्या तिथि को होती है।
- बता दें कि कृष्णपक्ष में श्राद्धपक्ष के दौरान उन पितरों का पिंडदान नहीं किया जा सकता है जिनकी मृत्यु पूर्णिमा तिथि को हुई हो।हालांकि अमावस्या तिथि को मुख्य रूप से पिंडदान की क्रिया सभी पूर्वजों के लिए की जा सकती है।
बता दें कि वराहपुराण में इस बात का जिक्र मिलता है कि वास्तव में श्राद्ध क्रिया तभी करनी चाहिए जब आपके भीतर अपने पूर्वजों के लिए श्रद्धा की भावना हो।श्राद्ध का वास्तविक अर्थ श्रद्धा ही बताया गया है।वो क्रिया जो आप मृत पितरों के लिए श्रद्धाभाव से करते हैं। - हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार मुख्य रूप से मनुष्य के जीवन में तीन ऋण बताए गए हैं। जिनमें से एक ऋण है पित्र ऋण, ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान पितरों के लिए पिंड दान की क्रिया करने से पित्र ऋण से मुक्ति मिलती है। इसलिए श्रद्धा भाव के साथ श्राद्ध पक्ष के दौरान अपने पूर्वजों का पिंडदान अवश्य करना चाहिए।
- इसके साथ ही साथ हमारे शास्त्रों में इस बात का भी जिक्र मिलता है कि पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध क्रिया और पितरों का तर्पण करने से पितृ ऋण से मनुष्य को हमेशा के लिए मुक्ति मिल सकती है। हिंदू धर्म के प्रमुख कर्मकांड में भी इस बात का उल्लेख मिलता है।
- वैदिक काल से पितृपक्ष के दौरान अपने पूर्वजों का स्मरण और उनकी पूजा का विधान है। 15 दिन की इस अवधि के क्रम में मुख्य रूप से अपने पूर्वजों को याद करना और उनकी आत्मा की शांति के लिए पिंड दान की क्रिया करना बेहद अहम माना गया है।
- आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हिंदू धर्म में पितृपक्ष की शुरुआत वास्तव मे ऋषि निमि किया था।उनके बारे में ऐसा कहा जाता है कि वह दत्तात्रेय के प्रथम संतान थे और उन्होंने ही पूर्वजों के लिए पितृपक्ष की शुरुआत की थी
- ऋषि निम्मी के अनुसार पितृपक्ष के दौरान पूर्वजों के लिए पिंड दान की क्रिया करने से वह आपके और भी करीब आते हैं और आपके जीवन पर उनका विशेष आशीर्वाद बना रहता है। इसलिए पिंडदान की क्रिया में विशेष रूप से चावल के इस्तेमाल से पिंड बनाए जाते हैं जिन्हें पूर्वजों का प्रतीक मानकर उनके लिए तर्पण की क्रिया की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इससे पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- हिंदू धर्म में अपने पूर्वजों का पिंडदान करने का अधिकार केवल बेटे को ही दिया गया है। विशेष परिस्थितियों में बेटी का बेटा यानी कि नाती के द्वारा भी पिंड दान की क्रिया संपन्न करवाई जा सकती है ।इसके अलावा मृत व्यक्ति के सामान्य गोत्र का कोई भी व्यक्ति उनके लिए तर्पण की क्रिया कर सकता है।
महज एक रात में बनकर तैयार हुआ था देश का ये प्रसिद्ध मंदिर !
बहरहाल अब इस पितृपक्ष आप भी इन बातों को ध्यान में रखकर अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान की क्रिया विधि पूर्वक करके उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।