मीराबाई जयंती विशेष: जानें उनके जीवन से जुड़ी रोचक बातें !

श्री कृष्ण की दीवानी और उनकी परम भक्त “मीराबाई” को शायद ही कोई नहीं जानता होगा ! 13 अक्टूबर, रविवार को मीराबाई की लगभग 521वाँ जन्म वर्षगांठ मनाई जाएगी। हिन्दू कलैंडर के मुताबिक शरद पूर्णिमा के दिन मीराबाई जी की जयंती मनाई जाती है। मीराबाई मशहूर संत होने के साथ-साथ एक हिन्दू आध्यात्मिक कवियित्री भी थी। आज भी लोग मीराबाई के प्रेम रस में डूबे भजन को गाते हैं। इसके साथ ही कई हिन्दी फिल्मों में भी मीराबाई द्वारा रचित पदों का इस्तेमाल किया गया है। मीराबाई की कविताओं और छंदों में श्री कृष्ण के लिए उनके प्रेम की अद्भुत झलक देखने को मिलती है। तो चलिए आपको इस लेख के द्वारा मीराबाई के जीवन से जुड़ी कुछ दिलचस्प जानकारी आपको देते हैं। 

मीराबाई पूजा मुहूर्त

पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – अक्टूबर 13, 2019 को 12:36 बजे(भोर से)

पूर्णिमा तिथि समाप्त – अक्टूबर 14, 2019 को 02:38 बजे (भोर तक)

मीराबाई का प्रारंभिक जीवन

श्री कृष्ण की सबसे बड़ी साधक और महान कवियत्री मीराबाई जी के जन्म के बारे में कोई भी पुख्ता जानकारी नहीं है, लेकिन विकिपीडिया के अनुसार उनका जन्म संवत् 1573(1516ई.) विक्रमी में राजस्थान के जोधपुर जिले के बाद कुडकी गांव में रहने वाले एक राठौर राजपूत परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम रत्न सिंह था, जो कि एक छोटे से राजपूत रियासत के राजा थेमीरा जी जब बहुत छोटी थी, तभी उनकी माता का देहांत हो गया, जिसके बाद उनकी परवरिश उनके दादा राव दूदा जी ने की। राव दूदा सिंह जी राव जोधाजी राठौर के वंशज थे, जिन्होंने जोधपुर की स्थापना की थी। मीरा बाई के दादा एक धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे और भगवान विष्णु के घोर साधक थे। बचपन से ही दादा के साथ समय गुज़ारने के कारण मीराबाई पर अपने दादा जी का गहरा असर पड़ा था। मीराबाई बचपन से ही कृष्ण भक्ति में रुचि लेने लगी थीं।

मीराबाई जी का विवाह चितौड़ के महाराजा राणा सांगा के बड़े बेटे और  उदयपुर के महाराणा कुमार भोजराज के साथ हुआ था। विवाह के कुछ सालों पश्चात ही मीराबाई के पति भोजराज की एक युद्ध के दौरान मौत हो गई, जिसके बाद वे श्री कृष्ण को पति मानकर हर समय उनकी ही आराधना में लीन रहने लगी थी।

मीराबाई की साहित्यिक देन 

मीराबाई एक महान आध्यात्मिक कवियत्री थी,जिन्होंने श्री कृष्ण के प्रेम रस में डूबकर अनेकों कविताओं, पदों एवं छंदों की रचना की थी। मीराबाई जी की रचनाओं में उनका श्री  कृष्ण के प्रति अटूट प्रेम का भाव साफ तौर पर झलकता है। मीराबाई ने अपनी रचनाएं कई भाषा शैली जैसे कि- राजस्थानी, ब्रज और गुजराती भाषा में लिखी थी। आज भी लोग मीरा की रचनाओं और उनके भजनों को पूरी तन्मयता से गाते हैं। नरसी जी का मायरा, मीराबाई की मलार,गीत गोविंद टीका, राग सोरठ के पद, राग गोविंद, राग विहाग, गरबा गीत मीराबाई द्वारा लिखी गईं कुछ प्रसिद्ध रचनाएं हैं। इसके अलावा मीराबाई के गीतों का संकलन “मीराबाई की पदावली” नामक ग्रंथ में किया गया है। 

मीराबाई की मृत्यु 

कुछ पौराणिक कथाओं के मुताबिक मीराबाई ने अपने जीवन का आखिरी समय द्धारका में बिताया था। माना जाता है कि द्धारकाधीश मंदिर में श्री कृष्ण के प्रेम भाव में डूबी मीरा  भजन-कीर्तन कर रही थी, तभी वे श्री कृष्ण के पवित्र हृदय में समा गईं।

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