कुंवारी युवतियों के लिए ख़ासा मायने रखता है संजा पर्व, जानें महत्व और विशेषता !

जहाँ एक तरफ भादो माह की पूर्णिमा तिथि से पितृपक्ष की शुरुआत होती है। पितृपक्ष विशेष रूप से उत्तर भारत में पितरों के आत्मा की शांति के लिए मनाया जाता है। दूसरी तरफ इसी दौरान महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान और मालवा निमाड़ में संजा पर्व मनाया जाता है। इस पर्व की शुरुआत भी भादो माह की पूर्णिमा तिथि से होती है। इस दौरान कुंवारी युवतियां विशेष रूप से संजा देवी की पूजा अर्चना करती है और व्रत रखती हैं। आज हम आपको मुख्य रूप से संजा पर्व का महत्व, इसकी विशेषता और इससे जुड़े अन्य प्रमुख तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं।

संजा पर्व का महत्व और विशेषता

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, इस पर्व की शुरुआत मुख्य रूप से गणेश विसर्जन के दूसरे दिन से होती है। महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान के लोक त्योहारों में से एक इस पर्व को विशेष महत्ता दी जाती है। भादो माह की पूर्णिमा तिथि से आरंभ होने वाले इस त्यौहार का अंत सर्वपितृ अमावस्या के दिन होता है। ये पर्व संजा माता को समर्पित माना जाता है। कुंवारी युवतियां सोलह दिनों के इस व्रत को विशेष रूप से विवाह में आने वाले रुकावटों को दूर करने के लिए रखती हैं। इस पर्व को मुख्य रूप से अच्छी स्मृतियों और भविष्य की योजनाओं का संगम माना जाता है। अपने पसंदीदा योग्य वर की चाहत में इस पर्व को कुंवारियां कन्याएं बहुत ही हर्षोउल्लास के साथ मनाती हैं। सोलह दिन के इस पर्व के दौरान विशेष रूप से घर के एक कोने को गोबर से लीपा जाता है और वहां विभिन्न प्रकार के फूलों से संजा देवी की पूजा की जाती है। इसके साथ ही साथ हर दिन एक अलग प्रकार का चित्र बनाया जाता है। इस त्यौहार की समाप्ति सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्धपक्ष के समाप्ति के साथ होती है। 

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बता दें कि, इस त्यौहार को महाराष्ट्र और गुजरात में गुलाबाई, राजस्थान में साँझाफूल और हरियाणा और बज्र में सांझी के नाम से जाना जाता है। 

इस पर्व से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण तथ्य इस प्रकार है 

  • बीते 13 सितंबर से संजा पर्व की शुरुआत हुई है, जो की आने वाले 28 सितंबर को समाप्त होगी। इस दौरान विवाह योग्य कुंवारी कन्याएं संजा माता का व्रत रखती हैं और दीवार पर गोबर से लीप कर उसके ऊपर रंग बिरंगी चित्र से संजा बनाती हैं। 
  • संजा व्रत मुख्य रूप से कुंवारी युवतियों द्वारा अच्छे वर की प्राप्ति के लिए रखा जाता है। इसके साथ ही साथ इस व्रत को ज्ञान और स्त्री शक्ति पाने के लिए भी रखा जा सकता है। 
  • महाराष्ट्र और गुजरात के लोक मान्यता के अनुसार सांझ यानि की शाम के समय में साँझा देवी की पूजा की जाती है। इसलिए इस त्यौहार को संजा और देवी माँ को साँझा देवी के नाम से जाना जाता है। 
  • धार्मिक मान्यता के अनुसार सांझा देवी को भगवान् ब्रह्मा मानसी पुत्री माना जाता है। इसके साथ ही साथ उन्हें देवी दुर्गा और पार्वती का रूप भी माना जाता है। 
  • भारत के विभिन्न राज्यों में साँझा देवी को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। उनके कुछ प्रसिद्ध नाम हैं सांजी, सांझी, संजा और संइया। 
  • इस पर्व के आखिरी दिन सोलह दिनों तक रंग बिरंगे फूलों से सजाये गए संजा को किसी पवित्र नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है। 

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