जानें अघोरा चतुर्दशी व्रत का महत्व और इससे संबंधित ख़ास पहलुओं को !

हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भादो माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अघोरा चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। इस चतुर्दशी को कई जगहों पर डगयाली भी कहा जाता है। ये पर्व मुख्य रूप से दो दिनों तक मनाया जाता है। पहले दिन को छोटी अघोरी और दूसरे दिन को बड़ी अघोरी चतुर्दशी कहा जाता है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार अघोरी चतुर्दशी को ही कुशाग्रहणी अमावस्या भी कहा जाता है। आज हम आपको इस दिन एक विशेष महत्व और इससे जुड़ी अहम पहलुओं के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। आइये जानते हैं अघोरी चतुर्दशी और कुशाग्रहणी अमावस्या से जुड़ी अहम बातों को।

अघोरी चतुर्दशी का महत्व

अघोरा चतुर्दशी को मुख्य रूप से हिमाचल प्रदेश, असम, सिक्किम, उत्तराखंड और नेपाल में मनाया जाता है। इस दिन खासतौर से कुश या दूर्वा को विशेष रूप से धरती से उखाड़कर एकत्रित करके रखना विशेष फलदायी माना जाता है। अघोरी चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान ध्यान कर पूजा पाठ करने का विधान है। इसके साथ ही साथ इस दिन जप करना और पित्तरों की शांति के लिए कपड़े और भोजन दान करना महत्वपूर्ण माना जाता है। हिन्दू धार्मिक शास्त्रों के अनुसार इस दिन विशेष रूप से सुबह स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए और जल एवं कुश लेकर दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके अपने सभी पित्तरों को जल अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने से जीवन में सफलता आती है और परिवार के सुख शांति में इजाफा होता है।

अघोर चतुर्दशी को पित्तर पूजा के लिए मुख्य माना जाता है

अघोर चतुर्दशी के दिन खासतौर से पित्तरों से जुड़े कार्य किये जाते हैं। इस दिन पित्तरों के आत्मा की शांति के लिए व्रत रखना और विधि विधान के साथ उनकी पूजा करना ख़ासा महत्वपूर्ण माना जाता है। हमारे शास्त्रों के अनुसार हर अमावस्या तिथि के स्वामी पित्तर होते हैं इसलिए इस दिन उनकी पूजा को महत्व दिया जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार आश्विन माह के कृष्ण पक्ष में आने वाले पितृ पक्ष की शुरुआत अघोर चतुर्दशी के दिन से ही हो जाती है। इस दिन सभी देवताओं में शिव जी की पूजा करना श्रेष्ठ माना जाता है।

अघोर चतुर्दशी पूजा विधि

जैसा की नाम से ही स्पष्ट है अघोर चतुर्दशी को अघोरियों के लिए ख़ास माना जाता है। इस दिन शिव के उपासक विशेष रूप से शिव की आराधना करते हैं। हिमाचल के ग्रामीण इलाकों में ऐसी मान्यता है कि आज के दिन भूत-प्रेत भी स्वतंत्र घूमते हैं इसलिए लोग बुरी आत्माओं के प्रभाव से बचने के लिए अपने-अपने घर के दरवाजे और खिड़कियों पर कांटेदार झाड़ियां लगा देते हैं।  हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में ये परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है। दूसरी तरफ इस दिन को कुशग्रहणी अमावस्या के रूप में मनाये जाने के कारण, इस दिन कुश और जल लेकर पितरों की ख़ास पूजा की जाती है। सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करने के बाद हाथों में जल लेकर पित्तरों को अर्पित किया जाता है। इस दौरान इस्तेमाल किये जाने वाले कुश को तोड़ने में इस बात का ख़ास ध्यान रखा जाता है कि वो कहीं से कटा और सूखा ना हो।

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