रंगो के त्योहार होली की 8 दिन पहले होलाष्टक प्रारंभ हो जाता है। फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी को प्रारंभ होने वाला होलाष्टक इस वर्ष 21 मार्च से प्रारंभ हो चुका है जो होलिका दहन के दिन तक चलेगा। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि, होलाष्टक के दौरान कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किया जाना चाहिए। इसके बाद जब हो होलाष्टक समाप्त होता है यानी होलिका दहन के बाद ही किसी भी प्रकार का मांगलिक कार्य व्यक्ति को दोबारा शुरू करना चाहिए।
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अब जानते हैं कि, होली के 8 दिन पहले ही क्यों शुरू होता है होलाष्टक और क्या होता है होलाष्टक की इस अवधि का महत्व। सबसे पहले जानते हैं,
होलाष्टक क्या है?
हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि, होलाष्टक के दिन ही भगवान शिव ने प्रेम के देवता कामदेव को भस्म कर दिया था। ऐसा इसलिए क्योंकि कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग करने की कोशिश की थी जिसके चलते महादेव बेहद क्रोधित हो गए थे। इसी दौरान उन्होंने अपने तीसरे नेत्र से काम देवता को भस्म कर दिया था।
हालांकि कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या किसी गलत मंशा से नहीं की थी। उन्होंने देवी देवताओं के हित के लिए यह कदम उठाया था। ऐसे में जैसे ही देवताओं को कामदेव की मृत्यु के बारे में पता चला तो वो शोक में डूब गए। इसके बाद कामदेव की पत्नी देवी रति ने भगवान भोलेनाथ से प्रार्थना की और अपने मृत पति को वापस लाने की मनोकामना मांगी। जिसके बाद भगवान शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया था।
वर्ष 2021 में होलाष्टक 21 मार्च से 28 मार्च तक रहने वाला है। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि, जब कोई शुभ काम शुभ मुहूर्त में किया जाए तो उसका उत्तम फल प्राप्त होता है लेकिन, होलाष्टक में यदि हम कोई भी मांगलिक या शुभ काम करते हैं तो इससे व्यक्ति को ढेरों कष्ट और समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा ऐसे व्यक्तियों के जीवन में कलह, बीमारी और अकाल मृत्यु का साया भी मंडराने लगता है।
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होलाष्टक से जुड़ी की कहानी
पौराणिक कथा के अनुसार बताया जाता है कि, यह वही समय है जब हिरण्यकश्यप ने 7 दिनों तक अपने पुत्र प्रहलाद को ढेरों यातनाएं दी और आठवें दिन अपनी बहन की गोद में बिठाकर प्रहलाद को भस्म करने की कोशिश की। हालांकि भगवन विष्णु की कृपा से प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ और तभी से होलाष्टक मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई। इन 8 दिनों में दाहकर्म की तैयारियां शुरू की जाती है। होलाष्टक के बाद रंगो वाली होली पर प्रहलाद के जीवित बचने की खुशियां मनाई जाती है उसके बाद मांगलिक कार्य में शुरू हो जाते हैं।
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होलाष्टक में क्या करें क्या ना करें
होलाष्टक में कोई भी शुभ मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए। हालांकि इस दौरान आप देवी देवता की पूजा कर सकते हैं इससे शुभ फल प्राप्त होते हैं। इसके अलावा यथाशक्ति के अनुसार दान पुण्य करें। ऐसा करने से आपको जीवन में सफलता प्राप्त होगी।
होलाष्टक के दौरान क्या ना करें: इस दौरान किसी भी तरह का मांगलिक और शुभ काम ना करें। गृह प्रवेश करने से बचे, मुंडन कराने से बचे, भूमि पूजन से बचें।
होलाष्टक में क्या किया जाता है?
होलाष्टक से ही होली की तैयारियां प्रारंभ हो जाती है। ऐसे में होलाष्टक की शुरुआत में दो डंडों को स्थापित किया जाता है। इनमें से एक डंडा जहां होलिका का प्रतीक माना जाता है वहीं दूसरा डंडा प्रहलाद का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद होलिका दहन वाली जगह को गंगाजल से शुद्ध कर रोजाना यहां पर गोबर के उपले, लकड़ी, घास इत्यादि चीज़ें डालकर इसे बड़ा किया जाता है और होलिका दहन के दिन इसे जला दिया जाता है।
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