Kumbh Mela 2021: जानिए कुंभ मेला 2021 का महत्व, अनुष्ठान और पूजन महत्व

आस्था और धर्म का प्रतीक कुंभ मेला 2021 (Kumbh Mela 2021) दुनिया भर में आयोजित होने वाले किसी भी धार्मिक प्रयोजनों में सबसे भव्य और शानदार होता है। कुंभ का यह पर्व हर 12 साल के अंतराल पर चार में से एक पवित्र नदी के तट पर आयोजित किया जाता है। यह चार पवित्र नदियां है हरिद्वार में गंगा नदी, उज्जैन में शिप्रा नदी, नासिक में गोदावरी नदी और इलाहाबाद में त्रिवेणी संगम। इस वर्ष कुंभ मेला हरिद्वार में मनाया जाएगा। महाकुंभ (MahaKumbh) में देश और दुनिया से लोग आकर पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगाते हैं।

देश के विद्वान और जाने-माने ज्योतिषियों से फोन पर बात करने का मौका हाथ से ना  जाने दें 

क्या है कुंभ (Kumbh) का महत्व? 

कुंभ (Kumbh) का मतलब होता है कलश। ज्योतिष शास्त्र में कुंभ राशि भी है और इसका चिन्ह भी कलश ही होता है। ज्योतिष के मुताबिक जब गुरु बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं उस समय के दौरान कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। इन 4 जगहों पर होने वाले कुंभ मेलों में से सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण प्रयाग का कुंभ मेला माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं की बात करें तो, कुंभ मेले की शुरुआत अमृत मंथन से जोड़कर देखी जाती है। समुद्र मंथन के दौरान उत्पन्न हुए 14 रत्नों में से एक था अमृत। 

इन सभी रत्नों को देवताओं और राक्षसों के बीच में बांटने का निर्णय हुआ। हालांकि इन सभी रत्नों में जो रत्न सबसे महत्वपूर्ण और मूल्यवान माना गया वह अमृत था। ऐसे में उसे पाने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध छिड़ गया। तब असुरों से अमृत को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अमृत से भरा वह पात्र गरुड़ (भगवान विष्णु के वाहन) को दे दिया। असुरों से बचाने के लिए गरुड़ उस अमृत के पात्र को लेकर हवा में उड़ गए। हवा में उड़ते समय उस पात्र से अमृत की कुछ बूंदें छलक कर नीचे इलाहाबाद, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में गिरी। मान्यता है कि, तभी से प्रत्येक 12 साल के अंतराल पर इन शुभ स्थानों पर शुभ कुंभ मेले का आयोजन किया जाता रहा है। 

कहा जाता है देवताओं और दैत्यों में यह युद्ध 12 स्थानों पर 12 दिनों तक चला था। इसके अलावा अमृत 12 जगहों पर गिरा था जिनमें से चार जगह धरती पर है और बाकी आठ जगह स्वर्ग लोक में मानी जाती है और यही वजह है कि, सामान्यता 12 वर्ष के बाद ही हर एक स्थान पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। हालांकि इस वर्ष एक 11 साल बाद ही कुंभ मेले का आयोजन किया जा रहा है और इसकी वजह बताई जा रही है कि, क्योंकि 2022 में गुरु कुंभ राशि में नहीं होंगे और इसी के चलते इस वर्ष का कुंभ मेला 1 साल पहले ही किया जा रहा है। 

बृहत् कुंडली से जानें काल सर्प दोष, मंगल दोष, साढ़े साती जैसे दोषों के लिए उपाय

कुंभ शब्द का अर्थ 

कुंभ मेला (Kumbh Mela) दो शब्दों से जुड़-कर बना है। पहला कुंभ जो अमृत पात्र या कलश से लिया गया है और दूसरा मेला जिसका मतलब होता है कोई सभा या आयोजन। समुद्र मंथन के दौरान अमृत के कलश से जहां-जहां अमृत की बूंदे गिरी थी वहां वहां कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। हांलाकि कुंभ मेले की शुरुआत कब हुई और किसने की इस बात की कोई भी प्रामाणिक जानकारी किसी हिंदू ग्रंथ में नहीं मिलती है। फिर भी माना जाता है कि, कुंभ मेले का इतिहास तकरीबन 850 साल पुराना है। 

जहां कुछ लोगों का मत यह है कि, कुंभ की शुरुआत आदि शंकराचार्य ने की थी तो वहीं, कुछ मान्यताओं, ग्रंथों और मतों के अनुसार कुंभ मेला की शुरुआत समुद्र मंथन से ही हो गई थी। इसके अलावा कुंभ मेले के बारे में जो प्राचीनतम वर्णन है उसके अनुसार कुंभ मेला सम्राट हर्षवर्धन के समय का माना जाता है। 

शास्त्रों के अनुसार महाकुंभ (Maha Kumbh) का इतिहास 

शास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि, पृथ्वी का एक साल देवताओं का एक दिन होता है। ऐसे में हर 12 साल के बाद महा कुंभ मेले (Maha Kumbh Mela) का आयोजन किया जाता है। 

समुद्र मंथन और महाकुंभ का इतिहास 

जैसा हमने पहले भी बताया कि, कुछ कथाओं के अनुसार ऐसा कहा और माना जाता है कि, कुंभ मेले की शुरुआत समुद्र मंथन से ही हुई है। जिसके अनुसार जब राक्षसों से अमृत बचाने के लिए गरुड़ अमृत का कलश लेकर उड़ रहे थे उस दौरान धरती पर कुछ कुल 4 जगहों पर अमृत गिरा था। ऐसे में इन चारों स्थानों पर 3 साल के बाद कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है और 12 साल के बाद यह मेला वापस अपने पहले स्थान पर वापस पहुंच जाता है। यानी कि, अगर पहला कुंभ हरिद्वार (Haridwar Kumbh ) में होता है तो, 3 साल बाद दूसरा कुंभ प्रयाग (Prayag Kumbh) में होता है, इसके बाद तीसरा कुंभ 3 साल के बाद उज्जैन (Ujjain Kumbh) में किया जाता है, और फिर तीन साल बाद चौथा कुंभ नासिक (Nasik Kumbh) में होता है और यह कड़ी ऐसे ही चलती रहती है।

कुंभ मेला 2021 (Kumbh Mela 2021) के शाही स्नान कब-कब होंगे? 

अब जानते हैं इस वर्ष होने वाले हरिद्वार कुंभ 2021 (Haridwar Kumbh 2021) में शाही स्नान किस-किस दिन होंगे? 

पहला शाही स्नान होगा 11 मार्च 2021 महाशिवरात्रि को 

दूसरा शाही स्नान होगा सोमवती अमावस्या के दिन 12 अप्रैल 2021 को 

तीसरा शाही स्नान होगा 14 अप्रैल को इस दिन मेष संक्रांति भी है 

महाकुंभ (Maha Kumbh) का आखिरी और चौथा शाही स्नान होगा 27 अप्रैल को यानी वैशाखी के दिन। 

Haridwar Kumbh Mela 2021 के 6 प्रमुख स्नान

पहला स्नान गुरुवार, 14 जनवरी 2021 मकर संक्रांति

दूसरा स्नान गुरुवार, 11 फरवरी मौनी अमावस्या

तीसरा स्नान मंगलवार, 16 फरवरी बसंत पंचमी

चौथा स्नान शनिवार, 27 फरवरी माघ पूर्णिमा

पांचवा स्नान मंगलवार, 13 अप्रैल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (हिन्दी नववर्ष)

छठा स्नान बुधवार, 21 अप्रैल राम नवमी

कुंभ मेला, अर्ध कुंभ और सिंहस्थ मेला 

हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ मेले के बीच में लगभग छह साल का अंतराल में अर्ध कुंभ आयोजित किया जाता है। जैसा कि, नाम से ही साफ है अर्ध का अर्थ होता है आधा और अर्ध कुंभ का अर्थ होता है आधा कुंभ। अर्ध कुंभ हर 6 साल में संगम के तट पर आयोजित किया जाता है। हिंदू धर्म में कुंभ मेला (Kumbh Mela) का बड़ा महत्व बताया गया है। कुंभ पर्व हर 3 साल के अंतराल के बाद हरिद्वार से शुरू होता है। हरिद्वार के बाद प्रयाग, नासिक और उज्जैन में कुंभ पर्व मनाया जाता है। सिंहस्थ मेला, का अर्थ होता है जब सिंह राशि में बृहस्पति और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करने वाले होते हैं तब उज्जैन में कुंभ का आयोजन होता है। 

  • हरिद्वार में कुंभ मेला: बृहस्पति जब कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं तब हरिद्वार में कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। हरिद्वार और प्रयाग में 2 कुंभ मेलों के बीच में 6 वर्ष का अंतराल होता है और इस दौरान अर्ध कुंभ का भी आयोजन किया जाता है।
    ” पद्‍मिनी नायके मेषे कुम्भ राशि गते गुरोः । गंगा द्वारे भवेद योगः कुम्भ नामा तथोत्तमाः।। “
  • प्रयाग में कुंभ मेला: प्रयाग का कुंभ मेला इसलिए महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह मेला 12 साल के बाद गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर आयोजित किया जाता है। जब मेष राशि के चक्र में गुरु बृहस्पति,सूर्य और चंद्र का मकर राशि में प्रवेश होता है तब प्रयाग में कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।
    ” मेष राशि गते जीवे मकरे चन्द्र भास्करौ । अमावस्या तदा योगः कुम्भख्यस्तीर्थ नायके ।। “
  • नासिक में कुंभ मेला: नासिक और त्रयंबकेश्वर में 12 वर्षों के बाद सिंहस्थ कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। जब बृहस्पति सिंह राशि में प्रवेश करते हैं तब गोदावरी के तट पर कुंभ पर्व नासिक में आयोजित किया जाता है।
    ” सिंह राशि गते सूर्ये सिंह राशौ बृहस्पतौ । गोदावर्या भवेत कुम्भों जायते खलु मुक्‍तिदः ।। “
  • उज्जैन में कुंभ मेला: जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं तब उज्जैन में कुंभ मेला आयोजित किया जाता है।
    ” मेष राशि गते सूर्ये सिंह राशौ बृहस्पतौ । उज्जियन्यां भवेत कुम्भः सदामुक्‍ति प्रदायकः ।। “

कुंभ स्नान 

महा कुंभ (Maha Kumbh) का सबसे आकर्षक पहलू होता है यहां का स्नान। कुंभ स्नान (Kumbh Snan) के दौरान सूर्योदय के समय संतों का जुलूस रथों और हाथियों के साथ निकाला जाता है। इसके बाद पवित्र नदी में संत डुबकी लगाते हैं। इसी पर्व को स्नान पर्व भी कहा जाता है। कुंभ स्नान के बारे में ऐसी मान्यता है कि, जो कोई भी व्यक्ति यहां आकर स्नान करता है उसके पाप और जीवन के कष्ट धुल जाते हैं। इसके अलावा उस व्यक्ति की आत्मा पवित्र हो जाती है। इसी महत्व के चलते बहुत से लोग यहां अपने पूर्वजों का पिंडदान भी करते हैं।

कुंभ मेला और कल्पवास 

कुंभ मेले में कल्पवास का अत्यधिक महत्व बताया गया है। कल्पवास माघ के महीने में सबसे ज्यादा महत्व रखता है और यह पौष माह के 11वें दिन से माघ माह के 12वें दिन तक रहता है। कल्पवास का यह समय धैर्य, अहिंसा और भक्ति का प्रतीक माना जाता है। इस दौरान लोग दिन में केवल एक ही समय भोजन करते हैं कल्पवास के बारे में ऐसी मान्यता है कि, जो कोई भी व्यक्ति कल्पवास की प्रतिज्ञा करता है उसे अगले जन्म में राजा का जन्म मिलता है।

कुंभ मेले का अनुष्ठान 

दुनिया भर में आयोजित होने वाले किसी भी मेले या आयोजन से भव्य होता है। यह कुंभ मेला इसमें अलग-अलग जाति, धर्म, देश और दुनिया के लोग दूर-दूर से हिस्सा लेने आते हैं। आस्था और भक्ति के इस पर्व के बारे में ऐसी मान्यता चली आ रही है कि, जो कोई भी व्यक्ति सच्ची निष्ठा के साथ कुंभ में स्नान करता है उसके पाप दूर होते हैं और साथ ही वह व्यक्ति जीवन मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। जिसके चलते प्रत्येक कुंभ मेले में हर उम्र, तबके और श्रेणी के लोग शामिल होते हैं। कुंभ मेले को हिंदू तीर्थ में बेहद ही पवित्र माना गया है। इसमें लाखों पुरुष, महिलाएं, संत, साधु, बच्चे, बूढ़े भाग लेते हैं। 

इसके अलावा कुंभ मेला मेले को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हो चुकी है। चीन के ह्वेन सांग पहले व्यक्ति थे जिन्होंने कुंभ मेले का उल्लेख अपनी डायरी में किया था। इतिहास के पन्नों में दर्ज कुंभ मेले में लाखों लोग एकत्रित होते हैं। समय के साथ लोगों की आस्था इस में बढ़ती चली गई और विभिन्न धर्म और संप्रदाय के लोग भी इसमें शामिल होने लगे हैं। यूं तो कुंभ मेले का हर एक दिन बेहद शुभ माना गया है लेकिन कुछ खास दिनों पर स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है। इसके अलावा कुंभ मेले में शाही स्नान का भी आयोजन किया जाता है। 

इस शाही स्नान में रथ और जुलूसों के साथ संत और अखाड़ों की टुकड़िया हिस्सा लेती हैं। इसके बाद शोभा यात्रा निकाली जाती है। इस दिन सूर्योदय से पहले ही साधु संत पवित्र नदियों में डुबकी लगाते हैं और उसके बाद आमजन के लिए भी स्नान की इजाज़त मिल जाती है। शाही स्नान का यह नज़ारा देखने लायक होता है। हालांकि इसके कुछ नियम भी है। जैसे बहुत से लोग कुंभ स्नान के लिए जाते समय या कुंभ स्नान के बाद अपनी कोई बुरी आदत का त्याग करते हैं। बुरी आदत नहीं है तो ऐसी स्थिति में लोग अपने केश (बाल) का दान करके आते हैं। इसके बाद नदी में प्रवेश करने से पहले पुष्प और पैसे चढ़ाए जाते हैं और स्नान के बाद पंडितों को वस्त्र आदि दान दिया जाता है। 

कोई दुविधा कर रही है परेशान? ज्योतिषियों से पूछें प्रश्न और जानें हल 

गंगा स्नान और पूजन महत्व 

हिंदू धर्म में गंगा नदी को माता का दर्जा दिया गया है। ऐसे में कुंभ मेला 2021 (Kumbh Mela 2021) में भी गंगा स्नान का बेहद महत्व बताया जाता है। गंगा के जल को अमृत के समान माना जाता है। इसके अलावा मकर संक्रांति, कुंभ मेला, और गंगा दशहरा के समय गंगा स्नान पूजन, दान और दर्शन का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि, जो कोई भी व्यक्ति रीति-रिवाज के साथ गंगा स्नान करता है उसे यश और सम्मान की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही उनके सभी पाप और दुख दूर होते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं गंगा पूजन और गंगा स्नान से मांगलिक दोष से पीड़ित जातकों को भी लाभ प्राप्त होता है। गंगा स्नान करने से व्यक्ति को अशुभ ग्रहों का प्रभाव समाप्त होता है। इसके अलावा अमावस्या के दिन जो कोई भी व्यक्ति गंगा स्नान या अपने पितरों के निमित्त तर्पण और पिंडदान करता है उसे अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

रत्न और अन्य ज्योतिषीय उत्पाद खरीदने के लिए विजिट करें एस्ट्रोसेज ऑनलाइन शॉपिंग स्टोर

आशा करते हैं आपको यह लेख पसंद आया होगा। एस्ट्रोसेज के साथ बने रहने के लिए आपका धन्यवाद।

Dharma

बजरंग बाण: पाठ करने के नियम, महत्वपूर्ण तथ्य और लाभ

बजरंग बाण की हिन्दू धर्म में बहुत मान्यता है। हनुमान जी को एक ऐसे देवता के रूप में ...

51 शक्तिपीठ जो माँ सती के शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों के हैं प्रतीक

भारतीय उप महाद्वीप में माँ सती के 51 शक्तिपीठ हैं। ये शक्तिपीठ माँ के भिन्न-भिन्न अंगों और उनके ...

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र (Kunjika Stotram) से पाएँ दुर्गा जी की कृपा

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र एक ऐसा दुर्लभ उपाय है जिसके पाठ के द्वारा कोई भी व्यक्ति पराम्बा देवी भगवती ...

12 ज्योतिर्लिंग: शिव को समर्पित हिन्दू आस्था के प्रमुख धार्मिक केन्द्र

12 ज्योतिर्लिंग, हिन्दू आस्था के बड़े केन्द्र हैं, जो समूचे भारत में फैले हुए हैं। जहाँ उत्तर में ...

दुर्गा देवी की स्तुति से मिटते हैं सारे कष्ट और मिलता है माँ भगवती का आशीर्वाद

दुर्गा स्तुति, माँ दुर्गा की आराधना के लिए की जाती है। हिन्दू धर्म में दुर्गा जी की पूजा ...

Leave a Reply

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा.