माघ पूर्णिमा को जन्मे थे संत रविदास, आलौकिक शक्तियों से मृत मित्र को किया था जीवित

गुरु रविदास जयंती हिंदू पंचांग के अनुसार माघ महीने की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इस साल 2020 में रविदास जयंती 9 फरवरी यानि रविवार को है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह फरवरी के महीने में मनाई जाती है।  इस साल 2020 में उनका 643वां जन्मदिवस मनाया जा रहा है। इस दिन उनके अनुयायी नगर कीर्तन निकालते हैं और प्रात: काल पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। इस दिन मंदिरों और गुरुद्वारों में खास प्रार्थना की जाती है। संत रविदास के जीवन के कई ऐसे प्रेरक प्रसंग है जिनसे हम सुखी जीवन की सीख ले सकते हैं। ये दिन उनके अनुयायियों के लिए किसी उत्सव से कम नहीं होता है। उनके जन्म स्थान पर लाखों भक्त पहुंचते है और वहां बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।

संत रविदास का जन्म 14वीं शताब्दी में वाराणसी के एक चर्मकार परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम श्रीमती कलसा देवी और पिता का नाम श्रीसंतोख दास जी था। संत रविदास ने सभी को भाईचारे, शांति की सीख दी थी। उन्होंने कभी किसी से दान-दक्षिणा नहीं ली थी। वह अपना पालन-पोषण करने के लिए जूते बनाने का काम करते थे। संत रविदास ने लोगों को बिना भेदभाव के आपस में प्रेम करने की शिक्षा दी। उन्होंने अपने दोहों और पदों के माध्यम से समाज में जागरूकता लाने का प्रयास भी किया। वे समाज में फैली जातिगत ऊंच-नीच के धुर विरोधी थे। उनका कहना था कि सभी एक भगवान की संतान है, जन्म से कोई भी जात लेकर पैदा नहीं होता ।

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माघ पूर्णिमा

हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ माह में पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि को माघ पूर्णिमा कहते हैं। माघ पूर्णिमा का हिंदू कैलेंडर में विशेष महत्व है। इस दिन गंगा स्नान और दान करने  की मान्यता है। माना जाता है कि ऐसा करने से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं। इस साल 2020  में माघ पूर्णिमा 9 फरवरी यानि रविवार को है।

पूर्णिमा आरम्भ फरवरी 8, 2020 को 16:03:05 से 
पूर्णिमा समाप्त फरवरी 9, 2020 को 13:04:09 पर 

माघ पूर्णिमा का महत्व

मान्यता है कि माघ माह में देवता पृथ्वी पर आते हैं और मनुष्य रूप धारण करके प्रयाग में स्नान, दान और जप करते हैं। इसलिए कहा जाता है कि इस दिन प्रयाग में गंगा स्नान करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में लिखे कथनों के अनुसार यदि माघ पूर्णिमा के दिन पुष्य नक्षत्र हो तो इस तिथि का महत्व और बढ़ जाता है। इलाहाबाद में हर साल माघ मेला लगता है, जिसे ‘कल्पवास’ कहा जाता है। कल्पवास का समापन माघ पूर्णिमा के दिन स्नान के साथ होता है।

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रविदास जी कैसे बने संत

एक कथा के अनुसार, रविदास जी अपने साथी के साथ खेल रहे थे। एक दिन की बात है, वह खेलने के बाद अगले दिन वापस खेलने नहीं आया तो रविदास जी उसे ढूंढने चले गए, तब उन्हें पता चलता है कि उनकी मृत्यु हो गई है। यह सुनकर रविदास जी बहुत दुखी होते हैं। वह अपने दोस्त के पास जाकर बोलते हैं कि ‘उठो ये समय सोने का नहीं है, चलो मेरे साथ खेलो’। रविदास जी की बात सुनकर उनका मृत दोस्त उठकर खड़ा हो जाता है। आपको सुनकर हैरानी होगी लेकिन बता दें ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि संत रविदास को बचपन से ही आलौकिक शक्तियां प्राप्त थी। हालांकि समय के साथ संत रविदास ने अपनी इन शक्तियों का प्रयोग भगवान राम और कृष्ण की भक्ति में किया। इस तरह धीरे-धीरे लोगों का भला करते हुए वह संत बन गए।

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आज भी गूंजते हैं संत रविदास के दोहे

कई इतिहासकारों का मानना है कि संत रविदास का जन्म 1450ईं में और मृत्यु 1520ईं में हुई थी। संत रविदास की याद में वाराणसी में कई स्मारक बनाए गए हैं। रविदास जयंती के दिन यहां पर रविदास जी के दोहे गूंजते हैं। संत रविदास ने हमेशा भाईचारे और सहिष्णुता की सीख दी थी। कहावतें हैं कि भगवान ने धर्म की रक्षा करने के लिए संत रविदास को धरती पर भेजा था।

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