भगवान कृष्ण से संबंधित हिंदू धर्म में कई व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं। इन्हीं में से एक त्यौहार है गोपाष्टमी। गोपाष्टमी का ये त्योहार मुख्य रूप से भगवान कृष्ण का गायों के प्रति प्रेम का प्रतीक माना गया है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से सप्तमी तक गाय, गोप और गोपियों की रक्षा के लिए भगवान श्री कृष्ण ने जिस तरह से गोवर्धन पर्वत को अपने हाथों पर उठा लिया था जिसके बाद, आठवें दिन भगवान इंद्र का अहंकार भंग हुआ तब कामधेनु ने भगवान कृष्ण जी का अभिषेक किया और उसी दिन से उसका नाम उनका नाम गोविंद पड़ा। बताया जाता है तभी से अष्टमी को गोपाष्टमी का पर्व मनाए जाने की परंपरा की शुरुआत हुई।
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इस वर्ष गोपाष्टमी का पर्व 22 नवंबर 2020 को मनाया जा रहा है।
गोपाष्टमी का समय रविवार, नवम्बर 22, 2020 को
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 21, 2020 को 09:48 पी एम बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – नवम्बर 22, 2020 को 10:51 पी एम बजे
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क्यों मनाते हैं गोपाष्टमी?
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन के बारे में ऐसी मान्यता है कि, जब भगवान इंद्र के प्रकोप से ब्रज वासियों को बचाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाया था जिसके चलते अंत में भगवान इंद्र का अहंकार टूटा, इसी उपलक्ष में बृज क्षेत्र और संपूर्ण भारत में गोपाष्टमी का उत्सव मनाए जाने की परंपरा की शुरुआत हुई।
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गोपाष्टमी पूजन विधि
- गोपाष्टमी के दिन गाय और बछड़े के साथ-साथ गोपाल की पूजा का विधान है।
- मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि, जो कोई भी व्यक्ति इस दिन गायों को भोजन खिलाता है उनकी सेवा करता है और शाम को गायों का पंचोपचार विधि से पूजन करता है उसके समस्त मनोकामना भगवान श्री कृष्ण अवश्य पूरी करते हैं।
- आप चाहे तो इस दिन गाय दान या गायों की रक्षा के लिए कोई कदम उठा सकते हैं। इससे भी गोपाष्टमी का संपूर्ण फल मिलता है।
- गोपाष्टमी के दिन अगर श्यामा गाय को भोजन कराएं बेहद ही शुभ फलदायी बताया गया है।
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सम्पूर्ण पूजन विधि
- गोपाष्टमी पर ब्रह्म मुहूर्त में गाय और उसके बछड़े को नहला कर उनको तैयार करें।
- इसके बाद गौ माता की परिक्रमा करके उन्हें बाहर ले जाए और उनके साथ कुछ दूर तक चले।
- इस दिन ग्वालों को दान देना बेहद शुभ माना गया है।
- शाम को जब गाय घर लौटती है तो उसकी पूजा-अर्चना करें।
- इस दिन गाय को हरा चारा, हरी मटर, गुड इत्यादि खिलाएं।
- अगर आपके पास गाय नहीं है तो आप गौशाला जा कर यह सारे नियम पालन कर सकते हैं।
- इस दिन गाय को गंगाजल, फूल चढ़ाएं, और दिया जलाकर उनकी पूजा करें।
- इसके अलावा गौशाला में गायों के खाने की चीजें और अन्य वस्तुएं भी दान करनी चाहिए।
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गोपाष्टमी के दिन संतान की दीर्घायु के कामना के लिए करें ये उपाय
गोपाष्टमी के दिन महिलाएं अपने बच्चों की दीर्घायु की कामना के लिए गौ माता की पूजा करती है। इस दिन इसे महिलाएं गौ माता के नीचे से निकलकर गौ माता की परिक्रमा करती है। कहा जाता है इस दिन जो कोई भी गौ माता के नीचे से निकलता है उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती है। साल में आने वाली सभी अष्टमी में गोपाष्टमी को सबसे महत्वपूर्ण दर्जा दिया गया है।
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गोपाष्टमी व्रत कथा
गोपाष्टमी का ये त्यौहार गोकुल, मथुरा, ब्रज, वृंदावन, इत्यादि जगहों पर बेहद ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस व्रत से जुड़ी कथा के बारे में कहा जाता है कि जो कोई भी व्यक्ति इस व्रत कथा को सुनता है या अन्य लोगों को सुनाता है उसे सभी मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। तो आइए जानते हैं गोपाष्टमी की व्रत कथा।
प्राचीन काल की बात है, जब भगवान कृष्ण 6 साल के हुए तो उन्होंने मां यशोदा से जिद की कि अब मैं बड़ा हो गया हूं। अब मैं बछड़े नहीं चराने नहीं जाऊंगा बल्कि अब मैं गौ माता के साथ जाऊंगा। इस पर यशोदा मां ने उन्हें कई बार समझाया कि अभी तुम छोटे हो ऐसे में बछड़ा ही चराओ लेकिन बार-बार भगवान कृष्ण के ज़िद करने पर यशोदा मां ने उनसे कहा कि, ठीक है लेकिन इस बारे में एक बार जाकर बाबा से पूछ लो।
भगवान कृष्ण नंद बाबा के पास गए और उन्होंने उनसे कहा, ‘बाबा अब मैं बछड़े नहीं बल्कि गाय चराने जाया करूंगा।’ नंद बाबा ने भी उन्हें कई बार समझाने की कोशिश की लेकिन बाल गोपाल के हट के आगे उनकी एक नहीं चल पाई। तब नंद बाबा ने उनसे कहा कि, ‘ठीक है लेकिन पहले जाकर पंडित जी को बुला लाओ ताकि उनसे गौ चारण के लिए शुभ मुहूर्त पता कर सकें।’
बाबा की बात सुनकर बाल गोपाल दौड़ते हुए पंडित जी के पास गए और उन्होंने कहा कि, ‘पंडित जी आपको नंद बाबा ने गौ चारण का मुहूर्त देखने के लिए बुलाया है। कृपया करके आप उन्हें आज का ही कोई शुभ मुहूर्त बता दें। अगर आप ऐसा करेंगे तो मैं आपको ढेर सारा माखन दूंगा।’
पंडित जी नंद बाबा के पास पहुंचे और पंचांग में देखकर उस दिन के लिए ही गौ चारण के लिए शुभ मुहूर्त बता दिया। इसके अलावा पंडित जी ने यह भी कहा कि अगर आज नहीं तो अब गौ चारण का शुभ मुहूर्त एक साल बाद का है।
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ऐसे में पंडित जी की बात पर विचार करते हुए बाल गोपाल को गौ-चारण की आज्ञा दे दी गयी। भगवान कृष्ण उसी दिन से गाय चराने जाने लगे। कहा जाता है जिस दिन से बाल गोपाल ने गौ चारण आरंभ किया था वह दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी का दिन था। भगवान ने उसी दिन गाय चराना आरंभ किया था जिसके चलते इसे गोपाष्टमी का दिन कहा गया।
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