गायत्री मंत्र
“ॐ भूर्भव: स्व:
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।”
सनातम धर्म में मंत्र एक ऐसा उपाय है जिसके द्वारा मनुष्य जाति ही नहीं वरन् समस्त जीवों का कल्याण संभव है। इन मंत्रों में गायत्री मंत्र की महिमा अपार है। यह सबसे ज्यादा प्रभावी और चमत्कारिक मंत्र है। शास्त्रों में गायत्री मंत्र के महत्व को “ॐ” और महामृत्युंजय मंत्र के समक्ष माना गया है। गायत्री मंत्र के द्वारा सवित्र देव की उपासना की जाती है। अतः इस मंत्र को सवित्री भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म में ऐसा विश्वास है कि जो व्यक्ति इस मंत्र को सच्चे मन से और पूर्ण विधि विधान के साथ करता है तो उसे ईश्वरीय वरदान प्राप्त होता है। तो आइए जानते हैं गायत्री मंत्र की महिमा-
कैसे हुई गायत्री मंत्र की उत्पत्ति?
गायत्री मंत्र की उत्पत्ति कैसे हुई? या गायत्री महामंत्र कैसे बना? कई बार लोगों के ज़ेहन में इस प्रकार के सवाल कौंधते होंगे। शास्त्रों के अनुसार विश्वामित्र गायत्री मंत्र के ऋषि हैं और सर्वप्रथम यह मंत्र ऋग्वेद में उद्धृत हुआ है। गायत्री मंत्र ऋग्वेद के सात छंदों में से एक है और इस मंत्र में तीन पद (त्रिपदा, वै, गायत्री) हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब छंद के रूप में सृष्टि के प्रतीक की कल्पना की जाने लगी तो संपूर्ण विश्व को त्रिपदा गायत्री के स्वरूप माना गया। वहीं जब गायत्री के रूप में जीवन की प्रतीकात्मक व्याख्या हुई तो गायत्री छंद की बढ़ती हुई महिमा से गायत्री मंत्र की रचना हुई।
जानिए गायत्री मंत्र का अर्थ
गायत्री मंत्र का अर्थ मनुष्य जीवन के वास्तविक उद्देश्य को दर्शाता है। इस मंत्र में हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के स्वरूपों का वर्णन करते हुए उनसे प्रार्थना करते हैं कि, “हे ईश्वर! आप हमें सदैव सच्चे मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते रहें।” इस मंत्र के द्वारा हमने ईश्वर को प्राण स्वरूप, दुख हर्ता, पाप नाशक, सुख देने वाला, श्रेष्ठ और तेज को धारण करने वाला कहा है और उनके इसी रूप को आत्मसात करने की भी कामना की है।
क्या है गायत्री मंत्र का महत्व?
गायत्री मंत्र की असीम शक्ति के कारण इसे महामंत्र कहा जाता है। यह सबसे अधिक फलदायी मंत्रों में से एक है। आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करने का भी यह सबसे बड़ा श्रोत है। गायत्री मंत्र को जपते समय यदि मन में सच्ची श्रद्धा हो और इसे पूर्ण विधि विधान के साथ जपा जाए, तो व्यक्ति सीधे ईश्वर से संपर्क साध सकता है। इसके साथ ही यह मंत्र संकटों और विभिन्न प्रकार के कष्टों का निवारण है। यह मंत्र मनुष्य जीवन से अंधकार और नकारात्मक शक्तियों को दूर कर उसका कल्याण करता है।
गायत्री मंत्र जप विधि
- गायत्री मंत्र जपने से पूर्व स्नान करना चाहिए
- ब्रह्म मुहूर्त में गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए
- प्रदोषकाल में इस इस मंत्र का जाप करना चाहिए
- मंंत्र जप करने के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करें
- मंत्र जाप की संख्या कम से कम 108 होनी चाहिए
- पूजा स्थल पर ईश्वर का ध्यान करते समय मंत्र का जाप करें
- मंत्र जपते समय अधिक तेज़ आवाज़ न करें
गायत्री मंत्र के लाभ
गायत्री मंत्र के जाप से उपासक को विभिन्न चमत्कारिक लाभ प्राप्त होते हैं। जो इस प्रकार है-
- सकारात्मक उर्जा एवं उत्साह में होती है वृद्धि :- गायत्री मंत्र सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करने का महाउपाय है। इसके जपने से व्यक्ति के विचारों में सकारात्मक का भाव पैदा होता है। साथ ही उसके अंदर अच्छे कार्यों के प्रति उत्साह की भावना जागृत होती है।
- चेहरे पर आता है तेज :- यदि जिस व्यक्ति के द्वारा गायत्री महामंत्र का जाप नियमित रूप से किया जाए तो उस व्यक्ति के चेहरे पर तेज और ओजस नज़र आता है। उसकी त्वचा में निखार आता है और उसके व्यक्तित्व का विकास होता है।
- नकारात्मक भाव होते हैं दूर :- गायत्री मंत्र जपने से नकारात्मक विचार दूर होते हैं और मन सही दिशा की ओर अग्रसर होता है। यदि आपके मन में नकारात्मक विचार आते हैं तो आपको गायत्री मंत्र का जाप अवश्य ही करना चाहिए।
- धर्म और सेवा कार्यों में लगता है मन :- गायत्री मंत्र का जाप करने वाले व्यक्ति के अंदर सामाजिक सेवा भाव जागृत होता है। दान-धर्म के कार्यों में उसकी सक्रिय भागीदारी रहती है। निश्चित रूप से व्यक्ति को उसका पुण्य भी प्राप्त होता है।
- सपने को साकार करने की मिलती है शक्ति :- यदि दैनिक रूप से गायत्री मंत्र का जाप किया जाए तो व्यक्ति की आत्म-शक्ति बढ़ती है। उसके आत्म विश्वास में वृद्धि होती है। इस प्रकार की शक्ति से मनुष्य अपनी इच्छाओं और सपने को पूरा करने में सक्षम होता है।
हम जानते हैं कि गायत्री मंत्र की महिमा अपरम्पार है जिसको शब्दों में समेट पाना कठिन है। परंतु हमें यह आशा है की गायत्री मंत्र से जुड़ा यह लेख आपको पसंद आया होगा।