मतान्तर अनुसार दक्षिण भारत में गायत्री जयंती, श्रावण माह की पूर्णिमा तिथि को हर वर्ष मनाई जाती है। हालाँकि इसकी तिथि को लेकर अलग-अलग जगहों पर भिन्न-भिन्न मत हैं। इसलिए जहाँ कुछ स्थानों पर गायत्री जयंती ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भी मनाए जाने का विधान है तो वहीं दक्षिण भारत में इसे श्रावण माह की पूर्णिमा तिथि को धूमधाम के साथ मनाया जाती है।
गायत्री जयंती पर हुआ था मां गायत्री का अवतार
मान्यता है कि इसी दिन माँ गायत्री का अवतरण हुआ था। शास्त्रों में माँ गायत्री को चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्व) की देवी बताया गया है। इसी कारण उन्हें वेद माता भी कहा जाता है। ऐसे में गायत्री जयंती के इस विशेष दिन माँ गायत्री की पूजा-आराधना पूरे विधि-विधान से की जाती है। माँ के भक्त इस ख़ास दिन गायत्री माता को प्रसन्न करने और उनकी कृपा पाने के लिए गायत्री मंत्र का जाप, गायत्री चालीसा का पाठ और गायत्री आरती का गान करते हुए नज़र आते हैं।
गायत्री जयंती का धार्मिक महत्व
बता दें कि माँ गायत्री को हिन्दू संस्कृति की जन्मदात्री या जन्ममाता के रूप में देखा जाता है। क्योंकि चारों वेदों और श्रुतियों की उत्पत्ति माँ गायत्री के द्वारा ही की गई थी। उनकी महत्वता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मां गायत्री देवी ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं की आराध्य देवी बताई जाती हैं। जिस कारण ही उन्हें देवमाता की उपाधि भी प्राप्त है। शास्त्रों अनुसार माता पार्वती, मां सरस्वती और लक्ष्मी जी माँ गायत्री के ही स्वरूप हैं।
माँ गायत्री लेकर पौराणिक मान्यता
जैसा सभी जानते हैं कि माँ गायत्री को ब्रह्मा जी की पत्नी भी माना जाता हैं। इसके पीछे एक पौराणिक कथा का उल्लेख मिलता है, जिसके अनुसार एक बार ब्रह्मा जी किसी यज्ञ में शामिल होने जा रहे थे लेकिन किसी कारण से उनकी पत्नी सावित्रि देवी उस यज्ञ में मौजूद नहीं हो पाईं। लेकिन मान्यताओं अनुसार किसी भी धार्मिक कार्यों में एक विवाहित पुरुष के साथ उसकी पत्नी का होना अधिक शुभ और फलदायी होता है। इसलिए ब्रह्मा जी ने यज्ञ में शामिल होने के लिए वहाँ उपस्थित माँ गायत्री से विवाह किया और इस तरह उन दोनों का विवाह सम्पन्न हुआ।
गायत्री जयंती की पूजा विधि करते समय इन बातों का रखें ध्यान
माना जाता है कि गायत्री जयंती पर व्रत रखने वालों को पूरे विधि-विधान से और सही पूजा विधि के अनुसार ही व्रत रखना चाहिए, तभी उनको इस व्रत से शुभाशुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस व्रत को लेकर कुछ नियम भी निर्धारित किये गए हैं, तो चलिए जानते हैं कि आखिर गायत्री जयंती पर इस व्रत को रखते समय किन विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए:-
- इस दिन व्रत करने के लिए आपको प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए।
- इसके पश्चात एक चौकी या पाट पर स्वच्छ लाल कपड़ा बिछाएं।
- इसके बाद उस जगह पर मां गायत्री की मूर्ति, चित्र या श्री गायत्री यंत्र स्थापित करें और उसपर गंगाजल का छिड़काव कर उसे शुद्ध करें।
- फिर उसके समक्ष एक देसी घी का दीपक जलाएं।
- दीपक जलाने के बाद गायत्री जयंती व्रत रखने का पूरा श्रद्धा भाव से संकल्प लें।
- इसके बाद मां गायत्री की पूजा की तैयारी करें।
- पूजा में मां गायत्री को फल, फूल तुलसी पत्र, सुपारी तथा चंदन, आदि अर्पित करें।
- इसके बाद गायत्री व्रत की कथा सुने और मुमकिन हो तो दूसरों को भी सुनाए।
- कथा समाप्त होने के बाद मां गायत्री की विधि-विधान अनुसार आरती करें।
- इसके बाद मां गायत्री को फलों का या पंचमेवाओं का भोग लगाएँ और वो प्रसाद दूसरों में भी बाटें।
- गायत्री जयंती के दिन क्रोध न करें और मन को शांत ही रखें। इस दौरान द्वेष, ईर्ष्या या किसी भी तरह के नकारात्मक विचारों को अपने मन में न आने दें।
- व्रत के दिन से लेकर इसके पारणा के दिन तक सोबर अर्थात संयमित जीवन ही व्यतीत करें और पूरी तरह ब्रह्मचर्य जीवन का पालन करें।
- इस दिन व्रती को पूरा दिन निराहार ही रहना होता है, हालांकि अगर ऐसा मुमकिन न हो तो फलाहार किया जा सकता है।
रात्रि में भी गायत्री चालीसा का पाठ करें। - गायत्री मन्त्र का जप करके हवन का आयोजन करें।
- श्री आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना भी इस दिन शुभ माना गया है।
- इस दिन अन्न, गुड़ एवं गेहूँ का दान करना बेहद शुभ माना जाता है।
- इस दिन भंडारे का आयोजन अथवा लोगों को मीठा शरबत बांटें।
गायत्री मंत्र
ॐ भूर् भुवः स्वः।
तत् सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
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