आज 12 जुलाई 2019 से अगले पांच दिनों तक गौरी व्रत है। माँ पार्वती को समर्पित इस व्रत का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व हैं। “गौरी” माँ पार्वती का ही एक अन्य नाम है जिसका अर्थ होता है अत्यंत सुंदर। इस व्रत को मुख्य रूप से भारत के गुजरात सहित अन्य पूर्वी राज्यों में रखा जाता है। इस व्रत की ख़ासियत ये है की इसे विवाहित और कुँवारी दोनों स्त्रियां रख सकती है। आइये जानते हैं इस व्रत के महत्व, इसकी पूजा विधि और अन्य तथ्यों के बारे में।
गौरी व्रत 2019 का आरंभ
हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से गौरी व्रत का प्रारंभ होगा जो अगले पांच दिनों तक मनाया जाएगा। यानि की आज 12 जुलाई से आरंभ होकर इस व्रत की समाप्ति 16 जुलाई को पूर्णिमा के दिन होगी। गुजरात में इसे मोराकत व्रत या जया पार्वती व्रत के नाम से भी जाना जाता है।
गौरी व्रत का महत्व
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष से आरंभ गौरी व्रत मुख्य रूप से कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति और सौभाग्य एवं समृद्धि के लिए रखती हैं। हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार माता गौरी को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त था। इसलिए इस दिन कुंवारी और विवाहित स्त्रियां व्रत रखकर माँ गौरी को प्रसन्न करने का प्रयास करती हैं और उनसे अखंड सौभाग्यवती रहने का वर मांगती हैं। जिस प्रकार से माँ गौरी और भगवान शिव का साथ जन्म जन्मांतर का है, उसी प्रकार से व्रती महिलाएं भी उनसे ऐसे सौभाग्य की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं।
गौरी व्रत की पूजा विधि
- गौरी व्रत के दिन सबसे पहले महिलाओं को सूर्योदय से पूर्व स्नान करने के बाद नए वस्त्र धारण कर इस व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
- संकल्प लेते समय महिलाओं को विशेष रूप मन ही मन इन वाक्यों को दोहराना चाहिए “मैं अत्यंत आनंदित होकर एक वक़्त के भोजन का त्याग कर व्रत का संकल्प लेती हूँ , मेरे सभी पापों का नाश हों और मेरे सौभाग्य में वृद्धि हो।”
- घर के मंदिर में गौरी और शिव जी मूर्ती स्थापित करें।
- एक कलश में मिट्टी डालकर उसमें जौ की कुछ बीजें डाल दें, अगले पांच दिनों तक पूजा के समय इस कलश में पानी डालें और विधि पूर्वक पूजा करें।
- इस व्रत का संकल्प एक दिन, तीन दिन और पांच दिनों के लिए लिया जा सकता है।
- माँ गौरी की पूजा के लिए कुमकुम, अश्वगंधा, कस्तूरी और लाल रंग के फूलों का प्रयोग करें।
- प्रसाद के रूप में आप नारियल, अनार या कोई भी मौसमी फल चढ़ा सकते हैं।
- पूजा विधि समाप्त होने के बाद इस व्रत से संबंधित कथा सुनें और ब्राह्मणों को भोजन करवाएं।
इस प्रकार से विधि पूर्वक गौरी व्रत रखने से माता पार्वती प्रसन्न होती हैं और बदले में अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद देती हैं।