गणगौर पूजा 2021 : जानें वो कथा जिसकी वजह से महिलाएं इस पर्व को अपने पति से गुप्त रखती हैं

सनातन धर्म में पति की लम्बी आयु के लिए महिलाएं काफी व्रत और पूजा करती हैं। इन्हीं त्योहारों की तरह एक और ख़ास पर्व है, गणगौर पूजा। वैसे गणगौर पूजा सिर्फ शादीशुदा महिलायें ही नहीं करती हैं बल्कि कुंवारी लड़कियां भी अच्छे वर को पाने के लिए यह पूजा करती हैं। भारत में ख़ास तौर से इसे मध्यप्रदेश, राजस्थान और हरियाणा में मनाया जाता है।

गणगौर शब्द असल में दो शब्दों से मिलकर बना है ; गण जिसका अर्थ यहाँ इस शब्द में भगवान शिव से है और गौर जो कि माता पार्वती के लिए इस्तेमाल किया गया है। नाम की ही तरह इस पर्व में भी भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की पूजा की जाती है। इस पर्व में महिलाओं और कुंवारी लड़कियां भगवान् शिव और माता पार्वती के मिटटी की मूर्तियां बनाती हैं और उनकी दूर्वा और फूल से पूजा की जाती है। यह पूजा 17 दिनों तक चलती है लेकिन इस पूजा की सबसे ख़ास बात यह है कि इस पूजा के बारे में महिलायें अपने पति तक को नहीं बताती हैं और न ही उन्हें इस पर्व का प्रसाद खाने को देती हैं। दरअसल इसके पीछे एक कहानी है और आज हम इस लेख में आपको गणगौर पर्व से जुड़ी वही कहानी बताने वाले हैं। लेकिन उससे पहले गणगौर पर्व से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी आपको दे देते हैं।

गणगौर पर्व तिथि और शुभ मुहूर्त 

गणगौर व्रत पूजा प्रारंभ : 29 मार्च 2021 दिन सोमवार 

गणगौर व्रत पूजा समाप्त : 15 अप्रैल 2021 दिन गुरुवार

तृतीया तिथि प्रारंभ तिथि : 14 अप्रैल 2021 को 

समय : दोपहर 12 बजकर 47 मिनट पर 

तृतीया तिथि समाप्त तिथि : 15 अप्रैल 2021 

समय : दोपहर 03 बजकर 27 मिनट पर 

पूजा का शुभ मुहूर्त : 15 अप्रैल 2021 को सुबह 05 बजकर 15 मिनट से सुबह 06 बजकर 52 मिनट तक

गणगौर पर्व की कथा

मान्यता है कि एक बार माता पार्वती, भगवान शिव और नारद मुनि किसी गांव पहुंचे। गांव के लोगों को जब यह बात पता चली कि उनके गांव देवता पधारे हैं तो उन्होंने उन्हें प्रसन्न करने के लिए पकवान बनाने शुरू कर दिए। इसी प्रक्रिया में गांव की अमीर महिलायें देवताओं को प्रसन्न करने के लिए पकवान बनाती हैं जबकि गरीब महिलायें देवताओं को श्रद्धा सुमन अर्पित करती हैं। गरीब महिलाओं की सच्ची आस्था देख कर माँ पार्वती उन्हें सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद देती हैं। तभी दूसरी तरफ से अमीर घरों की महिलायें पकवान लेकर देवताओं के पास पहुँचती हैं जिसके बाद सभी महिलायें माता पार्वती  से पूछती हैं कि अब आप इन महिलाओं को क्या आशीर्वाद देंगी। ऐसे में माँ पार्वती उन्हें कहती हैं कि जो भी महिला उनके लिए मन में सच्ची आस्था लेकर आयी है उन सभी के पात्रों पर माँ के रक्त के छींटे पड़ेंगे। इसके बाद माता पार्वती ने अपनी ऊँगली काटकर अपना थोड़ा सा लहू उन महिलाओं के बीच छिड़क दिया जिससे उन महिलाओं को निराश होकर घर वापस जाना पड़ता है जो मन में किसी भी तरह का लालच लेकर देवताओं से मिलने आयीं थीं।

इसके बाद माता पार्वती भगवान शिव और नारद मुनि को वहीं छोड़ कर नदी में स्नान करने के लिए चली जाती हैं। वहां नदी के तट पर माता भगवान शिव की रेत की प्रतिमा बनाकर पूजा करती हैं और उन्हें रेत के लड्डू भोग लगाती हैं। जब वो वापस पहुँचती हैं तो भगवान शिव उनसे देर से आने की वजह पूछते हैं। तब माता पार्वती उन्हें बताती हैं कि नदी से लौटते हुए उनके कुछ रिश्तेदार मिल गए थे जिन्होंने उनके लिए दूध भात बनाया था, उसी को खाने में उन्हें देर हो गयी। लेकिन शिव जी तो अन्तर्यामी ठहरे। उन्हें सारी बात पता थी इसलिए वो माता पार्वती के रिश्तेदारों से मिलने की इच्छा जताते हैं। तब माता पार्वती अपनी माया से वहां एक महल तैयार कर देती हैं जहां भगवान शिव और नारद मुनि की खूब आवभगत होती है। भगवान शिव और नारद मुनि वहां से प्रसन्न होकर लौट रहे होते हैं तब भगवान शिव नारद मुनि से कहते हैं कि वे अपनी रुद्राक्ष की माला वहीं महल में भूल आये हैं इसलिए नारद मुनि वापस जाकर उनके लिए वह माला ले आएं। नारद मुनि वहां पहुंचते हैं तो वहां उन्हें कोई महल नहीं मिलता और भगवान शिव की माला उन्हें एक पेड़ की टहनी पर टंगी हुई मिलती है। जब नारद मुनि भगवान शिव को यह बात बताते हैं तो भगवान शिव मुस्कुराते हुए नारद मुनि को माता पार्वती की माया के बारे में बताते हैं। बस इसी के बाद से गणगौर पर्व मनाने की परंपरा शुरू हो गयी जहाँ पत्नी अपने पति को देवताओं की पूजा के बारे में कोई जानकारी नहीं देती हैं।

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