हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। एकादशी का व्रत हर माह में दो बार होता है, इस तरह साल भर में एकादशी की 24 तिथियां होती है, लेकिन अधिकमास और मलमास आने पर एकादशी व्रत तिथियों की संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। वैसे तो शास्त्रों में सभी एकादशी का विशेष महत्व है, लेकिन षटतिला एकादशी पर दान पुण्य करना बेहद शुभ माना गया है। हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है, कि यदि व्यक्ति षटतिला एकादशी के दिन लक्ष्मीपति भगवान विष्णु की उपासना कर उपवास करता है और अपनी सामर्थ्य अनुसार दान करता है, तो उस पर विष्णु जी की विशेष कृपा होती है।
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षटतिला एकादशी व्रत मुहूर्त
षटतिला एकादशी- 7 फरवरी, रविवार, साल- 2021
पारण मुहूर्त- 07:05:20 से 09:17:25 तक- 8 फरवरी
अवधि- 2 घंटे 12 मिनट तक
षटतिला एकादशी व्रत का महत्व
षटतिला एकादशी के दिन तिल का विशेष महत्व है। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि अगर इस दिन व्यक्ति 6 तरह के तिल का इस्तेमाल करता है, तो उसके सभी पापों का नाश हो जाता है, और उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। इस दिन तिल का इस्तेमाल करना बेहद फलदाई माना गया है। षटतिला एकादशी के दिन तिल का इस्तेमाल नहाने, उबटन लगाने, आहुति देने, तर्पण करने, दान करने, और खाने में करना बेहद शुभ माना गया है। ऐसी मान्यता है, कि यदि व्यक्ति षटतिला एकादशी के दिन व्रत, पूजा-पाठ कर तिल का इस्तेमाल और दान करता है, तो उसे मानसिक और शारीरिक सभी तरह की पापों से मुक्ति मिल जाती है।
षटतिला एकादशी व्रत की पूजा विधि
- प्रात: काल उठकर भगवान विष्णु की पूजा करें।
- दिन भर व्रत करने के बाद रात में भगवान विष्णु की आराधना करें ।
- रात में जागरण करें, और हवन करें।
- अगले दिन द्वादशी पर प्रात: काल उठकर स्नान करें।
- साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें, और भगवान विष्णु को भोग लगाएं।
- पंडितों को भोजन कराएं, उसके बाद अन्न जल ग्रहण करें।
षटतिला एकादशी व्रत की रोचक कथा
एक समय की बात है, एक एक ब्राह्मण की स्त्री अपने पति की मृत्यु के उपरान्त अपना सारा वक्त भगवान विष्णु की अराधना में लगा रही थी। एक बार उसने पूरे महीने भगवान विष्णु की उपासना की, परंतु दान-पुण्य ना करने से उसका सारा पुण्य अधूरा ही रह गया। ऐसा देख लक्ष्मीपति भगवान विष्णु स्वंय उसकी कुटिया में एक भिक्षुक का वेश धारणकर पहुंचे, और उन्होंने स्त्री से भिक्षा मांगी, तब उसने भिक्षुक के हाथ में एक मिट्टी का ढेला थमा दिया।
यह देख भगवान विष्णु वहां से अपने बैकुंठ वापस लौट आए। कुछ समय बाद उस स्त्री की मृत्यु हो गई, और वह लोक पहुंची, तो अपनी कुटिया खाली देख घबराकर भगवान विष्णु के पास पहुंची, और कहने लगी, हे प्रभु…मैंने पूरा जीवन आपकी पूजा उपासना की फिर भी मुझे खाली कुटिया क्यों मिली, तब भगवान विष्णु ने उसे अन्न दान ना करने और उनके हाथ पर मिट्टी का ढेला देने की बात बताइए, और कहा कि जब देव कन्या तुमसे मिलने आएं, तो तुम तभी अपना द्वार खोलना जब वह तुम्हें षटतिला एकादशी व्रत की विधि बताएं। भगवान विष्णु के बताए अनुसार स्त्री ने ऐसा ही किया, जब देव कन्या उससे मिलने आईं, तो उसने उनसे षटतिला एकादशी के व्रत के बारे में जानकारी मांगी, और फिर पूरे विधि-विधान के साथ षटतिला एकादशी का व्रत किया, जिसके प्रभाव से उसकी कुटिया में अन्न भर गया। इसलिए ऐसी मान्यता है, कि जो भी व्यक्ति षटतिला एकादशी का व्रत कर तिल और अन्न दान करता है, उसे वैभव और मुक्ति की प्राप्ति हो जाती है।
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