दशहरा विशेष : ऐसे शुरू हुई थी रामलीला की परंपरा !

हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र त्यौहार शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। इस दौरान नौ दिनों तक देवी के नौ विभिन्न रूपों की पूजा अर्चना की जाती है। नवरात्रि के दसवें दिन को दशहरा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से कई जगहों पर रामलीला का आयोजन किया जाता है और रावण जलाया जाता है। बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाये जाने वाले इस त्यौहार पर हर साल रामलीला का आयोजन धूमधाम के साथ किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि, दशहरा पर रामलीला के आयोजन की शुरुआत कब और कैसे हुई। आज हम आपको रामलीला की परंपरा के शुरुआत के बारे में बताने जा रहे हैं।

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यहाँ से हुई थी रामलीला की शुरुआत 

पौराणिक तथ्यों के आधार पर देखें तो सबसे पहले रामलीला का आयोजन 18 वीं सदी में उत्तर प्रदेश के कानपुर में किया गया था। ऐसी मान्यता है कि, रामायण काल में भगवान श्री राम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा यही पकड़ा गया था। इसके बाद से ही कानपुर में विभिन्न जगहों पर रामलीला के मंचन का आयोजन किया जाने लगा। यहाँ आयोजित होने वाले परेड की रामलीला को कई दशक पुराना माना जाता है। यहाँ केवल स्थानीय और हिंदी भाषा में ही नहीं बल्कि पंजाबी भाषा में भी रामलीला का मंचन किया जाता है। यहाँ आयोजित होने वाले रामलीला के इतिहास की बात करें तो सबसे पहले इस परंपरा की शुरुआत वहां के राजा हिन्दू सिंह ने 1774 में की थी। उन्होनें कानपुर के जाजमऊ में सबसे पहले धनुष यज्ञ रामलीला की शुरुआत की थी। इसके बाद से ही कानपुर में इस परंपरा की शुरुआत हुई जो आज पूरे देश में फ़ैल चुकी है। 

इस तरह से किया गया था रामलीला का सबसे बड़ा मंचन 

साल 1876 में कानपुर के अनवरगंज में पहली बार बड़े स्तर पर रामलीला का आयोजन किया गया था। उस वक़्त इसका आयोजन वहां के राजा प्रयाग नारायण तिवारी ने करवाया था। इस रामलीला में उस समय के कई सारे स्वतंत्रा सेनानियों ने भी हिस्सा लिया था। इसी वर्ष परेड रामलीला समिति का भी गठन किया गया था। कुछ वर्षों के बाद महाराजा प्रयाग नारायण तिवारी ने तो रामलीला अध्यक्ष पद से अपना अधिकार वापस ले लिया, लेकिन उनके द्वारा प्रदान किया गए विभिन्न प्रकार के प्रॉप्स का इस्तेमाल आज भी रामलीला समिति द्वारा किया जाता है।

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ऐसे आगे बढ़ी रामलीला की परंपरा 

आपको बता दें कि, कानपुर के रामलीला को काफी ऐतहासिक माना जाता है। रामलीला की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए 1849 में शिवली के रामशाला मंदिर में इसका आयोजन किया गया। इस साल से उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से रामचरित मानस के आधार पर रामलीला का मंचन किया जाने लगा। गौरतलब है की, यहाँ हर साल बीस दिनों के लिए रामलीला का भव्य आयोजन किया जाता है। कानपुर के कैलाश मंदिर प्रांगण में भी भव्य रामलीला का आयोजन साल 1880 से किया जाने लगा। यहाँ आयोजित किये जाने वाले रामलीला की ख़ासियत यह है कि, दशहरा की सुबह यहाँ विशेष रूप से पहले रावण की पूजा होती है और उसके बाद रामलीला का मंचन किया जाता है।

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