दुर्गा पूजा प्रारंभ: जानें इस भव्य उत्सव का महत्व, तिथि और मुहूर्त

नवरात्रि की षष्ठी तिथि से दुर्गा पूजा का शुभारंभ हो जाता है। दुर्गा पूजा का यह भव्य महोत्सव मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा, झारखंड, में भव्य रूप से मनाया जाता है। यह त्यौहार प्रतिवर्ष बेहद ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है और इसकी शुरुआत भारतीय उपमहाद्वीप में हुई है। दुर्गा पूजा शरद नवरात्रि के दौरान मनाई जाती है। शरद नवरात्रि 9 दिनों तक चलती है और इसके छठे दिन से ही दुर्गा पूजा का आयोजन शुरू हो जाता है जो 10 दिनों तक मनाया जाता है।

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दुर्गा पूजा उत्सव के दौरान भक्त मां दुर्गा की पूजा अर्चना करते हैं। दुर्गा पूजा का यह उत्सव मां दुर्गा की असुर महिषासुर के ऊपर जीत के रूप में मनाया जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि इन 10 दिनों के दौरान मां दुर्गा अपने भक्तों को आशीर्वाद देने और उनके जीवन में सभी तरह की सुख संपत्ति का आशीर्वाद प्रदान करने के लिए धरती पर आती हैं।

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आगे बढ़ते हैं और जान लेते हैं दुर्गा पूजा से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां लेकिन, उससे पहले हम आपको दुर्गा पूजा 2021 के महत्वपूर्ण तिथियों की जानकारी प्रदान कर रहे हैं।

2021 में दुर्गा पूजा कब- दुर्गा पूजा 2021 तिथियां

महालय: बुधवार, 6 अक्टूबर, 2021

महा षष्ठी: सोमवार, 11 अक्टूबर, 2021

महासप्तमी: मंगलवार, 12 अक्टूबर, 2021

दुर्गा अष्टमी: बुधवार, 13 अक्टूबर, 2021

महानवमी: गुरुवार, 14 अक्टूबर, 2021

विजयादशमी (दशहरा): शुक्रवार, 15 अक्टूबर, 2021

दुर्गा पूजा 2021: इस भव्य उत्सव का महत्व

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार बताया जाता है कि, राक्षस महिषासुर को भगवान ब्रह्मा से अपराजित होने का वरदान प्राप्त था। अर्थात इस धरती का कोई भी पुरुष या ईश्वर भी उसे मार नहीं सकते थे। ऐसे में इस वरदान के मिलने के बाद महिषासुर और उत्पाती हो गया और उसने देवताओं पर आक्रमण करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे देवताओं को उसने स्वर्ग से भी खदेड़ दिया। ऐसे में महिषासुर से प्रताड़ित सभी देवता एक साथ आदिशक्ति की पूजा करने के लिए आए। पूजा के दौरान सभी देवताओं के अंदर से दिव्य ज्योति निकली जो मां दुर्गा के रूप में परिणित हो गई।

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इसके बाद मां दुर्गा और महिषासुर के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। यह युद्ध 10 दिनों तक चला। दसवें दिन मां दुर्गा ने महिषासुर की हत्या कर दी और तभी से इस दिन को विजयादशमी के रूप में मनाए जाने की परंपरा की शुरुआत हुई। विजयदशमी का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना गया है। ऐसे में दुर्गा पूजा के अंतिम दिन भक्त मां दुर्गा की मूर्ति को पवित्र नदियों, जलाशयों, या कुंड आदि में विसर्जित कर देते हैं। इसे दुर्गा विसर्जन के नाम से जाना जाता है। विसर्जन से पहले पूजा अर्चना, ढोल नगाड़ों की थाप, गाना बजाना, करना और इन सब के साथ भव्य जुलूस निकाला जाता है। कहते हैं विसर्जन के बाद मां दुर्गा वापस अपने लोक को लौट जाती हैं।

दुर्गा पूजा 2021: विशेष उत्सव

दुर्गा पूजा का पहला दिन महालया के रूप में मनाया जाता है। इस दिन देवी के आगमन और पूजा की शुरुआत होती है। नवरात्रि की षष्ठी तिथि पर मां दुर्गा के आगमन की तैयारी और पूजा प्रारंभ हो जाती है। इसके बाद अगले 3 दिनों के दौरान मां दुर्गा के विभिन्न रूप जैसे दुर्गा, लक्ष्मी, और सरस्वती की पूजा की जाती है। दुर्गा उत्सव का यह भव्य समारोह विजयदशमी अर्थात (“विजय का दसवां दिन”) के साथ समाप्त होता है। इस दिन ढोल नगाड़ों, नाच गाने, आदि के साथ विशाल जुलूस निकाले जाते हैं और फिर किसी पवित्र स्थान पर ले जाकर मां दुर्गा की प्रतिमा को विसर्जित कर दिया जाता है।

विसर्जन की यह परंपरा इस बात का प्रतीक होती है कि मां अब वापस अपने पति भगवान शिव के पास हिमालय पर्वत की ओर प्रस्थान कर रही हैं। इस दौरान बहुत सी जगहों पर भव्य पंडालों, मंदिरों का आयोजन किया जाता है जिसमें मां दुर्गा अपने शेर पर सवार महिषासुर का वध करती हुई नजर आती हैं।

दसवें दिन सिन्दूर खेला का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें विवाहित महिलाएं बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती हैं। इसमें विवाहित महिलाएं एक दूसरे के ऊपर रंग डालती हैं और एक दूसरे की सशक्तिकरण और खुशहाल वैवाहिक जीवन की कामना भी करती हैं। 

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मुख्य रूप से यह त्यौहार बंगाल में मनाया जाता है। बंगाली लोगों के प्राथमिक त्यौहार होने की वजह से पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा महोत्सव का अलग और शानदार रंग देखने को मिलता है। यहां पर यह त्यौहार काफी व्यापक पैमाने पर मनाया जाता है। हालांकि पिछले साल की तरह इस साल भी कोविड-19 प्रोटोकॉल को ध्यान में रखते हुए त्योहार इतना भव्य नहीं मनाया जा रहा है। दुर्गा पूजा के दौरान पंडालों के बीच प्रतियोगिता की जाती है। ऐसे में पश्चिम बंगाल में कोलकाता एक ऐसा शहर है जो दुर्गा पूजा समारोह का सबसे खूबसूरत रंग और ढंग सदियों से दिखाता और इस विषय में जीत हासिल करते आया है।

यही वजह है कि कहा जाता है कि दुर्गा पूजा का असली रंग देखना हो तो एक बार कोलकाता अवश्य जायें। इस त्यौहार का कोलकाता में अलग ही रंग और खूबसूरती देखने को मिलती है। कोलकाता में दुर्गा पूजा के दौरान बहुत से और बेहतरीन पंडाल, सुंदर हैंडलूम और खाने के लिए तरह तरह की व्यंजन मिलते हैं। इसी तरह पूजा का यह समारोह पूरे शहर में देखने को मिलता है। इस दौरान कोलकाता शहर एक नई दुल्हन की तरह सजा रहता है।

दुर्गा पूजा राशिनुसार उपाय 

दुर्गा पूजा को और भी ख़ास और यादगार बनाने के लिए जानिए आप अपनी राशि के अनुसार इस दिन क्या कुछ उपाय कर सकते हैं।

मेष राशि : माता को सिन्दूर चढ़ाएं। बता दें कि दुर्गा पूजा के दसवें दिन सिन्दूर खेला का आयोजन किया जाता है। ऐसे में इस उपाय को करने से आपके जीवन में खुशियाँ और समृद्धि बनी रहेगी।

वृषभ राशि : विवाहित महिलाओं को भोजन कराएं क्योंकि इन्हें शक्ति और माता का स्वरुप ही माना गया है।

मिथुन राशि :  यूँ तो तरह-तरह के पकवान और व्यंजन दुर्गा पूजा की ख़ासियत होती हैं लेकिन यदि इस दौरान आप उपवास करते हैं तो इससे आपको शुभ फल की प्राप्ति अवश्य होगी।

कर्क राशि : छोटी लड़कियों का सम्मान करें क्योंकि इन्हें साक्षात् माता का रूप माना जाता है।

सिंह राशि : किसी भी पंडाल में जाकर माँ दुर्गा को लाल फूल अर्पित करें।

कन्या राशि : माँ दुर्गा को श्रृंगार का सामान भेंट करें क्योंकि यह माता को अति प्रिय होते हैं।

तुला राशि : भगवान गणेश की पूजा करें, क्योंकि प्रथम पूजनीय होने के साथ-साथ भगवान गणेश माता के पुत्र भी हैं।

वृश्चिक राशि : दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।

धनु राशि : किसी मंदिर में या किसी गरीब महिला को श्रृंगार का सामान भेंट करें।

मकर राशि : नींबू की सुगंध वाले लैम्प अपने घर के हर कोने में जलाएं।

कुंभ राशि : माँ दुर्गा को सिन्दूर चढ़ाएं और ‘सिन्दूर खेला’ में अवश्य हिस्सा लें।

मीन राशि : लाल ओलेंडर या जैसा कि बंगाली में जाना जाता है, लाल कनेर देवी को चढ़ाना चाहिए।

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