दर्श आमावस्या 2021 (Darsh Amavasya 2021) माघ महीने में बृहस्पतिवार के दिन 11 फरवरी को है। हिन्दु धर्म में दान, पुण्य और पूजा-पाठ का विशेष महत्व है और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अमावस्या के दिन स्नान, दान करने से व्यक्ति के सभी कष्टों का निवारण होता है। इन्हीं में से एक है दर्श अमावस्या, इस दिन जातक परिवार के कल्याण और सुख-समृद्धि के लिए पूजा-पाठ करते हैं। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार दर्श अमावस्या के दिन यदि जातक पूरे नियम के साथ पूजा- अर्चना करता है तो उसके पूरे परिवार का उद्धार होता है। दर्श अमावस्या के दिन चांद पूरी तरह से गायब हो जाता है, और अंधेरी रात होती है। तो आइए नीचे लिखे गए लेख में जानते है दर्श अमावस्या का महत्व,पूजा विधि के बारे में ।
यह भी पढ़े- मौनी अमावस्या पर करेंगे यह काम तो मिलेगी शिव जी की कृपा
क्या है दर्श अमावस्या का महत्व 2021
दर्श अमावस्या महत्व 2021: धर्म ग्रंथों के अनुसार इस दिन उपवास करने और चांद की पूजा करने से चंद्र देवता प्रसन्न होते है। इस दिन पूजा करने से जातक को सौभाग्य और समृद्धि का वरदान मिलता है, और मानसिक सुकून प्राप्त होता है । हिन्दु मान्यता के अनुसार दर्श अमावस्या की तिथि के दिन पूर्वज धरती पर आते हैं और अपने परिजनों को आर्शीवाद देते हैं। इसलिए ऐसी मान्यता है, की दर्श अमावस्या के दिन व्यक्ति को अपने पितरों के नाम पर दान-पुण्य जरूर करना चाहिए । ऐसी भी मान्यता है कि पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए व्यक्ति को पितृ-तर्पण, दान-पुण्य और स्नान करना चाहिए, ऐसे करना बेहद फलदायी माना गया है ।
दर्श अमावस्या का व्रत नियम
- दर्श अमावस्या के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।
- संभव हो तो किसी पवित्र कुंड या नदी में स्नना करें, वरना घर में ही पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान करना भी शुभ होगा ।
- साफ-सुथरे वस्त्र धारण करके, पूजा की थाली सजाएं ।
- घर के मंदिर में शिव- पार्वती की पूजा कर, उनको भोग लगाएं।
- तुलसी जी को जल चढ़ाएं।
- शिव जी का जाप करके उनकी आरती करें,
- दिन भर उपवास करें, और शाम को फलहार ग्रहण करें।
दर्श अमावस्या व्रत की रोचक कथा
प्राचीन काल की बात है, कुछ बारह सिंह आत्माएं सोमरोस पर रहती थीं। एक दिन बरिशदास ने गर्भ धारण कर कन्या को जन्म दिया और उस कन्या का नाम अछोदा रखा। अछोदा अपने पिता के ना होने पर बेहद दुखी रहती थी। और ईश्वर से हमेशा अपने पिता का प्यार पाने की कामना करती थी। पिता के वियोग में नन्हीं कन्या सदैव उदास रहती और उनके प्यार को पाने के लिए रोती रहती । यह देख पितृ लोक में सभी आत्माओं ने अछोदा को धरती पर राजा अमावसु की बेटी बनकर जन्म लेने की सलाह दी। अछोदा ने सभी आत्माओं की सलाह को मनाते हुए, धरती पर राजा अमावसु की बेटी के रूप में जन्म ले लिया।राजा अमावसु एक महान राजा था, और अछोदा अपनी इच्छा के अनुसार पिता अमावसु से प्यार और देखभाल पाकर बेहद खुश और संतुष्ट महसूस करने लगी। समय के साथ-साथ जैसे-जैसे अछोदा को पिता का प्यार अत्यधिक मिलने लगा, उसने सभी पित्रों को उनकी तरफ से इतनी अच्छी सलाह के लिए धन्यवाद करने का फैसला किया, और फिर राजमहल में पितृ लोक के कैदियों के लिए पितृ पूजा की व्यवस्था हुई, तभी से हिन्दु धर्म में इसे श्राद्ध कहा जाने लगा। हिन्दू धर्म के अनुसार पितरों का श्राद्ध करते वक्त चंद्रमा दिखाई नहीं देना चाहिए, और यही वजह है की दर्श अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध करने और उनका आशीर्वाद पाने की प्रथा है।
यह भी पढ़े- मौनी अमावस्या से जुड़ी रोचक कथा और पूजा विधि