देवशयनी एकादशी: इस दिन से लग जायेगा चातुर्मास, शुभ काम होंगे वर्जित

एक नए महीने की शुरुआत के साथ ही इस वक़्त लोगों के दिल में इस बात की आस भी है कि, शायद इस महीने से हमारे जीवन की गाड़ी एक बार पुनः पटरी पर आ जाये। ऐसे में मुमकिन है कि अपने भविष्य के बारे में जानने के लिहाज़ से आपके मन में भी अनेकों सवाल उठ रहे होंगे। आप अपने इन सभी सवालों का ज्योतिषीय हल जानने के लिए यहाँ क्लिक कर सकते हैं। 

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हर चंद्र मास में दो एकादशी होती हैं, एक शुक्ल पक्ष की एकादशी और दूसरी एकादशी कृष्ण पक्ष को पड़ती है। एकादशी का ये दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है, इसलिए इस दिन उनकी पूजा का विधान बताया गया है। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को आषाढ़ी एकादशी कहा जाता है। 

आषाढ़ी एकादशी को देवशयनी एकादशी, हरिशयनी एकादशी और पद्मनाभा एकादशी के नामों से भी जाना जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से आषाढ़ी एकादशी/देवशयनी एकादशी जून या फिर जुलाई के महीने में आती है। माना जाता है कि यह समय भगवान विष्णु के शयन का समय होता है। इस समय भगवान विष्णु चार मास के लिए क्षीरसागर में शयन करते हैं इसलिए इसे हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन से चातुर्मास भी शुरू हो जाते हैं।

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जानें कब है देवशयनी एकादशी 2020

इस वर्ष देवशयनी एकादशी 1 जुलाई 2020, बुधवार के दिन मनाई जाएगी। 

देवशयनी एकादशी पारणा मुहूर्त : 2 जुलाई – 05:27:14 से 08:14:24 तक 
अवधि : 2 घंटे 47 मिनट

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देवशयनी एकादशी पूजा विधि

देवशयनी एकादशी के बारे में मान्यता है कि इस दिन से भगवान विष्णु चार मास के लिए शयन के लिए चले जाते हैं। ऐसे में इस दिन भगवान के शयन में जाने से पहले उनकी विधिवत पूजा का विधान बताया गया है। इस दिन भक्त भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और उनके लिए व्रत रखते हैं।

  • जो भी भक्त देवशयनी एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें सुबह जल्दी उठकर स्नान कर के साफ़ कपड़े पहनने चाहिए। 
  • इसके बाद पूजा वाली जगह साफ़ कर के वहाँ भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें और फिर षोडशोपचार विधि से पूजन करें। 
  • भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला प्रसाद, पीला चन्दन इत्यादि चढ़ाएं। 
  • भगवान विष्णु को पान-सुपारी इत्यादि चढ़ाएं और फिर धूप-दीप इत्यादि जलाएं। 
  • भगवान विष्णु की पूजा में इस मंत्र, ‘‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्। विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।।” का जाप अवश्य करें। 

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  • इसके बाद ब्राह्मणों और ज़रूरतमंदों को भोजन कराएं और उन्हें दान दें और इसके बाद ही कुछ खाएं। हालाँकि इस समय सुरक्षा के लिहाज़ से ब्राह्मणों को घर बुलाकर भोजन कराने की जगह आप उनके नाम से भोजन निकाल कर, उसे मंदिर में दे आयें तो ज्यादा बेहतर होगा।
  • इस दिन कई जगहों पर लोग रात्रि में जागकर भगवान विष्णु की पूजा भी करते हैं।
  • देवशयनी एकादशी के दिन पहले विष्णु भगवान को शयन कराएं और उसके बाद ही खुद सोना चाहिए।

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देवशयनी एकादशी महत्व

देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु चार मास के लिए गहरी निद्रा में चले जाते हैं। इसी दिन को चौमासे का आरंभ भी माना गया है। भगवान विष्णु के निद्रा में होने की वजह से इस समय विवाह आदि मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं। जगहों पर भ्रमण कर के तपस्या करने वाले तपस्वी भी इस समय में कहीं भ्रमण को नहीं जाते हैं। 

मान्यता है कि इन चार महीनों में पृथ्वी का सारा तीर्थ ब्रज में ही आकर बस जाता है इसलिए, तपस्वी इस समय यदि चाहें तो केवल ब्रज की यात्रा कर सकते हैं। देवशयनी एकादशी के चार माह बाद जब भगवान विष्णु अपनी गहरी नींद से जागते हैं तो इस दिन को प्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है।

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हालाँकि इस बार यह चातुर्मास 4 की जगह कुल 5 महीने, या यूँ कहिये कुल 148 दिनों लंबा चलने वाला है। इसके साथ ही इस चातुर्मास को ख़ास भी माना जा रहा है, और वजह है 160 साल बाद, लीप ईयर और अधिकमास का एक साथ बनता संयोग। बता दें कि इससे पहले साल 1860, में ऐसा संयोग बना था जब लीप ईयर और अधिकमास साथ एक वर्ष में आये थे। इस विशेष संयोग के बारे में यहाँ क्लिक करके विस्तार से पढ़ें।

चातुर्मास में भूल से भी ना करें ये काम 

चातुर्मास के समय के दौरान कुछ ऐसे काम होते हैं जिन्हे करना वर्जित माना गया है। ऐसे में जान लीजिये कि वो कौन से काम हैं और अगर आप भी भूल से भी ये काम करते हैं तो इन्हें मत कीजिये। 

  • अगर आप अपनी वाणी ऐसी बनाना चाहते हैं जिसे सब सुने और सुनना चाहे तो गुड़ खाने से बचें। 
  • अगर अपनी उम्र लंबी करनी हो या पुत्र प्राप्ति की कामना हो तो तेल का त्याग कर दीजिये। 
  • पलंग पर सोना छोड़ सकें तो अति उत्तम होगा।
  •  इस समय शहद, मूली, बैंगन, और परवल इत्यादि का सेवन ना करें। 
  • कोई और अगर आपको दही-भात खाने को दे तो उसे मत खाएं।
  • इसके अलावा अगर वंश-वृद्धि की कामना हो तो रोज़ाना दूध का सेवन करें।

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देवशयनी एकादशी पौराणिक महत्व

देवशयनी एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार बताया गया है कि, “बहुत समय पहले एक मान्धाता नामक एक राजा हुआ करता था। राजा नेक दिल और सदाचारी था जिससे उसकी प्रजा हमेशा खुश और सुखी रहती थी लेकिन, एक समय राज्य में 3 साल तक बारिश नहीं पड़ी। इससे राज्य में अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गयी। जो प्रजा पहले खुश रहा करती थी वो अब निराश और दुखी रहने लग गयी। 

अपनी प्रजा का ये हाल देखकर राजा ने अपनी प्रजा को इस दुःख से निकालने का उपाय निकालने के लिए जंगल में जाना उचित समझा। जंगल में जाते-जाते राजा अंगिरा ऋषि के आश्रम पहुँच गया। ऋषि ने राजा से उनकी परेशानी की वजह पूछी तो राजा से सारा दुःख ऋषि के सामने जाहिर कर दिया। तब ऋषि ने राजा को आषाढ़ी एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी। 

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ऋषि की बात मानकर राजा वापिस अपने राज्य लौट आया और अपनी प्रजा से इस व्रत को निष्ठापूर्ण करने की सलाह दी। व्रत और पूजा के प्रभाव का असर कुछ ऐसा हुआ कि राज्य में एक बार फिर से वर्षा हुई जिससे पूरा राज्य एक बार फिर धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया। कहा जाता है कि भगवान विष्णु के इस ख़ास व्रत को करने से इंसान की सभी मनोकामनाएं अवश्य ही पूरी होती हैं।  

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