हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक शारदीय नवरात्रि को विशेष रूप से माँ शक्ति की उपासना और साधना के लिए बेहद अहम् माना जाता है। सनातन हिन्दू धर्म में नौ दिनों के इस त्यौहार का ख़ासा महत्व है। इस दौरान देवी माँ की पूजा अर्चना करने से तो शुभ फलों की प्राप्ति होती ही है, साथ ही साथ यदि इस दौरान कुछ विशेष साधना की जाए तो इससे देवी माँ का आशीर्वाद और भी ज्यादा मिलता है। आइये जानते हैं नवरात्रि के दौरान आपको देवी माँ का ख़ास आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए क्या विशेष साधना करनी चाहिए।
नवरात्रि के दौरान की जाने वाली विशेष साधना
व्रत या उपवास
देवी साधना के लिए नवरात्रि के दौरान विशेष रूप से व्रत या उपवास रखना खासा महत्वपूर्ण माना जाता है। कहते हैं कि, नवरात्रि के नौ दिनों में कठिन उपवास रखने से व्यक्ति के अंतर्मन की सफाई होती है और उन्हें ज्ञान की प्राप्ति होती है। नवरात्रि उपवास के क्रम में विशेष रूप से मांसाहार, व्यसनों, लहसुन, प्याज आदि का सेवन वर्जित माना गया है। इस दौरान केवल फलाहार और सात्विक भोजन करना ही ख़ासा माना गया है। ऐसी मान्यता है कि, नौ दिनों तक इस विधि से की जाने वाले उपवास का फल भी सकारात्मक मिलता है। इस कठोर उपवास का पालन करने से व्यक्ति के सभी मनोकामनाओं की पूर्ति भी होती है।
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रात में करें साधना
नवरात्रि के दौरान रात में की जाने वाली साधना को ख़ासा महत्वपूर्ण माना गया है। दिन के अपेक्षा रात के समय आवाज काफी दूर तक जाती है इसलिए रात्रि साधना को देवी उपासना के लिए विशेष माना गया है। बता दें कि, नवरात्र शब्द दो शब्दों के मेल से बना है नव और अहोरात्र, इसका अर्थ है विशेष रात्रि। इस दौरान देवी की उपासना के लिए यदि रात में सिद्धि का काम किया जाए तो इससे काफी लाभ मिलता है।
साधना के लिए देवी के रूप का चयन
यदि आप नवरात्रि के दौरान देवी माँ की साधना कर रहे हैं तो आपको सबसे पहले उनके किसी एक रूप का चयन अवश्य कर लेना चाहिए। देवी माँ के विभिन्न रूपों जैसे की अम्बिका, पार्वती, उमा, सती और माँ काली आदि दस महाविधाओं की उपासना की जाती है। नवरात्रि के दौरान कई लोग तंत्र विद्या की साधना के लिए यक्षिणी, अप्सरा और पिशाचनी देवी की साधना करते हैं, इसका नवरात्रि पर्व से कोई संबंध नहीं माना जाता है।
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इसके अलावा नवरात्रि के दौरान की जाने वाली सामान्य साधना में नवदुर्गा साधना को प्रमुख माना गया है। इस दौरान अखंड ज्योत जलाकर चंडीपाठ करना और विभिन्न मंत्रों का जाप करते हुए दुर्गासप्तसती का पाठ करना भी ख़ासा महत्वपूर्ण माना जाता है। अष्टमी और नवमी तिथि को विशेष रूप से कन्या भोजन को भी इसी साधना का हिस्सा माना जाता है।