हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि को शुभ तिथि माना जाता है और इसलिए लोग इस तिथि को व्रत रखते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह में पड़ने वाली तिथियों में कार्तिक शुक्ल की पक्ष की एकादशी तिथि को अति महत्वपूर्ण माना जाता है। इस तिथि को देव उठनी एकादशी तिथि कहते हैं। देव उठनी एकादशी तिथि का महत्व इतना बड़ा है कि एक प्रकार से हिन्दुओं का यह धार्मिक पर्व होता है।
इस साल यह तिथि 8 नवंबर 2019 को पड़ रही है। भौगोलिक भिन्नता के कारण इस तिथि को प्रबोधिनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी एवं अन्य नामों से भी जाना जाता है। आज हम इस ख़बर के माध्यम से आपको देवउठनी एकादशी के विषय में बहुत ही ज़रुरी जानकारी देंगे।
देव उठनी एकादशी का महत्व
देव उठनी एकादशी दीपावली के बाद आती है और यह तिथि भगवान विष्णु जी को समर्पित है। दरअसल पौराणिक मान्यता के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं, इसीलिए इसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है।
मान्यता है कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में 4 माह शयन के बाद जागते हैं। भगवान विष्णु के शयनकाल के चार मास (चतुर्मास) में विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं, इसीलिए देवोत्थान एकादशी पर भगवान हरि के जागने के बाद शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है।
देव उठनी एकादशी व्रत विधि एवं नियम
- प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन और उनकी जागृति का आह्वान किया जाता है।
- इस दिन प्रातःकाल उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
- आज के दिन भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए।
- घर की सफाई के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाना चाहिए।
- एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल,मिठाई,बेर,सिंघाड़े,ऋतुफल और गन्ना उस स्थान पर रखकर उसे डलिया से ढांक देना चाहिए।
- इस दिन रात्रि में घरों के बाहर और पूजा स्थल पर दीये जलाना चाहिए।
- रात्रि के समय परिवार के सभी सदस्य को भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवताओं का पूजन करना चाहिए।
- इसके बाद भगवान को शंख, घंटा-घड़ियाल आदि बजाकर उठाना चाहिए और ये वाक्य दोहराना चाहिए- उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाये कार्तिक मास।
देव उठनी से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एकबार भगवान नारायण से लक्ष्मी जी ने पूछा- “हे नाथ! आप दिन रात जागते हैं और सोते हैं तो लाखों-करोड़ों वर्षों तक सोते रहते हैं। आप नियम से प्रतिवर्ष निद्रा लिया करें। इससे मुझे भी कुछ समय विश्राम करने का समय मिल जाएगा।”
लक्ष्मी जी की बात सुनकर नारायण मुस्कुराए और बोले- “देवी! तुमने ठीक कहा है। मेरे जागने से सब देवों और खासकर तुमको कष्ट होता है। तुम्हें मेरी वजह से जरा भी अवकाश नहीं मिलता। अतः तुम्हारे कथनानुसार आज से मैं प्रतिवर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा। उस समय तुमको और देवगणों को अवकाश होगा।
मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलय कालीन महानिद्रा कहलाएगी। मेरी यह अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी होगी। इस काल में मेरे जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे और शयन व उत्थान के उत्सव को आनंदपूर्वक आयोजित करेंगे उनके घर में, मैं तुम्हारे साथ निवास करूंगा।”
इस प्रकार जो भी भक्त देव उठनी के दिन भगवान विष्णु जी की पूजा आराधना करता है उसके घर भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी का वास होता है।