हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष यानी अगहन माह की पूर्णिमा तिथि को भगवान दत्तात्रेय की जयंती मनाई जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान दत्तात्रेय एक समधर्मी देवता हैं और भगवान विष्णु, ब्रह्मा और महेश (शिव जी) तीनों का सम्मिलित अवतार हैं। माना जाता है कि भगवान दत्तात्रेय के अंदर गुरु और ईश्वर, दोनों का स्वरूप निहित होता है। इनके तीन मुंह और छह हाथ हैं और स्वरूप त्रिदेवमय है। इनके साथ कुत्ते और गाय भी होते हैं। इन्होंने अपने 24 गुरु माने हैं, जिसमें प्रकृति, पशु-पक्षी और मनुष्य यह सब शामिल हैं। इनकी पूजा- अर्चना और व्रत करने से तुरंत फल मिलता है और व्यक्ति जल्द ही कष्टों से छुटकारा पा लेता है।
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भगवान दत्तात्रेय की पूजा से त्रिदेवों का आशीर्वाद मिलता है। माता अनुसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने संयुक्त रूप में उनके पुत्र के रूप में जन्म लिया था। मान्यता है कि दत्तात्रेय भगवान की पूजा से पितृदोष से छुटकारा मिल जाता है। आइए जानते हैं दत्तात्रेय जयंती 2022 का पूजा मुहूर्त, विधि, मंत्र, शुभ योग और भगवान दत्तात्रेय के बारे में कई रोचक बातें।
भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरु
भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरु- पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा, समुद्र, अजगर, कपोत, पतंगा, मछली, हिरण, हाथी, मधुमक्खी, शहद निकालने वाला, कुरर पक्षी, कुंवारी कन्या, सर्प, बालक, पिंगला, वैश्या, बाण बनाने वाला, मकड़ी और भृंगी कीट थे। भगवान दत्तात्रेय का मानना था कि जहां से भी शिक्षा मिले उसे तुरंत ग्रहण लेना चाहिए। इसी के कारण उन्हें अपने सभी 24 गुरुओं से कई अच्छी शिक्षाएं मिली।
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दत्तात्रेय जयंती 2022 तिथि और शुभ मुहूर्त
दत्तात्रेय जयंती तिथि: 7 दिसंबर 2022, बुधवार
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ: दिसंबर 07, 2022 को सुबह 08 बजकर 04 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त: दिसंबर 08, 2022 को सुबह 09 बजकर 40 मिनट तक
इस शुभ योग में मनाई जाएगी दत्तात्रेय जयंती 2022
दत्तात्रेय जयंती 2022 के दिन सिद्ध योग लगेगा। 07 दिसंबर को 02:50 से शुरू होकर 08 दिसंबर 02:52 तक लगेगा। यह योग बेहद शुभ माना जाता है। वार, नक्षत्र और तिथि के बीच विशेष संबंध होने पर सिद्ध योग बनता है। इस योग में भगवान का नाम और मंत्रों को जपने से जातक को फलदायी परिणाम प्राप्त होते हैं। वहीं इस योग में जो भी कार्य किया जाता है उसमें सफलता जरूर मिलती है।
भगवान दत्तात्रेय के मंत्र
- बीज मंत्र- ॐ द्रां
- दत्तात्रेय का महामंत्र – ‘दिगंबरा-दिगंबरा श्रीपाद वल्लभ दिगंबरा’
- तंत्रोक्त दत्तात्रेय मंत्र – ‘ॐ द्रां दत्तात्रेयाय नम:’
- दत्त गायत्री मंत्र – ‘ॐ दिगंबराय विद्महे योगीश्रारय् धीमही तन्नो दत: प्रचोदयात’
दत्तात्रेय जयंती की पूजा विधि
- दत्तात्रेय जयंती के दिन सफेद आसन पर भगवान दत्तात्रेय की मूर्ति स्थापित करें। मूर्ति न मिले तो आप तस्वीर भी लगा सकते हैं।
- इसके बाद भगवान दत्तात्रेय का गंगाजल से अभिषेक करें।
- इसके बाद धूप, घी का दीपक जलाएं और फूल, मिठाई और फल भगवान दत्तात्रेय को अर्पित करें। ध्यान रहे कि पूजा में सफेद रंग के फूल और फल ही चढ़ाने चाहिए।
- दत्तात्रेय जयंती के दिन भगवान दत्तात्रेय के मंत्रों का जाप करना बेहद फलदायी माना जाता है।
- इस दिन भगवत गीता का पाठ करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।
- विधि-विधान से पूजा करने के बाद दत्तात्रेय स्तोत्र का पाठ करने से भगवान दत्तात्रेय की कृपा बनी रहती है।
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पूजा से मिलता है विशेष वरदान
- भगवान दत्तात्रेय की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति गलत संगति और गलत रास्ते में जाने से बच जाता है।
- निःसंतान को संतान और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
- भगवान दत्तात्रेय की पूजा करने से किसी भी नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्ति का असर व्यक्ति पर नहीं पड़ता है।
- व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
- व्यक्ति समस्त पापों से मुक्ति पा लेता है।
जानिए, कैसे हुआ भगवान दत्तात्रेय का जन्म
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महर्षि अत्रि मुनि की पत्नी अनुसूया के पतिव्रत होने की चर्चा तीनों लोकों में होने लगी। नारद जी ने अनुसूया के पति धर्म की सराहना मां लक्ष्मी, माता पार्वती और मां सरस्वती से की। अनुसूया की सराहना सुनने के बाद तीनों देवियों ने अनुसूया की परीक्षा लेने का विचार किया। अनुसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने के लिए त्रिदेवियों के कहने पर तीनों देव भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश पृथ्वी लोक जा पहुंचे।
अनुसूया के पति के अनुपस्थिति में तीनों देव साधु का रूप बनाकर उनके आश्रम पहुंचे और भोजन करने की इच्छा जाहिर की। देवी अनुसूया ने उनकी बात मानते हुए प्रेम भाव से उन्हें खाना खिलाया, लेकिन तीनों देव ने इस बात की शर्त रखी कि उन्हें निर्वस्त्र होकर खाना खिलाएं। यह सोच माता अनुसूया को संशय हुआ और वे घबरा गई। इस समस्या से निकलने के लिए वे ध्यान लगाकर अपने पति का स्मरण करने लगी, तभी साधु के रूप में आए तीनों देवता ने अपना रूप प्रकट किया।
यह देखकर माता अनुसूया खुशी से झूम उठी और उन्होंने जैसे ही अत्रि मुनि के कमंडल से जल निकालकर तीनों साधुओं पर छिड़का, वैसे ही वे तीनों देवता छह माह के शिशु बन गए। तब माता ने शर्त के मुताबिक उन्हें भोजन ग्रहण करवाया। वहीं बहुत दिन तक पति के वियोग में तीनों देवियां परेशान हो गईं। तब नारद मुनि ने उन्हें पृथ्वी लोक में घटी घटना के बारे में बताया। तीनों देवियां पृथ्वी लोक पहुंचीं और माता अनुसूया से माफी मांगी। तीनों देवों ने भी अपनी गलती को मान कर माता अनुसूया की कोख से जन्म लेने का आग्रह किया। जिसके बाद तीनों देव ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने दत्तात्रेय के रूप में देवी अनुसूया की कोख से जन्म लिया। तीनों देवों को एक साथ बाल रूप में भगवान दत्तात्रेय के रूप में पाने के बाद माता अनुसूया ने अपने पति के चरणों का जल तीनों देवों पर छिड़का, जिसके बाद वे अपने पहले रूप में आ गए।
भगवान दत्तात्रेय के बारे में नहीं जानते होंगे ये बातें
- भगवान दत्तात्रेय में शैव, वैष्णव और शाक्त, तंत्र, नाथ, दशनामी और इनसे जुड़े कई संप्रदाय शामिल हैं।
- भगवान दत्तात्रेय के तीन शिष्य थे, जिनमें दो योद्धा और एक असुर जाति से था।
- माना जाता है कि ये भगवान परशुराम के गुरु हैं।
- भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय को इन्होंने ही शिक्षा दी थी।
- इसके अलावा भक्त प्रह्लाद को भी इन्होंने ही शिक्षा-दीक्षा देकर श्रेष्ठ राजा के योग्य बनाया।
- यही नहीं, नागार्जुन को रसायन विद्या इन्होंने ही दी थी।
- भगवान दत्तात्रेय से ही गुरु गोरखनाथ को आसन, प्राणायाम, मुद्रा और समाधि-चतुरंग योग का ज्ञान मिला।
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