वैसे तो हमारे देश में दही हांडी का त्यौहार विशेष रूप से केवल महाराष्ट्र और गुजरात में ही मनाया जाता है लेकिन पूरे देश को इस त्यौहार का बेसब्री से इंतज़ार रहता है। ऐसी मान्यता है कि श्री कृष्ण जन्माष्टमी के ठीक अगले दिन दही हांडी का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को विशेष रूप से कृष्ण जी की बाल लीलाओं को समर्पित त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। आज हम आपको बताएंगे की इस साल कब मनाया जाएगा दही हांडी का पर्व और क्या हैं इस त्यौहार से जुड़े पौराणिक तथ्य।
जन्माष्टमी के ठीक अलगे दिन मनाया जाएगा दही हांडी
आपको बता दें कि चूँकि आने वाले 24 अगस्त को जन्माष्टमी का त्यौहार मनाया जाएगा, लिहाजा इसके ठीक अगले दिन यानी की 25 अगस्त को दही हांडी का पर्व मनाया जाएगा। हमारे देश में विशेष तौर पर दही हांडी का पर्व खासतौर से महाराष्ट्र और गुजरात राज्य में ही मनाया जाता है। कृष्ण जी जिस प्रकार से अपने बाल्यावस्था में दही और माखन चुरा कर खाते थे उसी को देखते हुए जन्माष्टमी के ठीक अगले दिन दही हांडी का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से किशोर युवाओं का झुण्ड जिन्हें “गोविंदा” कहते हैं, जगह-जगह जाकर दही और मक्खन से भरे हांडी को तोड़ते हैं। गुजरात और महाराष्ट्र में दही हांडी प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जाता है। किशोर बालक इस दिन एक झुण्ड बनाकर एक दूसरे के ऊपर पिरामिड बनाकर चढ़ते हुए ऊपर ऊंचाई पर रस्सी के सहारे बाँधी गयी हांडी को तोड़ते हैं।
दही हांडी पर्व का इतिहास
दही हांडी का इतिहास असल में कृष्ण जी से ही जुड़ा है। ऐसी मान्यता है कि कृष्ण जी का जन्म वासुदेव और माता देवकी के घर हुआ था। जब कृष्ण जी का जन्म हुआ उस वक़्त उनके माता पिता कंस के अधीन कारागार में कैद थे। जेल में उनका जन्म हुआ, असल में एक आकाशवाणी के जरिये कंस को बताया गया था की देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान उसकी मौत का कारण बनेगा। इसी डर से उसने वासुदेव और देवकी के सभी संतानों को मारना शुरू कर दिया। लेकिन जब कृष्ण जी का जन्म हुआ तो किसी प्रकार से वासुदेव उन्हें एक टोकरी में लेकर वृन्दावन के रहने वाले बाबा नन्द और माता यशोदा के घर पंहुचा आये। भगवान् श्री कृष्ण के बाल लीलाओं की शुरुआत यही से हुई। बचपन में वो बहुत ही शरारती थे, दही और मक्खन उनका पसंदीदा था, इसलिए कई बार वो दूसरों के घर से उसे चुरा कर खाते थे। उनकी इस हरकत से वहां के रहने वाले सभी निवासी परेशान थे। लिहाजा उन्होनें अपने-अपने घरों में दही और मक्खन को एक हांडी में डालकर उसे किसी ऊँची जगह पर टांग कर रखना शुरू कर दिया। लेकिन इससे भी कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकी कृष्ण जी अन्य बालकों के साथ वहां से भी दही और मक्खन चुरा कर खा जाते थे।
यही से दही हांडी पर्व की शुरुआत हुई जिसे कृष्ण जन्मोत्सव के ठीक अगले दिन मनाया जाता है। बहरहाल अब आप जान चुके होंगें की आखिर क्यों मनाया जाता है ये त्यौहार और क्या है इसका इतिहास।