यह जीवन खुशियों का संसार है। मानव जीवन परमात्मा की अतुलनीय देन है। इस जीवन को हमें बहुत ही ख़ुशी
श्रेणी: वैदिक ज्योतिष
कुंडली में षष्ठम भाव- शत्रु, रोग और कर्ज का घर
वैदिक ज्योतिष के अनुसार जन्म कुंडली में षष्ठम भाव को रोग, कर्ज और शत्रुओं के भाव के नाम से जाना
कुंडली में 12 भाव और मनुष्य जीवन में उनका महत्व
वैदिक ज्योतिष के अनुसार जन्म कुंडली के 12 भाव व्यक्ति के जीवन के संपूर्ण क्षेत्रों की व्याख्या करते हैं। इन
कुंडली में पंचम भाव– ज्ञान, सृजनात्मकता और हर्ष का भाव
जन्म कुंडली में पंचम भाव मुख्य रूप से संतान और ज्ञान का भाव होता है। ऋषि पाराशर के अनुसार इसे
कुंडली में द्वादश भाव : व्यय और हानि का भाव
ज्योतिष में कुंडली के द्वादश भाव को व्यय एवं हानि का भाव कहा जाता है। यह अलगाव एवं अध्यात्म का
कुंडली में एकादश भाव : लाभ और आमदनी का भाव
हिन्दू ज्योतिष के अनुसार, कुंडली में एकादश भाव आमदनी और लाभ का भाव होता है। यह भाव व्यक्ति की कामना,
कुंडली में दशम भाव : करियर और व्यवसाय का भाव
ज्योतिष में दशम भाव को कर्म का भाव कहा जाता है। यह भाव व्यक्ति की उपलब्धि, ख़्याति, शक्ति, प्रतिष्ठा, रुतबा,
कुंडली में नवम भाव : भाग्य और धर्म का भाव
वैदिक ज्योतिष के अनुसार जन्म कुंडली में नवम भाव व्यक्ति के भाग्य को दर्शाता है और इसलिए इसे भाग्य का
कुंडली में अष्टम भाव : परिवर्तन और मृत्यु का भाव
जन्म कुंडली में अष्टम भाव जातकों का आयु भाव कहलाता है। यह भाव जातकों की दीर्घायु अथवा जीवन की अवधि
कुंडली में चतुर्थ भाव– घर, खुशी और समृद्धि का भाव
जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव को प्रसन्नता या सुख का भाव कहा जाता है। इसे माता के भाव के तौर