भानु सप्तमी: जानें इस दिन क्यों किया जाता है सूर्य देव का पूजन और क्या है विधि?

8 नवंबर 2020, रविवार को भानु सप्तमी का व्रत मनाया जा रहा है। भानु सप्तमी का व्रत सूर्य देव को समर्पित माना जाता है। जिन्हें नहीं पता उनकी जानकारी के लिए बता दें कि सूर्य भगवान को ही भानु के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में सूर्य देवता को ऊर्जा, शक्ति इत्यादि का प्रतीक माना गया है। 

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सभी ग्रहों में सूर्य देव को सबसे श्रेष्ठ माना गया है। ऐसे में हिंदू मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि, भानु सप्तमी के दिन अगर कोई भी इंसान पूरी श्रद्धा के साथ सूर्य देव की पूजा करता है तो उसके सभी पाप कर्म और उसके जीवन के सभी दुख नष्ट हो जाते हैं और मृत्यु के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

भानु सप्तमी के दिन जो कोई भी इंसान सूर्य देव की पूजा-अर्चना, आदित्य हृदयम और अन्य सूर्य स्त्रोत का पाठ करता है सूर्यदेव उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य ही पूरी करते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं जो कोई भी इंसान इस व्रत कथा को सुनता है उसे भी शुभ फल की प्राप्ति होती है।

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मान्यता के अनुसार सूर्य देव को अर्घ्य देने से इंसान की याददाश्त बेहद ही अच्छी होती है और इंसान का मन शांत होता है। 

भानु सप्तमी के दिन प्रयागराज के संगम में डुबकी लगाने का बेहद महत्व बताया गया है। इस दिन इंसान को सुबह उठकर विधि विधान से सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए जिससे उसे मनचाहे फल की प्राप्ति होती है। 

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सिर्फ इतना ही नहीं मान्यता है कि जो कोई भी इंसान इस दिन गंगा स्नान करके सूर्य भगवान को जल अर्पित करता है उसकी आयु लंबी होती है और उसे निरोगी काया मिलती है। इसके अलावा उस इंसान को जीवन में धन-धान्य की कभी कोई कमी नहीं होती है।

भानु सप्तमी व्रत-पूजन विधि 

  • भानु सप्तमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद सूर्य भगवान की पूजा का संकल्प करना चाहिए। 
  • इसके बाद तांबे के बर्तन में साफ पानी भरकर उसमें लाल चंदन, अक्षत, लाल रंग का कोई भी फूल डालकर सूर्यदेव को ‘ॐ सूर्याय नमः’ मन्त्र का जाप करते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिए। इस दौरान सूर्य देव से हाथ जोड़कर प्रार्थना करनी चाहिए कि वह आप पर और आपके परिवार पर हमेशा कृपा बनाए रखें। 
  • इसके अलावा इस दिन दान-पुण्य का भी काफी महत्व बताया गया है। जो कोई भी इंसान भानु सप्तमी के दिन पूजा-पाठ के बाद दान पुण्य करता है उसका घर हमेशा धनधान्य से भरा रहता है।
  • इस दिन सूर्य देव की पूजा करते समय उनके बीज मंत्र ‘ ऊँ घृणि सूर्याय नम:’ और ‘ ॐ सूर्याय नम:’ का पाठ जरूर करें। इसके अलावा भानु सप्तमी के दिन हो सके तो, भोजन में नमक का इस्तेमाल ना ही करें।

भानु सप्तमी व्रत महत्व 

जैसा कि हमनें बताया कि भानु सप्तमी का यह व्रत भगवान सूर्य देव को समर्पित होता है। ऐसे में इस दिन के बारे में लोगों के बीच ऐसी मान्यता है कि जिन लोगों को एकाग्रता और यादाश्त से जुड़ी समस्या होती है, उनको भानु सप्तमी के दिन सूर्य देव को जल अर्पित करना चाहिए। इससे आपको आपकी सभी समस्याओं से छुटकारा अवश्य मिलता है।

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भानु सप्तमी के इस पवित्र दिन भगवान सूर्य की पूजा और व्रत का विधान बताया गया है। यह व्रत प्रत्येक सप्तमी (वैक्सिंग चंद्रमा के 7 वें दिन) पर मनाया जाता है जो रविवार को आती है। इस दिन को व्यासवत्मा सप्तमी या सूर्य सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है।

भानु सप्तमी के दिन का सबसे बड़ा महत्व यह है कि इस दिन जो लोग सूर्यदेव की पूजा करते हैं उन्हें धन-धान्य, लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि भानु सप्तमी के दिन व्रत रखने से व्यक्ति को अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है और सभी प्रकार की बीमारियां दूर रहती हैं।

भानु सप्तमी व्रत कथा 

इस दिन के बारे में प्रचलित कथा के अनुसार बताया जाता है कि प्राचीन काल में इंदुमती नाम की एक वैश्या हुआ करती थी। एक बार उसने ऋषि वशिष्ठ से पूछा कि, ‘मुनिराज मैंने आज तक कोई भी धार्मिक काम नहीं किया है लेकिन मेरी इच्छा है कि मैं मृत्यु के बाद मुझे मोक्ष प्राप्त हो। तो यह कैसे प्राप्त हो सकता है?’

इंदुमती की इस बात को सुनकर वशिष्ठ जी ने जवाब दिया कि महिलाओं को मुक्ति, सौभाग्य, और सौंदर्य देने वाला अचला सप्तमी या भानु सप्तमी से बढ़कर कोई व्रत नहीं होता है। इस दिन जो कोई भी स्त्री सच्चे मन से पूजा करती है और व्रत रखती है उसे मनचाहा फल प्राप्त होता है, इसलिए तुमको भी अगर मोक्ष की चाह है तो तुम्हें इस दिन व्रत करना चाहिए और विधि पूर्वक पूजन इत्यादि करना चाहिए, जिससे तुम्हारा कल्याण हो जाएगा।

वशिष्ठ जी की बात सुनकर इंदुमती ने इस व्रत का पालन किया और मृत्यु के पश्चात उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई। स्वर्ग में उन्हें अप्सराओं की नायिका बनाया गया। इसी मान्यता के आधार पर इस व्रत का विशेष महत्व माना जाता है।

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