इस बात से आप सभी भली भांति अवगत होंगें कि विष्णु जी को हिन्दू धर्म में पालनहार माना जाता है। विष्णु जी एक ऐसे देवता हैं जो इस संसार के सभी जीवों का पालन करते हैं, इसलिए उन्हें पालनहार कहा जाता है। पौराणिक काल में उन्होनें जन कल्याण के लिए हर युग में अलग-अलग अवतार लिए। विष्णु जी के सभी अवतारों में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है उनके दस अवतार, आज हम आपको खासतौर से विष्णु जी के उन्हीं दसवतारों से जुड़ी रोचक कथाओं के बारे में बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं कि विष्णु जी ने कब कौन सा अवतार लिया और उसके पीछे क्या वजह थी।
विष्णु जी के दस अवतारों का वर्णन निम्नलिखित है
मत्स्य अवतार
मत्स्यपुराण के अनुसार भगवान् विष्णु का का पहला अवतार मत्स्य अवतार था। उन्होनें दुनिया को प्रलय से बचाने के लिए मत्स्य अवतार लिया था। इस संबंध में प्रचलित एक कथा के अनुसार कृतयुग में राजा सत्यव्रत हुआ करते थे। एक बार राजा सरोवर के तट पर सूर्य नमस्कार कर रहे थे, उसी समय उन्होनें अपने आस पास एक छोटी सी मछली को चक्कर लगाते देखा। राजा ने उस मछली को उठाकर सागर में वापिस छोड़ना चाहा लेकिन मछली ने उनसे विनती की वो उसे अपने कमंडल में ही रख लें। राजा ने जैसे ही मछली को अपने कमंडल में रखा उसका आकार बढ़ गया , फिर उन्होनें उसे सरोवर में रखा लेकिन मछली का आकर बढ़ता ही गया। अंत में मछली जब अपने वास्तविक रूप में आयी तो अपने सामने विष्णु जी को देखकर राजा स्तब्ध रह गए। उन्होनें कहा की ये मेरा मत्स्य अवतार है, मैं आपको प्रलय काल से बचाने आया हूँ।
कूर्म अवतार
कूर्म एक संस्कृत शब्द है जिसका हिंदी अर्थ है कछुआ, विष्णु जी के इस अवतार को कच्छप अवतार भी कहा जाता है। विष्णु जी ने इस अवतार के ज़रिये समुद्र मंथन के वक़्त देवताओं की सहायता की थी। बता दें कि समुद्र मंथन के वक़्त जब देवता और दैत्य दोनों ने मंदराचल पर्वत को समुद्र में ले जाकर मंथन करने का विचार किया तो उसी समय विष्णु जी ने कूर्म अवतार लिया था। असल में जब देवराज इंद्र अन्य देवताओं और दैत्यों के साथ मिलकर मंदराचल पर्वत को समुद्र की तरफ लेकर जा रहे थे तो उस वक़्त समुद्र के नीचे कोई समतल जगह नहीं थी जिस पर उस पर्वत को टिका कर रखा जाता। उसी वक़्त विष्णु जी के विशाल कछुए का रूप लेकर अपनी पीठ पर उस पर्वत को स्थापित करवाया और इस प्रकार से समुद्र मंथन की प्रक्रिया पूरी हुई।
वराह अवतार
हमारे पौराणिक धर्मग्रंथों के अनुसार हिरण्याक्ष नाम का एक असुर हुआ करता था उसने एक बार सभी देवताओं की नजरों से बचते हुए पृथ्वी को समुद्र में छिपा दिया था। इसी मुसीबत की घड़ी से जग का उद्धार करने के लिए विष्णु जी ने ब्रह्मा जी की नाक से प्रकट होकर वराह अवतार लिया था। विष्णु जी के इस अवतार को देखकर सभी अचंभित हुए, इसके बाद किसी तरह से उन्होनें पृथ्वी को समुद्र के भीतर से ढूंढ निकला और हिरण्याक्ष का वध किया।
नरसिंह अवतार
भगवान् विष्णु ने नरसिंह अवतार अपने परम भक्त प्रहलाद की जान बचने के लिए था। प्रहलाद असुर राज हिरण्यकश्यप का पुत्र था लेकिन असुर होते हुए भी वो विष्णु जी का उपासक था। इस बात से हिरणकश्यप को काफी चिढ़ हो गयी थी जिस वजह से उन्होनें कई बार प्रहलाद को मारने की कोशिश की लेकिन अंत में भगवान् विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर ना केवल प्रहलाद की रक्षा की बल्कि हिरणकश्यप का वध भी किया।
वामन अवतार
विष्णु जी ने सत्ययुग में वामन अवतार लेकर देवताओं को दैत्यराज बलि के कब्जे से मुक्त करवाया था। असुर राज बलि को अपने बुद्धि, बल और दानी होने का बहुत गर्भ था। विष्णु जी ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से देवताओं को उनका राज पाठ वपिस दिलाया था। उन्होनें केवल दो पग में ही पातळ और स्वर्ग दोनों को प्राप्त कर लिया था, तीसरा पग रखने के लिए जब जमीन नहीं बची तो राजा बलि ने स्वयं अपना सिर उनके आगे कर दिया।
राम अवतार
भगवान् विष्णु ने त्रेतायुग में राम अवतार लेकर समस्त देवताओं को रावण के भय से मुक्त करवाया था। राजा दशरथ के चार पुत्रों में से सबसे बड़े पुत्र के रूप में भगवान् विष्णु ने राम के रूप में जन्म लिया था। रामायण में उनेक राम अवतार से संबंधित सभी घटनाओं का जिक्र मिलता है।
कृष्ण अवतार
द्वापर युग में विष्णु जी ने भगवान श्री कृष्ण का अवतार लेकर बहुत से अधर्मियों का नाश किया था। इतिहास का सबसे बड़ा धर्म युद्ध “महाभारत” का संचालक भी उन्हें ही माना जाता है। उन्होनें माता देवकी और पिता वासुदेव के घर जन्म लिया था लेकिन उनका लालन-पालन माता यशोदा ने किया था।
परसुराम अवतार
बता दें कि भगवान विष्णु के इस अवतार का जिक्र मुख्य रूप से हरिवंशपुराण में मिलता है। उनके इस अवतार के पीछे एक प्रसिद्ध कथा है जिसके तहत पौराणिक काल में महिष्मती नाम के नगर में सहस्त्रबाहु नाम के क्षत्रिय का शासन था। वो बहुत ही अहंकारी और अत्याचारी था, एक बार अग्निदेव ने उससे भोजन कराने का आग्रह किया। इस पर सहस्त्रबाहु ने अग्निदेव से कहा की हर तरफ मेरा ही राज है आप जहाँ से चाहे भोजन ग्रहण कर सकते हैं। उसके इस वर्ताव से क्रोधित होकर अग्निदेव ने समस्त राज्य को भस्म करना शुरू कर दिया। ऐसा देखकर ऋषि आपव ने सहस्त्रबाहु को श्राप दिया की विष्णु जी का परसुराम अवतार द्वारा उसका वध होगा।
बता दें कि भगवान् विष्णु के अन्य अवतारों में उनका बुद्ध अवतार और कल्कि अवतार भी प्रमुख है। गौतम बुद्ध के रूप में अवतार लेकर उन्होनें संसार को बौध धर्म के बारे में बताया था। विष्णु जी का कल्कि अवतार कलयुग के अंत के लिए होगा जिसे उनका आखिरी अवतार माना जा रहा है और जो अभी होना बाकी है।