भाल चंद्र संकष्टी चतुर्थी
संकष्टी चतुर्थी हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार है। भगवान गणेश से सम्बंधित ये व्रत सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला और बेहद ख़ास माना गया है। भगवान गणेश को ना ही सिर्फ सभी देवी-देवताओं में सबसे उच्च स्थान दिया गया है बल्कि इन्हें बुद्धि, बल और विवेक के देवता का दर्जा भी प्राप्त है।
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अपने भक्तों की सभी तकलीफ़ उनके सभी दुःख हर लेने वाले विघ्नहर्ता भगवान गणेश का संकष्टी चतुर्थी व्रत काफ़ी प्रचलित है। वैसे तो हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए ढेरों व्रत-उपवास आदि किए जाते हैं, लेकिन भगवान गणेश के लिए किए जाने वाला ये व्रत काफी ख़ास और उत्तम फलदायी माना गया है।
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कब है भाल चंद्र संकष्टी चतुर्थी?
इस वर्ष भाल चंद्र संकष्टी चतुर्थी 12 मार्च 2020, गुरुवार को मनाई जाएगी, और साथ ही अगर बात करें भाल चंद्र संकष्टी चतुर्थी के शुभ मुहूर्त की तो, संकष्टी चतुर्थी, 12 मार्च को सुबह 11 बजकर 58 मिनट से शुरू होकर अगले दिन सुबह 8 बजकर 50 मिनट पर समाप्त होगी।
भाल चंद्र संकष्टी चतुर्थी पूजन महत्व
विघ्नहर्ता गणपति का ये व्रत काफी ख़ास और फलदायी बताया गया है। इस दिन लोग गणेश जी की पूजा करते हैं और उनसे अपने सभी अभिलाषाओं की पूर्ति की कामना करते हैं। इस दिन विद्या, बुद्धि, प्रदान करने वाले देवता, श्री गणेश जी का और साथ ही चंद्रमा की पूजा का भी विधान बताया गया है। इस दिन भालचंद्र गणेश जी की पूजा की जाती है।
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- संकष्टी के दिन प्रात:काल नित्य क्रम से निवृत होकर षोड्शोपचार विधि से भगवान गणेश जी की पूजा करें।
- इस दिन गणेश जी की पूजा के बाद नीचे दिए गए श्लोक को पढ़कर गणेश जी की वंदना करें
‘गजाननं भूत गणादि सेवितं,कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्॥’ - इसके बाद भालचंद्र गणेश जी का ध्यान करके उन्हें फूल इत्यादि चढ़ाएं।
- इस पूरे दिन अपने मन में भगवान गणेश जी के नाम का जप करें।
- सूर्यास्त के बाद स्नान कर लें और साफ़ कपड़े पहन लें।
- अब विधिपूर्वक भगवान गणेश जी का पूजन करें। एक कलश में जल भर कर रखें और धूप-दीप आदि भगवान के सामने प्रज्वलित करें।
- भगवान को प्रसाद चढ़ाएं और फिर उसे प्रसाद रूप में ग्रहण करें।
- ये व्रत मायें अपने पुत्रों की लंबी उम्र की कामना और सुख समृद्धि के लिये व्रत रखती है।
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क्या होता है संकष्टी चतुर्थी का मतलब?
संकष्टी चतुर्थी का सीधा और स्पष्ट अर्थ होता है संकट को हरने वाली चतुर्थी। संकष्टी शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है और इसका मतलब होता है, ‘कठिन समय से मुक्ति पाना’। इस दिन को लेकर लोगों के बीच ऐसी मान्यता है कि इस दिन इंसान अपने किसी भी तरह के दुःखों से छुटकारा पाने के लिए गणेश जी की अराधना करते हैं।
पुराणों के अनुसार इस दिन गौरी पुत्र गणेश की पूजा करना बहुत फलदायी माना गया है। संकष्टी के दिन लोग सूर्योदय से लेकर चन्द्रमा उदय होने तक उपवास रखते हैं। इसके बाद पूरे विधि-विधान से भगवान गणपति की पूजा-पाठ की जाती है और फिर उपवास खोला जाता है।
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संकष्टी चतुर्थी के अलग-अलग नाम और वजह
संकष्टी के इस पर्व पर भक्त अपने कष्टों से निवारण पाने के लिए भगवान गणेश की पूजा-अर्चना और उपवास करते हैं। यहाँ जानने वाली बात यह है कि संकष्टी चतुर्थी को कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जहाँ कई जगहों पर इसे संकट हारा के नाम से जानते हैं तो वहीं कहीं-कहीं इसे सकट चौथ के नाम से भी जाना जाता है।
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इसके अलावा अगर ये दिन किसी महीने के मंगलवार के दिन पड़ता है तो इसे अंगारकी चतुर्थी भी कहा जाता है। संकष्टी चतुर्थी के बारे में ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो भी इंसान भगवान गणेश का सच्चे मन से ध्यान करता है उस इंसान की सारी मनोकामनाएं अवश्य ही पूरी हो जाती हैं और ऐसा करने वाले जातक को विशेष लाभ भी अवश्य मिलता है।
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