बाथू की लड़ी: आज भी मौजूद हैं पांडवों के द्वारा स्वर्ग जाने के लिए बनाई सीढ़ियाँ

सनातन धर्म में भला किस इंसान की इच्छा यह नहीं होगी कि उसे स्वर्ग मिल जाये या फिर कुछ ऐसा हो कि उसे स्वर्ग तक जाने वाली सीढ़ी का पता चल जाये। आप सोच रहे होंगे कि ऐसा भला कहाँ मुमकिन है। लेकिन अगर हम आपसे कहें कि ऐसा कोई रास्ता आज भी मौजूद है तो? तब आप हमसे पूछेंगे कि बताओ भला कितने लोग उस रास्ते से स्वर्ग पहुंचे हैं तो इसका जवाब है कि एक भी नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि स्वर्ग तक जाने का रास्ता तो है लेकिन वो है आधा-अधूरा। इस रास्ते को तैयार करने की ज़िम्मेदारी पांडवों ने उठाई थी लेकिन यह कार्य इतना मुश्किल था कि उन्होंने इसे बीच में ही छोड़ दिया। क्या है पूरी कहानी और कहाँ है यह रास्ता, आज हम इस लेख में आपको ये सारी जानकारी देने वाले हैं।

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बाथू की लड़ी

भारत के पंजाब राज्य के तलवाड़ा से चौतीस किलोमीटर दूर एक डैम स्थित है। नाम है पोंग डैम। इस डैम की एक झील के बीचो बीच आपको आठ मंदिरों की एक शृंखला नजर आएगी। जी हाँ! झील के बीचो बीच। ये मंदिर साल के आठ महीने पानी में डूबे रहते हैं और सिर्फ चार महीने ही इन मंदिरों में जाया जा सकता है। 

दूर से देखने पर यह मंदिर आपस में किसी माला की तरह पिरोयी हुई नजर आती हैं। यहाँ कुल आठ मंदिर हैं और मंदिर की दीवारों पर भगवान गणेश और माता काली की आकृति उकेड़ी हुई है। मंदिर के अंदर भगवान विष्णु और शेषनाग की प्रतिमा है। मंदिरों की अनुमानित उम्र 5000 वर्ष बताई जाती है। मंदिर को बाथू की लड़ी कहने की वजह यह है कि ये मंदिर बाथू नामक पत्थर से बने हुए हैं और लड़ी वहाँ मौजूद आठ मंदिरों का सूचक है। इन मंदिरों के बगल में ही एक बहुत लंबा सा खंभा है। इस खंभे के अंदर 200 सीढ़ियाँ मौजूद हैं। इन्हीं सीढ़ियों के बारे में कहा जाता है कि यह सीढ़ियाँ स्वर्ग तक जाने के लिए बनाई जा रही थीं। 

किसने और क्यों तैयार किया बाथू की लड़ी 

मान्यता है कि पांडव जब अज्ञातवास में रह रहे थे तब उन्होंने यहाँ पर भी कुछ समय गुजारा था और भगवान की पूजा करने के लिए इन मंदिरों का निर्माण किया था। बाद में जब महाभारत का युद्ध खत्म हुआ और पांडवों को यह पता चला कि उनका धरती पर समय पूरा हो चुका है तो उन्होंने सशरीर स्वर्ग जाने की तैयारी शुरू कर दी। कहते हैं कि पांडवों ने स्वर्ग जाने के लिए सबसे पहले एक रास्ता बनाने का सोचा था जिसका नतीजा आज हमारे सामने बाथू की लड़ी के रूप में मौजूद है। लेकिन यह प्रक्रिया इतनी मुश्किल थी कि पांडवों ने इसे बीच में ही छोड़ दिया और पैदल ही हिमालय की तरफ कूच कर गए।

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बाथू की लड़ी अब पर्यटन स्थल

साल के चार महीने यानी कि मार्च से लेकर जून तक के समय के दौरान बाथू की लड़ी से पानी बाहर आ जाता है। ऐसे समय में दूर-दराज से लोग इस जगह को देखने आते हैं। हालांकि मंदिर जब पानी में डूबा रहता है तब नाव से भी सैलानी इसके दर्शन करने आते हैं। मंदिर के आसपास टापू जैसा इलाक़ा है जिसे रेनसर के नाम से जाना जाता है। यहाँ एक गेस्ट हाउस भी मौजूद है। ऐसे में अगर आप इस इलाके के आसपास मौजूद हों या फिर इस इलाके में जाने की सोच रहे हैं तो कोरोना के नियमों का पालन करते हुए बाथू की लड़ी जरूर जाएँ और स्वर्ग की सीढ़ियों का आनंद लें।

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