बसवा जयंती 2021 (Baswa Jayanti)
साल 2021 में 14 मई को भारत समेत कई अन्य देशों में रह रहे लिंगायत समाज के लोगों द्वारा विश्वगुरु बसवेश्वरा जी की जयंती मनाई जाएगी। इसे बसवा जयंती भी कहा जाता है। इस दिन सभी लोग विश्वगुरु बसवेश्वरा को श्रद्धांजलि देते हैं क्योंकि उनका भारतीय समाज में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है जिसकी वजह से सभी उनका अत्यधिक आदर करते हैं और उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में शामिल करने की कोशिश करते हैं। आज अपने इस लेख में हम बसवा जयंती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी आपको देंगे।
बसवा जयंती- बसवेश्वरा का जन्म
विश्वगुरु बसवेश्वर का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनका जन्म 1131 ईस्वी में बागेवाड़ी में हुआ था जो कि अविभाजित कर्नाटक के बीजापुर जिले में स्थित हुआ करता था। यह लिंगायत संप्रदाय के संस्थापक संत है जिन्हें भक्ति भंडारी, बसल और विश्वगुरु भी कहा जाता है। आपको बता दें कि लिंगायत संप्रदाय पहले वैदिक धर्म को ही मानता था।
बसवा जयंती क्या है
मुख्य रूप से बसवा जयंती को लिंगायत समुदाय द्वारा मनाया जाता है। भारत के राज्य कर्नाटक में इस दिन का बड़ा महत्व है, साथ ही महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश में भी बसवा जयंती को मनाया जाता है। कर्नाटक में इस दिन अवकाश होता है। 12 शताब्दी के समाज सुधारक बसवेश्वरा जी की याद में इस दिन को लिंगायत लोगों द्वारा पर्व के रूप में मनाया जाता है।
बसवेश्वरा का समाज में योगदान
बसवा जयंती पर लोग विश्वगुरु बसवेश्वरा की शिक्षाओं को याद करते हैं। उन्होंने आडंबरपूर्ण क्रियाकलापों को मनुष्य के जीवन से हटाकर मानसिक पवित्रता को सबसे श्रेष्ठ माना। उन्होंने लोगों को सच्चाई से भक्ति मार्ग पर चलने का संदेश दिया। उन्होंने ध्यान और पूजा को सरल बनाने का प्रयास किया और एक ईश्वर की उपासना का समर्थन किया। वह समाज से भेदभाव को खत्म करना चाहते थे। उन्होंने समाज में स्त्रियों को बराबरी का दर्जा देने की भी कोशिश की। वह जाति प्रथा को समाप्त करना चाहते थे और सबको एक रूप से देखते थे, शायद यही वजह है कि उस समय समाज के निचले तबके के लोगों ने उनका अनुसरण किया।
समाज सुधारक के रूप में योगदान
विश्वगुरु बसवा का आध्यात्मिक अनुशासन अचरा यानि सही तरह से व्यवहार करना, अरिवु अर्थात सत्य का ज्ञान और अनुभव पर आधारित था। यानि वो अपने अच्छे कर्मों से ईश्वरीय अनुभव प्राप्त करने पर जोर देते थे। उनका मानना था कि व्यवहार की सच्चाई ही व्यक्ति को ईश्वरीय अनुभव करा सकती है। इस प्रकार उन्होंने अपने विचारों से 12 वीं शताब्दी में धार्मिक और सामाजिक क्रांति को जन्म देने का काम किया।
संत गुरु बसवेश्वरा के द्वारा दिखाया गया पथ लिगंगयोग (परमात्मा के मिलन) के समग्र दृष्टिकोण को दर्शाता है। इसके अनुसार भक्ति, क्रिया और ज्ञान को बहुत ही उचित तरीके से संतुलित करते हुए अपने जीवन को सुखद बनाया जाता है।
प्रधानमंत्री के रूप में भी किया काम
यहां आपको यह भी जानकारी दे दें कि 1157-1167 ईस्वी में कलचुरी राजा बिज्जला ने प्रारंभिक अवस्था में विश्वगुरु को अपना कणिका यानी लेखाकार बनाया था और उसके बाद उन्होंने उन्हें अपने यहां प्रधानमंत्री के पद पर भी नियुक्ति किया।
समाज सुधार के लिए आंदोलन
इसके अलावा आपको बता दें कि बसवेश्वर ने समाज की विभिन्न बुराइयों के खिलाफ आवाज़ उठाई और आंदोलन शुरू किया जिससे कि वह परंपरावादी समाज में व्यापक बदलाव लाने में सफल रहे। जैसा कि बताया जा चुका है कि वह जाति, पंथ और लिंग के भेदभाव को दूर करना चाहते थे। उनके प्रयासों ने उस दौर के समाज में क्रांतिकारी बदलाव किये, उनके अनुयायी उनकी स्पष्ट सोच से आकर्षित होते थे और समाज सुधार के कार्यों में उनका साथ देते थे। उन्होंने उस दौर में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों और कुरीतियों को भी खत्म करने की कोशिश की जो कि एक बेहद सराहनीय बात थी।
अनुभाव मंतपा (Anubhava Mantapa)
- बसवेश्वर ने अनुभाव मंतपा की स्थापना की थी जिसका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक सिद्धांतों के अलावा आध्यात्मिक सिद्धांतों व सामाजिक समस्याओं के बारे में चर्चा करने के लिए एक सामान्य मंच बनाया गया था।
- जानकारी दे दें कि हमारे देश भारत की यह अत्यधिक महत्वपूर्ण और सबसे पहली संसद थी जिसमें सभी कल्याणकारी योजनाओं के बारे में चर्चा होती थी और समाज के गणमान्य नागरिक भी इसमें शामिल हुआ करते थे। उस संसद में समाजवादी सिद्धांतों पर चर्चा की जाती थी जिससे कि लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना हो सके।
- वहां पर होने वाली शरणों की सभी चर्चाओं को वचना (Vachnas) के रूप में लिखा गया जो कि कन्नड़ भाषा में नवीन साहित्यिक के रूप में जाना जाता है।
बसवा जयंती 2021 (Baswa Jayanti): विश्वगुरु बसवेश्वर के सिद्धांत
बसवेश्वर ने जिन दो महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक सिद्धांतों के बारे में जानकारी दी वह निम्नलिखित है-
1. कायाका (ईश्वरीय कार्य)
इस सिद्धांत के अनुसार उनका कहना था कि समाज में रहने वाले हर व्यक्ति को अपनी पसंद और इच्छा अनुसार काम करना चाहिए एवं उस काम को अपने पूरी कोशिश और ईमानदारी के साथ करने की कोशिश करनी चाहिए। इसका यह अर्थ है कि हर व्यक्ति को अपनी रूचि के अनुसार कार्य करना चाहिए और उस काम को पूरा करने में वह किसी प्रकार की कोई कोताही ना बरते। बसवेश्वरा जी ने सत्यनिष्ठा पर बहुत जोर दिया।
2. दसोहा (समान वितरण)
उनके द्वारा दिए गए इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक समान कार्य के लिए समान आय को महत्व दिया गया था। इसके अलावा उनका यह कहना था कि जो भी व्यक्ति अपनी मेहनत से कमाई करता है तो उसे वह अपने वर्तमान जीवन पर खर्च कर सकता है लेकिन वह अपने भविष्य के लिए किसी भी प्रकार की कोई धन या फिर संपत्ति को संरक्षित नहीं करे बल्कि उसे चाहिए कि वह समाज में रहने वाले दूसरे गरीबों को उसमें से कुछ हिस्सा दे दे। इस प्रकार अगर हर व्यक्ति अपनी आय में से कुछ हिस्सा ज़रूरतमंद लोगों को दे दे तो समाज में बहुत सारे लोगों की समस्याएं दूर हो सकती हैं।
निष्कर्ष
बसवा जयंती को लिंगायत समाज में बहुत अहम माना जाता है। बसवेश्वरा जी ने अपनी स्पष्ट और कल्याणकारी सोच से समाज में जो सकारात्मक परिवर्तन किये उन प्रयासों ने उस दौर में नव चेतना जगाई। समाज के हर तबके के लोगों ने उनका साथ दिया और उनका समर्थन किया। आज भी उनकी शिक्षाएं प्रासंगिक हैं और लोगों को उनकी सीख को अपने जीवन में उतारना चाहिए। उनका कर्मक्षेत्र दक्षिण भारत था इसलिए इस दिन का दक्षिण भारत में खास स्थान है।
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