बसंत पंचमी का त्योहार इस साल 29 जनवरी बुधवार के दिन मनाया जा रहा है। यह त्योहार हर साल माघ शुक्ल पंचमी के दिन मनाया जाता है। इस दिन विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है। हालांकि इस दिन से जुड़ी कई सारी पौराणिक कथाएं हैं। ऐसा मानते हैं कि इस दिन मां सरस्वती का जन्म हुआ था। आइए जानते हैं कुछ पौराणिक कहानियों के बारे में-
बसंत पंचमी/ सरस्वती पूजा का मुहूर्त
पूजा मुहूर्त |
10:47:38 से 12:34:27 |
अवधि |
1 घंटे 46 मिनट |
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कालिदास को दिखाया था ज्ञान का रास्ता
त्योहार से जुड़ी एक पौराणिक कथा कवि कालिदास की है। कथा के अनुसार, कालिदास एक साधारण इंसान थे और धोखे से उनकी शादी एक राजकुमारी से करवा दी गई थी। राजकुमारी कभी भी कालिदास का सम्मान नहीं करती थी। एक दिन निराश कालिदास अपनी जिंदगी से परेशान होकर जान देने की कोशिश की लेकिन उससे ठीक पहले, देवी सरस्वती उनके सामने दिखाई दी। उन्होंने कालिदास से नदी में डुबकी लेने के लिए कहा। कालिदास ने भी वैसा ही किया जैसे उसे करने को कहा गया। नदी से एक बुद्धिमान, जानकार और सभ्य इंसान बाहर आया। जो बाद में एक प्रसिद्ध कवि बना। यही कारण है कि इस दिन माता सरस्वती की पूजा की जाती है ताकि वह भक्तों को ज्ञान का उपहार दे सके।
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ब्रह्मा जी ने दिया था जन्म
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान ब्रह्मा जी ने समस्त संसार की रचना की। उन्होंने मनुष्य, जीव-जन्तु, पेड़-पौधे बनाए लेकिन फिर भी उन्हें अपनी रचना में कमी लगी। इसलिए ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे चार हाथों वाली एक सुंदर स्त्री प्रकट हुई। उस स्त्री के एक हाथ में वीणा, दूसरे में पुस्तक, तीसरे में माला और चौथा हाथ वर मुद्रा में था। ब्रह्मा जी ने इस सुंदर देवी से वीणा बजाने को कहा। जैसे ही उन्होंने वीणा बजायी ब्रह्मा जी के बनाई हर चीज में मानो सुर आ गया। इसके बाद ब्रह्मा जी ने उन्हें वीणा की देवी सरस्वती का नाम दे दिया। वह दिन बसंत पंचमी का था। यही कारण है कि हर साल बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती का जन्मदिन मनाया जाने लगा और उनकी पूजा की जाने लगी।
कामदेव को श्राप से मिली थी मुक्ति
ऐसा माना जाता है कि यह दिन श्रृंगार रस से जुड़ा हुआ है जो प्रेम का प्रतीक भी है। यह वह दिन है जब देवी रती अपने पति कामदेव को भगवान शिव द्वारा राख में बदलने पर 40 दिन की कठिन तपस्या में लीन हो गई थी। उसकी तपस्या बाद में रंग लाई और इसलिए उसके पति को अभिशाप से पुनर्जीवित किया गया। बसंत पंचमी के दिन ही भगवान शिव ने कामदेव को वापस जीवनदान दिया। यही वजह है कि इस दिन प्यार और इच्छा के देवता कामदेव की उनकी पत्नी के साथ पूजा की जाती हैं।
श्री कृष्ण ने दिया था वरदान
कुछ लोककथाओं के अनुसार, जब देवी सरस्वती ने भगवान कृष्ण को पहली बार देखा तो वह उनके रूप पर मोहित हो गई थी। वह भगवान कृष्ण को पति के रूप में पाने की इच्छा करने लगीं थीं। हालांकि भगवान कृष्ण तो राधा रानी के प्यार में समर्पित थे इसलिए उन्होंने देवी सरस्वती को वरदान दिया कि ज्ञान की इच्छा रखने वाले हर शख्स को माघ माह की शुक्ल पंचमी को देवी सरस्वती का पूजन करना होगा। इसके बाद खुद भगवान कृष्ण ने सबसे पहले सरस्वती की पूजा की थी। सृष्टि निर्माण के लिए मूल प्रकृति के पांच रूपों में से सरस्वती एक है, जो वाणी, बुद्धि, विद्या और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी है।