अन्नपूर्णा जयंती हिंदू कैलेंडर के अनुसार मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इस दिन को माता अन्नपूर्णा को समर्पित किया गया है। इसी दिन मां अन्नपूर्णा का जन्म हुआ था। अन्नपूर्णा जयंती भारतीय संस्कृति में शुमार प्रमुख जयंतियों में से एक मानी जाती है।
सभी जयंती में इस जयंती का विशेष महत्व बताया जाता है। इस दिन के बारे में ऐसी मान्यता है कि जो कोई भी भक्त अन्नपूर्णा जयंती के दिन सच्चे दिल से मां को याद करते हुए व्रत रखता है और विधि-विधान उनकी पूजा करता है उनके घर में कभी भी खाने-पीने की कोई कमी नहीं होती है और उनका घर हमेशा सुख संपत्ति से भरा रहता है।
इस वर्ष कब मनाई जाएगी अन्नपूर्णा जयंती?
अन्नपूर्णा जयंती, बुधवार, 30 दिसंबर 2020
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – दिसम्बर 29, 2020 को 07:54 बजे (सुबह)
पूर्णिमा तिथि समाप्त – दिसम्बर 30, 2020 को 08:57 बजे (सुबह)
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अन्नपूर्णा जयंती पूजन विधि
- इस दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद अपनी रसोई घर की साफ सफाई करें।
- इसके बाद गंगा जल से पूरे घर को और रसोई घर को भी पवित्र करें।
- इसके बाद गैस स्टोव, चूल्हे आदि की पूजा करें और मां अन्नपूर्णा की आराधना करें।
- इस दिन भोजन बनाने वाले चूल्हे को हल्दी, कुमकुम, चावल, पुष्प, धूप, और दीपक से पूजन करें।
- इस दिन की पूजा रसोई घर में ही करनी चाहिए। रसोई घर में ही माता पार्वती और भगवान शंकर जी की कोई मूर्ति या तस्वीर लाकर उनकी पूजा करें।
- इस दौरान भगवान शिव और मां अन्नपूर्णा से कामना करें कि आपके घर में कभी भी अन्न की कोई कमी ना रहे।
- इसके पश्चात माता के मंत्र का पाठ करें और कथा सुने।
- पूजा के बाद घर में बना हुआ भोजन गरीबों और जरूरतमंदों को खिलाएं।
- अन्नपूर्णा जयंती का मुख्य उद्देश माना जाता है कि इंसानों को अन्न की अहमियत हो। लोग अन्न की अहमियत को समझें और उसका आदर करें और खाना बर्बाद ना करें।
- मान्यता के अनुसार जब भगवान शिव काशी में लोगों की आत्मा को मोक्ष प्रदान कर रहे थे तब माता पार्वती ने अन्नपूर्णा का रूप धारण कर मृतकों के साथ आए जीवित लोगों के खान-पान की व्यवस्था देखी थी।
- आरती से पूजा का समापन करें और प्रसाद लेने के बाद पूजा पूरी करें।
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जाने भगवान शिव ने क्यों ली थी मां अन्नपूर्णा से अन्न की भिक्षा?
एक बार पृथ्वी पर सूखा पड़ गया। पृथ्वी पूरी तरह से बंजर हो गई। फसलें, फलों आदि की पैदावार जो थी वह नष्ट हो गई और आगे कोई पैदावार हुई नहीं। इस स्थिति में पृथ्वी पर जीवों के सामने जीवन का संकट आ गया। तब भगवान शिव ने पृथ्वी वासियों के कल्याण के लिए भिक्षुक का स्वरूप धारण किया और माता पार्वती ने मां अन्नपूर्णा का अवतार लिया।
इसके बाद भगवान शिव ने मां अन्नपूर्णा से भिक्षा में अन्न मांगे। इस अन्न को लेकर भगवान शिव पृथ्वी लोक पर गए और सभी प्राणियों में इसे बाँट दिया। इसके बाद धरती पर एक बार फिर से धन-धान्य हो गया। बताया जाता है इसी के बाद से ही मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि को अन्नपूर्णा जयंती मनाई जाने के विधान की शुरुआत हुई।
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अन्नपूर्णा जयंती के दिन जरूर करें ये काम
- इस दिन खासकर हमें अन्न का अनादर नहीं करना चाहिए।
- इसके अलावा ऐसी मान्यता है कि इस दिन रसोईघर, गैस, चूल्हे, आदि का पूजन करने से घर में कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होती और घर पर हमेशा अन्नपूर्णा देवी की कृपा बनी रहती है।
अन्नपूर्णा जयंती के दिन मां अन्नपूर्णा की पूजा की जाती है और इस दिन खासकर दान पुण्य का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन घर की महिलाएं चूल्हे पर चावल और मिठाई का प्रसाद बना कर घी का दीपक जलाती हैं। अन्नपूर्णा जयंती के दिन बिना नमक का भोजन ग्रहण करना चाहिए।
अन्नपूर्णा जयंती व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है जब पृथ्वी लोक पर जल और अन्न सभी खत्म हो गया। पृथ्वी पर सूखा पड़ गया था। ऐसे में सभी प्राणी अन्न और जल के ना मिलने से मरने की कगार पर आ गए। इसके बाद पृथ्वी पर लोग ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु की आराधना करने लगे।
भगवान विष्णु ने ब्रह्मा लोक और बैकुंठ लोक जाकर इस समस्या का हल निकालने के लिए भगवान ब्रह्मा जी और विष्णु जी से अनुरोध किया। तब भगवान ब्रह्मा और विष्णु सभी ऋषियों के साथ मिलकर कैलाश पर्वत पर पहुंचे। वहां पहुंचकर सभी देवताओं और ऋषियों ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि, ‘हे प्रभु! पृथ्वीलोक के इंसान बेहद ही संकट से अपने दिन गुजार रहे हैं। इसलिए कृपा करके अपना ध्यान तोड़िए और जागृत अवस्था में आइए।’
तब प्रभु शिव ने अपनी आंखें खोली और सभी से वहां आने का कारण पूछा। सभी लोगों ने बताया कि पृथ्वी पर कैसे अन्न और जल की कमी हो गई है जिससे लोगों के बीच त्राहि मची है। तब भगवान शिव ने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा कि, आप लोग धीरज रखिए मैं कुछ करता हूं।
इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती पृथ्वी लोग पर आये। जहाँ माता पार्वती ने अन्नपूर्णा का रूप धारण किया और भगवान शिव ने भिक्षुक का रूप धारण किया। इसके बाद भगवान शिव ने माता अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगी। माता ने भगवान को भिक्षा दी जिसे जाकर उन्होंने सभी पृथ्वी वासियों में वितरित कर दिया। इसके बाद पृथ्वी पर अन्न-जल की कमी पूरी हो गई।
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अन्न-जल पाकर सभी प्राणी मां अन्नपूर्णा की जय-जयकार करने लगे। मान्यता है कि तभी से अन्नपूर्णा जयंती की शुरुआत हुई।
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