हरिद्वार कुंभ 2021 : जानिए कैसे तय होती है कुंभ की तिथि, स्थान और क्या है कुंभ की कथा

साल 2021 में 1 अप्रैल से 28 अप्रैल के बीच हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन होने जा रहा है। लेकिन क्या आपको कुंभ से जुड़ी हर जानकारी है कि कुंभ स्नान को कुंभ क्यों कहते हैं? कैसे फैसला होता है कि कुंभ स्नान इस बार कहाँ होने वाला है? या फिर महाकुंभ 12 सालों में क्यों होता है? और कुंभ और महाकुंभ के बीच अंतर क्या है?और कुंभ स्नान के पीछे की कथा क्या है?अगर नहीं है तो आप बिलकुल सही जगह आये हैं क्योंकि आज हम इस लेख में कुंभ से जुड़ी हर जानकारी आपको देने वाले हैं। लेकिन उससे पहले जान लेते हैं हरिद्वार कुंभ में शाही स्नान की तिथि क्या है।

आपको बता दें कि सनातन धर्म के अनुसार हरिद्वार में कुम्भ शुरू हो चुका है और अब तक लाखों लोग यहाँ स्नान कर के वापस लौट भी चुके हैं। लेकिन सरकार ने 1 अप्रैल से लेकर 30 अप्रैल तक कुंभ के लिए एक नोटिफिकेशन जारी किया है जिसमें अलग-अलग तिथियों पर शाही स्नान की जानकारी दी गयी है। आपको बताते चलें कि पहला शाही स्नान 11 मार्च को सम्पन्न हो चुका है।

दूसरा शाही स्नान :  हरिद्वार कुंभ में दूसरा शाही स्नान 12 अप्रैल को होने जा रहा है जो कि हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र अमावस्या और सोमवती अमावस्या के दिन होगा।

तीसरा शाही स्नान : हरिद्वार कुंभ में तीसरा शाही स्नान 14 अप्रैल को मेष संक्रांति के दिन होगा।

चौथा शाही स्नान : हरिद्वार कुंभ में चौथा और आखिरी शाही स्नान चैत्र पूर्णिमा के दिन 27 अप्रैल को होना है। इस दिन को अमृत योग का दिन भी माना जाता है।

कुंभ की पौराणिक कथा 

‘कुंभ’ का असल अर्थ होता है ‘कलश’ या फिर कहें तो ‘घड़ा’। कुंभ स्नान की कहानी भी एक घड़े से ही जुड़ी हुई है। घड़ा अमृत का। जी हाँ, जब दुर्वासा ऋषि के श्राप की वजह से देवता कमजोर हो गए और राक्षसों ने उन्हें युद्ध में पराजित कर दिया तो समस्त देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे और अपनी व्यथा सुनाई। भगवान विष्णु ने उनकी व्यथा सुनकर उन्हें समुद्र मंथन करने को कहा। तब भगवान श्री हरि विष्णु के कहे अनुसार देवताओं ने राक्षसों के साथ एक संधि की जिसके अनुसार अमृत की प्राप्ति के लिए देवता और असुर एक साथ समुद्र मंथन करेंगे। 

समुद्र मंथन शुरू हुआ लेकिन जब उसमें से अमृत कलश प्रकट हुआ तो भगवान इंद्र के बेटे जयंत ने अपने पिता के इशारे पर अमृत कलश को उठा लिया और वहां से भाग निकले। यह देख कर राक्षसों के गुरु शंकराचार्य ने राक्षसों से जयंत को पकड़ कर अमृत कलश छीन लाने को कहा। राक्षसों ने जयंत को तो पकड़ लिया लेकिन अमृत कलश छीनने के लिए उन्हें देवताओं के साथ युद्ध करना पड़ा। 

देवता और असुरों के बीच यह युद्ध बारह दिनों तक चला। इसी युद्ध या फिर कहें तो संघर्ष के दौरान अमृत कलश से अमृत की कुछ बूँदें पृथ्वी लोक पर तीन नदियों जगहों में छलकी। तब से इन्हीं तीन नदियों के तट पर कुंभ का आयोजन किया जाता है। ये तीन नदियां हैं – गंगा गोदावरी और शिप्रा। अमृत की पहली बूंद प्रयाग में गिरी, दूसरी हरिद्वार में, तीसरी उज्जैन में और चौथी नासिक में। यही वजह है कि इन चार स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता है।

शास्त्रों के अनुसार पृथ्वी लोक का एक वर्ष भगवान के लिए एक दिन के समान होता है इसलिए कुम्भ का आयोजन भी प्रत्येक 12 साल में होता है। आपको बता दें कि कुंभ भी 12 होते हैं जिनमें से चार का पृथ्वीलोक पर आयोजन होता है और बाकी आठ का देवलोक में आयोजन होता है।

कैसे निर्धारित होती है कुंभ की तिथि? 

कुंभ की तिथि और जगह ग्रहों की स्थिति से निर्धारित होती है। ख़ास कर के बृहस्पति और सूर्य की स्थिति बहुत मायने रखती है। अमृत कलश को पाने के लिए जब देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष चल रहा था तब अलग-अलग देवताओं ने अमृत कलश का बचाव किया था। जैसे कि चन्द्रमा देवता ने अमृत को बहने से रोका था, बृहस्पति ने युद्ध के दौरान कलश को छिपा कर रखा था, सूर्य देवता ने कलश को टूटने से बचाया था और शनि देवता ने कलश की इंद्र भगवान के कोप से रक्षा की थी। ऐसे में जब-जब इन सभी ग्रहों का संयोग सही राशियों में होता है तब-तब कुंभ का आयोजन किया जाता है।

कुंभ की जगह कैसे निर्धारित की जाती है?

कुम्भ की जगह भी ग्रहों के संयोग से ही निर्धारित की जाती है। जैसे कि हरिद्वार में कुंभ का आयोजन तब होता है जब सूर्य मेष राशि में स्थित हो और बृहस्पति कुम्भ राशि में विराजमान हों। प्रयागराज में कुंभ का आयोजन तब होता है जब सूर्य मकर राशि में गोचर कर रहे हों और बृहस्पति वृषभ राशि में। जब सूर्य मेष राशि में हो और बृहस्पति सिंह राशि में हो तब उज्जैन में कुंभ का आयोजन किया जाता है और जब बृहस्पति सिंह राशि में प्रवेश करें या फिर अमावस्या के दिन बृहस्पति, चंद्रमा और सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करते हैं तब नासिक में कुंभ का आयोजन किया जाता है।

क्या होता है कुंभ, अर्धकुंभ, पूर्ण कुंभ और महाकुंभ?

कुंभ : कुंभ का आयोजन प्रत्येक तीन वर्षों में प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में किया जाता है।

अर्धकुंभ : अर्ध कुंभ का आयोजन प्रत्येक छह साल बाद होता है। इसका आयोजन बस प्रयागराज और हरिद्वार में ही होता है।

पूर्णकुंभ : पूर्ण कुंभ का आयोजन प्रत्येक 12 साल बाद होता है। यह क्रमशः प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में हर 12 साल बाद किया जाता है।

महाकुंभ : महाकुंभ का आयोजन 144 सालों में एक बार होता है। सीधे शब्दों में कहें तो 12 पूर्ण कुम्भ के बाद एक महाकुंभ होता है। पिछली बार यह महाकुंभ साल 2013 में आयोजित हुआ था और अब लगभग 136 सालों बाद आयोजित होगा। 

हम उम्मीद करते हैं कि हमारा यह लेख आपकी जानकारी बढ़ाने में काफी मददगार साबित हुआ होगा। अगर ऐसा है तो आप इसे अन्य शुभचिंतकों के साथ साझा कर सकते हैं।

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