ज्योतिष शास्त्र पुरातन काल से हमारे ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा रहा है, जिसकी रचना सदियों पहले ऋषि-मुनियों द्वारा की गई थी। ज्योतिष में सौरमंडल के ग्रह-सितारों की गतिविधियों का अध्ययन किया जाता है और ग्रह-सितारों के अध्ययन करने वाले शास्त्र को ही ज्योतिष शास्त्र कहते हैं।
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कई बार ऐसा समय आता है जब “क्या ज्योतिष पर विश्वास करना चाहिए?”, “ज्योतिषशास्त्र कैसे हमारे जीवन पर प्रभाव डालता है” आदि जैसे प्रश्न हमारे मन में आते हैं। अगर आपके मन में भी कभी इस तरह के सवाल आए हैं, तो आज हम अपने इस विशेष लेख में आपको ज्योतिष शास्त्र से जुड़े उन तमाम ज़रूरी सवालों के स्पष्ट रूप से जवाब देंगे, जिनके बारे में जानकर यकीनन आप हैरान हो जाएंगे।
ज्योतिष शास्त्र के तीन स्तंभ
ज्योतिष शास्त्र के सबसे अमूल्य तीन स्तंभ होते हैं। जो कुछ इस प्रकार हैं:
- होरा ‘गणित’
- संहिता
- फलित
नोट: हालांकि कई ज्योतिषी सिद्धांत, संहिता और फलित को ज्योतिष शास्त्र के तीन स्तंभ मानते हैं।
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वैदिक ज्योतिष में भी बदलते दौर के साथ आए हैं कई बदलाव
आज से कई साल पूर्व जाएं तो, उस दौर के कई वैदिक शास्त्रों में भी इस बात का उल्लेख मिल जाएगा कि एक समय था जब बीजगणित, रेखागणित और खगोल विज्ञान ये सभी ज्योतिष की ही शाखाएं हुआ करती थीं।
आज ऐसे लोगों की संख्या लगातार बढ़ने लगी है, जिनके मन में ज्योतिष विद्या को लेकर संशय और अविश्वास की भावना घर कर चुकी है। अगर आपके मन में भी ज्योतिष और उसकी विश्वसनीयता को लेकर कभी भी किसी भी तरह के सवाल उठे हैं तो अंत तक ज़रूर पढ़ें क्योंकि आज हम आपको आपके सभी संभावित सवालों के जवाब देने का प्रयास करेंगे।
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सवाल 1 : ज्योतिष का धर्म से क्या संबंध है ?
शास्त्रों में ज्योतिष को वेदों के नेत्र की संज्ञा दी गई है। वेद और धर्म को समझने के लिए सबसे पहले मनुष्य को ज्योतिष शास्त्र को समझने की जरूरत है। वेदों में ज्योतिष विज्ञान पर संपूर्ण चर्चा की गई है। लेकिन सवाल यह उठता है कौन से ज्योतिष विज्ञान की ?
यहाँ पढ़ें ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान व भाग्य से सीधा संबंध।
- ज्योतिष का ऋग्वेद, अथर्ववेद और यजुर्वेद से संबंध
विद्वानों के अनुसार ऋग्वेद में ऐसे 30 श्लोकों का वर्णन आपको मिल जाएगा, जो स्पष्ट रूप से ज्योतिष से ही संबंधित हैं। वहीं अथर्ववेद में भी आपको 162 और यजुर्वेद में 44 श्लोक मिल जाएंगे।
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- ज्योतिष का वेदांगों से संबंध
ज्योतिष विज्ञान को इन छः वेदांगों में शामिल किया गया है। जो कुछ इस प्रकार से हैं:
- शिक्षा
- कल्प
- व्याकरण
- निरुक्त
- छंद
- ज्योतिष
- समय के साथ बदलती गई ज्योतिष विज्ञान की ज़रूरत
फलित ज्योतिष के अंतर्गत भविष्यफल, राशिफल, जन्म कुंडली और हस्तरेखा विज्ञान आता है। उसी की मदद से ज्योतिषाचार्य जातक की कुंडली का अध्ययन कर उसके भाग्य, भविष्य और जीवन में आ रही समस्याओं का समाधान करने में सक्षम रहते हैं।
पौराणिक काल में ज्ञानी लोग ज्योतिष शास्त्र की मदद मोक्ष और ध्यान के लिए, सही दिशा व स्थान का चयन कर उसके अनुसार मंदिर, मठ, गुरुकुल, आश्रम, घर, कुटिया आदि बनाने के लिए लेते थे।
इसी वैदिक ज्ञान ने भारत को ही नहीं बल्कि विश्व को एक से बढ़कर एक खगोलशास्त्री और ज्योतिषी दिए हैं। इन नामों की लिस्ट में आज भी वराह मिहिर, गर्ग, आर्यभट्ट, भृगु, बृहस्पति, कश्यप, पराशर, पित्रायुस, बैद्यनाथ आदि ज्ञानियों के नाम विख्यात हैं।
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- ज्योतिष के 18 महर्षि प्रवर्तक
इनके दौर में ज्योतिष विज्ञान के अंतर्गत ही खगोल विज्ञान हुआ करता था। कई ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक ज्योतिष के महर्षि प्रवर्तकों की संख्या 18 है। महर्षि कश्यप के मतानुसार इनके नाम क्रमशः सूर्य, पितामह, व्यास,वशिष्ठ, अत्रि, पराशर, कश्यप, नारद, गर्ग, मरीचि, मनु, अंगिरा, लोमेश, पौलिश, च्यवन, यवन, भृगु एवं शौनक हैं।
- ज्योतिष का गीता से संबंध
हिंदू धर्म विशुद्ध रूप से कर्म प्रधान है, भाग्य प्रधान नहीं। इसलिए ही गीता, उपनिषद एवं वेद आदि सभी पौराणिक ग्रंथों एवं धर्म शास्त्रों में केवल और केवल कर्म को आधार बनाने की ही शिक्षा दी गई है और सूर्य को सृष्टि का आत्मा कारक कहा गया है।
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि यह संसार एक उल्टे पेड़ की भांति है। जिसकी शाखाएं नीचे और जड़ें सतह से ऊपर की ओर हैं। यदि आप प्रकृति से कुछ मांगना चाहते हैं तो आपको ऊपर की ओर प्रार्थना करनी होगी क्योंकि सतह के नीचे से आपको कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है और ज्योतिष विज्ञान भी ठीक इसी प्रकार से कार्य करता है जिसमें मनुष्य का मस्तक ज्योतिष की जड़ें हैं।
निष्कर्ष: ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि हमारे ग्रंथों, शास्त्रों आदि में कर्म को ही ज्योतिष का असली स्वरूप बताया गया है। असल में ज्योतिष विज्ञान बहुत व्यापक है। ज्योतिष विज्ञान को आज के दौर में समझना मुश्किल है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि आज ज्योतिष विज्ञान विरोध करने का नहीं बल्कि समझने का विषय है।
सवाल 2 : ज्योतिष विद्या को मानना चाहिए या नहीं ?
वैदिक शास्त्रों में जिस ज्योतिष विद्या के बारे में बताया गया है, उसका ज्ञान शुरुआती दौर में केवल राजाओं, विद्वानों, पंडितों, आचार्यों, ऋषि-मुनियों, दार्शनिकों और विज्ञान की समझ रखने वालों के बीच ही सीमित हुआ करता था। ये वर्ग ज्योतिष विज्ञान का प्रयोग मौसम की सटीक जानकारी के लिए, वास्तु की जानकारी के लिए, ग्रहों-सितारों की गति की वजह से होने वाले परिवर्तनों की जानकारी के लिए, शुभ समय व मुहूर्त की जानकारी के लिए किया करते थे। इस ज्योतिष विद्या के प्रयोग से ये विद्वान उस दौर में अपने राज्य व अपने लोगों को प्राकृतिक आपदाओं से बचाया करते थे और किसी भी आयोजन के लिए सही तिथि सुनिश्चित करते थे।
इसके बाद इस विद्या की क्षमता और इसकी संभावित सकारात्मक शक्ति से अन्य लोग अवगत हुए और इस तरह यह ज्ञान धीरे-धीरे विद्वानों से साधारण लोगों के बीच पहुंचने लगा।
निष्कर्ष : पौराणिक ज्योतिष विद्या का असली स्वरूप वर्तमान में कई भिन्न-भिन्न रूपों से प्रचलित हो गया है। पौराणिक काल से ही ज्योतिष विज्ञान पूरी तरह तथ्यों और सत्यता पर टिका हुआ है, जिसे उस जमाने में वराह मिहिर, आर्यभट्ट, भृगु, कश्यप, पराशर, आदि जैसे कई ज्ञानियों ने स्वयं परखते हुए सत्यापित किया है।
सवाल 3 : क्या मानव जीवन पर ग्रहों का कोई प्रभाव पड़ता है ?
प्रकाशमान अंतरिक्ष पिंड को नक्षत्र कहते हैं। सूर्य भी एक नक्षत्र ही है। धरती पर सर्वाधिक प्रभाव सूर्य का ही पड़ता है। सूर्य के बाद सर्वाधिक प्रभाव चंद्रमा का पड़ता है। इनके बाद क्रमशः मंगल, गुरु, बुध और शनि का प्रभाव पड़ता है। ग्रहों का पूरी धरती पर प्रभाव पड़ता है । धरती के जिस हिस्से पर किसी खास ग्रह का प्रभाव देखने को मिलता है, वहां पर क्षेत्र विशेष में बदलाव देखने को मिलता है।
धरती के उत्तरी और दक्षिणी धुव्र का प्रभाव पूरी धरती पर पड़ता है। पृथ्वी भी एक हद तक सभी चीजों को अपनी ओर आकर्षित करती है। समुद्र में ज्वार भाटा आना भी सूर्य और चंद्रमा के आकर्षण शक्ति की वजह से होता है। पूर्णिमा और अमावस का भी धरती पर प्रभाव पड़ता है।
हम जब प्रभावों की चर्चा करते हैं तो इसका अर्थ यह होता है कि एक जड़ या निर्जीव वस्तु चाहे वो चंद्रमा हो, उसका प्रभाव किसी दूसरी निर्जीव वस्तु पर पड़ता है। हमारे मन, कर्म, वचन और विचारों को हम अपने नियंत्रण में रख सकते हैं।
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