सोमवार-23 नवंबर 2020 को अक्षय नवमी और जगद्धात्री पूजा मनाई जाएगी। जहाँ अक्षय नवमी को बहुत सी जगहों पर आंवला नवमी के नाम से जाना जाता है, वहीं जगद्धात्री पूजा बंगाल में मनाया जाने वाला प्रमुख त्योहार है। इसे दुर्गा पूजा की ही तरह चार दिनों (सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी) तक मनाया जाता है। तो आइये अब इन दोनों ही पूजा का सही नियम जानते हैं और साथ ही आपको बताते हैं इन दोनों पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है?
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अक्षय नवमी
अक्षय नवमी को कई जगहों पर आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है। अक्षय नवमी दिवाली के 8 दिन बाद मनाई जाती है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी के रूप में मनाए जाने का विधान है। इस वर्ष अक्षय नवमी 23 नवंबर, सोमवार के दिन मनाई जाएगी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। इसके अलावा इस दिन भगवान विष्णु की पूजा किये जाने की भी मान्यता है। अक्षय नवमी के दिन लोग स्नान, दान, पूजा, इत्यादि करते हैं जिससे उन्हें उनके समस्त मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।
अक्षय नवमी सोमवार, नवम्बर 23, 2020 को
अक्षय नवमी पूर्वाह्न समय – 06:50 ए एम से 12:07 पी एम
अवधि – 05 घंटे 17 मिनिट्स
नवमी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 22, 2020 को 10:51 पी एम बजे
नवमी तिथि समाप्त – नवम्बर 24, 2020 को 12:32 ए एम बजे
अक्षय नवमी व्रत का महत्व
आंवला नवमी का पर्व आंवले से संबंध रखता है। माना जाता है कि, इसी दिन भगवान कृष्ण ने कंस का वध किया था और अधर्म को खत्म करके धर्म की स्थापना की थी। आंवले को अमरता का फल भी कहा जाता है। ऐसे में इस फल के बारे में ऐसा कहा जाता है कि जो कोई भी इंसान आंवले का सेवन करता है, और अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करता है उसे उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। इस दिन आंवले के पेड़ के पास विशेष तरह की पूजा अर्चना की जाती है।
कैसे करें आंवले के पेड़ की पूजा? जानिए पूजन विधि
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और पूजा करने का संकल्प लें।
- इसके बाद प्रार्थना करें कि आंवले की पूजा से आपके जीवन में सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का वरदान मिले।
- आंवले के पेड़ के निकट पूर्व की ओर अपना मुख करके उसमें जल डालें।
- आंवले के पेड़ की सात बार परिक्रमा करें और कपूर से आरती करें।
- इसके बाद आंवले के पेड़ के नीचे निर्धनों को भोजन कराएं और स्वयं भी वहीं भोजन करें।
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अक्षय नवमी की व्रत कथा से होती है संतान सुख की प्राप्ति
काशी नगर में एक निसंतान धर्मात्मा वैश्य रहा करते थे। उनके जीवन में धन तो था लेकिन इसके बावजूद वो हमेशा दुखी रहते थे। एक दिन वैश्य की पत्नी से उनकी पड़ोसन ने कहा कि अगर तुम किसी पराए लड़के की बलि भैरव भगवान के नाम से चढ़ा दो तो तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति अवश्य होगी।
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लेकिन वैश्य को जब इस बारे में पता चला तो उन्होंने इस काम को करने से मना कर दिया। हालांकि उनकी पत्नी के मन में पुत्र प्राप्ति के लिए लालच बढ़ गया था, जिसके चलते वह इस मौके की तलाश में लग गयी। एक दिन एक कन्या को उसने कुएं में गिरा कर भैरव देवता के नाम पर बलि दे दी। इस हत्या के परिणाम स्वरूप वैश्य की पत्नी को पूरे शरीर में कोढ़ हो गया साथ ही उस लड़की की प्रेतात्मा उसे सताने लगी। अपनी पत्नी की यह हालत देखकर वैश्य ने उनसे पूछा कि, आखिर यह सब क्यों हुआ है? तब उसकी पत्नी ने उन्हें सारी बात बता दी। तब वैश्य ने अपनी पत्नी से कहा गोवध, ब्राह्मण वध और बाल वध करने वालों का इस संसार में कोई भला नहीं कर पाया है, इसलिए तुम गंगा के तट पर जाकर भगवान का भजन करो और गंगा में स्नान करो, तभी तुम्हें इस कष्ट से छुटकारा मिल सकता है।
वैश्य की पत्नी अब पश्चाताप करने लगी और रोग मुक्त होने के लिए मां गंगा की शरण में चली गई। तब माँ गंगा ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवले के पेड़ की पूजा कर आंवले का सेवन करने की सलाह दी। जिसके बाद महिला ने ठीक वैसा ही किया। इस पूजन और व्रत के प्रभाव से महिला कुछ समय में रोग मुक्त हो गई। इसके अलावा व्रत के प्रभाव से कुछ दिन बाद ही उसे संतान सुख की प्राप्ति भी हुई। माना जाता है कि तभी से हिंदुओं में इस व्रत को करने का प्रचलन शुरू हुआ।
इस दिन पानी में आंवले का रस मिलाकर नहाना होता है शुभ
अक्षय नवमी के दिन पानी में आंवले का रस मिलाकर नहाने की परंपरा बताई गई है। कहा जाता है कि ऐसा करने से हमारे आसपास जो भी नकारात्मक ऊर्जा मौजूद होती है वह खत्म हो जाती है। साथ ही हमारे आसपास सकारात्मक ऊर्जा और पवित्रता बढ़ने लगती है। इसके अलावा आंवला हमारी त्वचा के लिए भी काफी फायदेमंद होता है। आंवले के रस का जो कोई भी इंसान प्रतिदिन सेवन करता है उसकी त्वचा की चमक अवश्य बढ़ती है।
आंवले के सेवन से होते हैं सेहत को अनेकों फ़ायदे
- धार्मिक महत्व के साथ-साथ आंवले का सेहत से जुड़े भी अनेकों फायदे होते हैं।
- आंवले में भरपूर मात्रा में अमीनो एसिड पाया जाता है जो हमारे दिल और त्वचा के लिए काफी फायदेमंद होता है।
- आंवला बालों को चमकदार और टूटते बालों से मुक्ति के लिए बेहद फायदेमंद बताया गया है।
- नियमित रूप से आंवले का जूस बालों में लगाने से काफी फायदा मिलता है।
- अगर किसी को पेट से जुड़ी कोई समस्या है तो आंवला उनके लिए बेहद फायदेमंद बताया गया है।
- इससे कब्ज़ जैसी बीमारी से भी मुक्ति मिलती है।
आंवला पेड़ पूजा का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो कोई भी इंसान अक्षय नवमी या आंवला नवमी के दिन आंवला के पेड़ की पूजा करते हैं उनपर माँ लक्ष्मी अवश्य प्रसन्न होती हैं और उनकी समस्त मनोकामना भी अवश्य पूरी करती हैं। ऐसी मान्यता है कि आंवला के पेड़ में साक्षात भगवान विष्णु वास करते हैं लेकिन अक्षय नवमी के दिन इस पेड़ में अन्य सभी देवताओं का भी वास माना गया है। यानी कि अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ के पूजन से सभी देवी देवताओं की पूजा के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।
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जगद्धात्री पूजा
जगद्धात्री माता मां दुर्गा का एक स्वरूप हैं। शरद ऋतु की शुरुआत में जगद्धात्री माता की पूजा का महत्व और विधान बताया गया है। पूरे भारत देश में पश्चिम बंगाल दुर्गा माता की पूजा के लिए बेहद ही प्रसिद्ध माना गया है। इस दिन दूर-दूर से लोग माता के स्वरूप को देखने के लिए पश्चिम बंगाल जाते हैं। माँ जगद्धात्री तंत्र से उत्पन्न हुई हैं। इन्हें मां काली और मां दुर्गा का एक रूप माना जाता है। इसके अलावा जगद्धात्री माता को राजस्व एवं तामस का भी प्रतीक माना गया है।
जगद्धात्री पूजा सोमवार, नवम्बर 23, 2020 को
नवमी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 22, 2020 को 10:51 पी एम बजे
नवमी तिथि समाप्त – नवम्बर 24, 2020 को 12:32 ए एम बजे
जगद्धात्री पूजन विधि
इस दिन मां दुर्गा के पूजा की ही तरह पूजा की जाती है। पूजा का मुख्य मकसद इंसानों के अभिमान का नाश करना होता है। इस त्यौहार में जगद्धात्री देवी की एक बड़ी सी प्रतिमा को पंडाल में बैठाया जाता है। यह बिल्कुल दुर्गा पूजा जैसा प्रतीत होता है। माता की प्रतिमा को सुंदर लाल साड़ी, खूबसूरत गहने इत्यादि से सजाया जाता है। इसके बाद देवी की प्रतिमा को फूलों की माला से सजाया जाता है। इसके बाद नवरात्रि उत्सव के समान ही दिन का आयोजन किया जाता है।
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जगद्धात्री पूजा का इतिहास
मान्यता है कि इस त्यौहार की शुरुआत राम कृष्ण की पत्नी शारदा देवी ने रामकृष्ण मिशन में की थी। इस त्यौहार की शुरुआत के बाद दुनिया के हर कोने में मौजूद रामकृष्ण मिशन के सेंटर में इस त्यौहार को मनाया जाने लगा गया। इस त्यौहार को मां दुर्गा के पुनर्जन्म की खुशी में मनाते हैं। मानता है कि इस दिन माता पृथ्वी पर बुराई को नष्ट करने और अपने भक्तों को सुख शांति देने के लिए पुनर्जन्म लेकर आयीं थी।
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जगद्धात्री पूजा का पौराणिक महत्व एवं कथा
महिषासुर के आतंक की वजह से देवताओं का जीवन मुश्किल होने लगा था। जिसके चलते वह मां दुर्गा की शरण में जाते हैं और माता से महिषासुर के अंत के लिए प्रार्थना करते हैं। माता देवताओं की बात मानकर महिषासुर से युद्ध करने जाती हैं। लंबे युद्ध के बाद माता महिषासुर का वध कर देती हैं। जिसके बाद देवता वापस स्वर्ग में अपना आधिपत्य जमा लेते हैं। इससे देवताओं के अंदर घमंड का भाव आ जाता है और वह खुद को सर्वश्रेष्ठ समझने लगते हैं। ऐसे में उनके इस घमंड को तोड़ने के लिए यक्ष देव को देवताओं के पहले पूज्य मनाया जाता है। इससे देवताओं को अपना अपमान लगता है।
इसके बाद एक-एक कर के सभी देवता यक्ष देव के पास जाते हैं। यक्ष देव वायु देवता से एक सवाल करते हैं कि, आप क्या कर सकते हैं? घमंड में चूर वायु देव कहते हैं मैं कितने ही ऊंचे पहाड़ को पार कर सकता हूँ, बेहद तेज़ गति से ब्रह्मांड का चक्कर लगा सकता हूँ। तब यक्ष देव अति सूक्ष्म का रूप धारण करके उन से कहते हैं कि, इसे नष्ट करके दिखाइए लेकिन वायु देवता अथक कोशिश के बाद भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाते हैं।
इसी तरह से एक-एक करके सभी देव आते हैं और अंत में विफल हो जाते हैं। तब उन्हें इस बात का ज्ञान मिलता है कि उनके पास उनका कुछ भी नहीं है। तब यह माना जाता है कि जिस मनुष्य में अहम का भाव नहीं होता उन्हें ही माता की कृपा प्राप्त होती है।
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