अक्षय तृतीया की शुभता को दर्शाते हैं इस पर्व से जुड़े ये महत्वपूर्ण तथ्य

अक्षय तृतीया भारत के कई हिस्सों में आखा तीज के नाम से भी जानी जाती है। हिन्दू पंचांग में इस त्योहार को हर वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। अक्षय तृतीया को एक अबूझ मुहूर्त माना जाता है यानी कि आज का दिन अपने आप में एक स्वयं सिद्ध मुहूर्त है। यही वजह है कि आज के दिन किसी भी शुभ कार्य को प्रारम्भ किया जा सकता है। 

अक्षय का मतलब होता है जिसका कभी क्षय (नाश) न हो। यह भी एक वजह है कि इस दिन जातकों द्वारा शुरू किये गए कार्यों में उनको सफलता मिलने की असीम संभावनाएं होती हैं। 

आइये अब कुछ महत्वपूर्ण जानकारियों से समझने की कोशिश करते हैं कि सनातन धर्म में अक्षय तृतीया का इतना महत्व क्यों है। 

अक्षय तृतीया से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां

  • ऐसा माना जाता है कि ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतरण इसी दिन हुआ था। मान्यता है कि अक्षय तृतीया के पावन दिन को माता अन्नपूर्णा का भी जन्म हुआ था।
  • आज ही के दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार और चिरंजीवी महर्षि परशुराम का जन्म हुआ था इसलिए भारत के कई हिस्सों में आज के दिन को परशुराम जन्मोत्सव के तौर पर भी मनाया जाता है।
  • मान्यता ये भी है कि अक्षय तृतीया के दिन आज ही पांडवों के वनवास काल के दौरान भगवान सूर्य ने पांडवों को एक अक्षय पात्र दिया था जिसमें भोजन तब तक समाप्त नहीं होता था जब तक द्रोपदी भोजन ग्रहण न कर ले।
  • उत्तराखंड के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री बद्री नारायण धाम के कपाट भी आज ही के दिन खोले जाते है।
  • केवल अक्षय तृतीया के दिन ही वृंदावन के प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर में भगवान श्री कृष्ण के चरणों के दर्शन किए जा सकते हैं। बाकी दिनों में भगवान श्री कृष्ण के चरण कपड़े से ढक कर रखे जाते हैं।
  • मान्यता है कि वेदव्यास जी ने महाकाव्य महाभारत की रचना गणेश जी के साथ आज ही के शुभ दिन पर शुरू की थी। 
  • महर्षि भागीरथ जी की कठोर तपस्या के फलस्वरूप माँ गंगा का धरती पर अवतरण भी आज ही के दिन हुआ था।
  • लंकापति रावण द्वारा पराजित होने के बाद कुबेर ने आज के ही दिन माँ लक्ष्मी की तपस्या की थी जिससे प्रसन्न होकर माँ ने उन्हें धन का स्वामी बनाया और उन्हें वो खजाना प्राप्त हुआ था जिसे हम आम बोलचाल में ‘कुबेर का खजाना’ कहते हैं। 
  • महाभारत जैसे भयंकर युद्ध की समाप्ति भी आज के ही दिन हुई थी। आदि शंकराचार्य ने कनकधारा स्तोत्र की रचना भी इसी दिन की थी।
  • प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ऋषभदेव जी भगवान ने आज ही के दिन 13 महीने के कठिन उपवास का पारणा गन्ने के रस से किया था।
  • विश्वविख्यात जगन्नाथ यात्रा के लिए भगवान जगन्नाथ के सभी रथों को निर्माण कार्य भी आज से ही प्रारम्भ होता है।

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