हम दावे के साथ यह बात कह सकते हैं कि आपने आज तक अनेकों मंदिरों के बारे में सुना होगा लेकिन जिन मंदिरों के बारे में हम आपको आज बताने जा रहे हैं सुनने में यह जितने अजीबोगरीब लगेंगे यकीन मानिए उनसे जुड़ी परंपराएं उतनी ही अनोखी और निराली लगेगी। इस विशेष आर्टिकल में घर बैठे आज हम कुछ ऐसे मंदिरों के दर्शन कराएँगे जहां पर चमगादड़, मच्छरों, मेढ़कों और चूहों की पूजा की जाती है या उन मंदिरों को इन जानवरों के नाम से जाना जाता है।
चमगादड़ों के लिए प्रसिद्ध है यह मंदिर
चमगादड़ यानी बैट, जी हां वही बैट जिसकी वजह से कहा जा रहा है कि कोरोना वायरस नाम की यह महामारी फैली है। आपको जानकर अचरज होगा कि भारत में कई ऐसी जगह है जिन्हें चमगादड़ों के नाम से जाना जाता है। इनमें से पहली जगह बाली में स्थित है और इसे बैट केव (Bat Cave) यानी चमगादड़ों की गुफा के नाम से जाना जाता है। जानकार बताते हैं कि इस गुफा की नीचे एक नदी बहती है। चमत्कारी बात यह है कि, इस नदी से बहने वाले पानी से कहा जाता है कि बड़े से बड़ा घाव सही हो जाता है।
इतना ही नहीं चमगादड़ों के लिए जाने जानी वाली इस जगह पर चमगादड़ों की भरमार है। यही वजह है कि यहां पर हर साल ढेरों पर्यटक दूर-दूर से इन चमगादड़ों को देखने के लिए आते हैं।
बाली के अलावा बिहार में भी एक ऐसा मंदिर है जहां पर चमगादड़ों की पूजा की जाती है। यूं तो आमतौर पर चमगादड़ों को वैंपायर से संबंधित माना जाता है जिसकी वजह से इसे अशुभ मानते हैं लेकिन बिहार में चमगादड़ों की पूजा की जाती है और इन्हें संपन्नता का प्रतीक माना गया है। यही वजह है कि बिहार के वैशाली जिले में हजारों सैकड़ों की तादाद में चमगादड़ मौजूद हैं। इन चमगादड़ों को ना सिर्फ दूर-दूर से लोग देखने आते हैं बल्कि इनकी पूजा भी करते हैं। यहां के लोगों की ऐसी धारणा है कि यह चमगादड़ गांव वालों की रक्षा करते हैं और पूजा पाठ करने पर सुख समृद्धि का आशीर्वाद भी प्रदान करते हैं।
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आंध्र प्रदेश का मच्छरों वाला मंदिर
लीजिए अनोखे मंदिरों की इस कड़ी में जिस दूसरे मंदिर की हम आपको बात बताने जा रहे हैं वह है आंध्र प्रदेश में स्थित मच्छरों वाला मंदिर। इस मंदिर के पीछे ऐसी मान्यता है कि इसे एक डॉक्टर ने बनवाया था। कहा जाता है यहां पर मच्छरों की पूजा नहीं की जाती बल्कि लोगों को मच्छरों और उससे फैलने वाली बीमारियों से अवगत कराया जाता है। लोगों को जागरूक कराने के मकसद से साल 2008 में डॉक्टर एम सतीश कुमार ने इस मंदिर का निर्माण कराया था।
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मेंढक वाला मंदिर
अजीबोगरीब मंदिरों की कड़ी में जिस तीसरे मंदिर की हम बात कर रहे हैं वह है उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले में स्थित एक ऐसा अनोखा मंदिर जहां मेंढकों की पूजा की जाती है। जानकार बताते हैं कि यह मंदिर मंडूक तंत्र पर आधारित है और यहां भगवान शिव स्वयं मेंढक की पीठ पर विराजमान हैं। इस मंदिर की खासियत के बारे में बात करें तो यह मंदिर करीब 200 साल पुराना है और कहा जाता है इस मंदिर का निर्माण सूखे और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए करवाया गया था।
सिर्फ इतना ही नहीं इस खूबसूरत मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि, इस मंदिर में रखी शिवलिंग समय समय पर अपना रंग बदलती है और यह इकलौता ऐसा मंदिर है जिसमे नंदी खड़ी स्थिति में मौजूद हैं।
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मंदिर जहां चूहे लगाते हैं भोग
मच्छर, चमगादड़ और मेंढक के बाद अब बात करते हैं चूहों के मंदिर के बारे में। राजस्थान में करणी माता का मंदिर है कहा जाता है इस मंदिर में भक्तों को जो भोग दिया जाता है वह चूहों से झूठा कराया गया होता है। इस मंदिर को चूहों वाली माता के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर के बारे में लोगों के बीच ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में रहने वाले चूहे माता की संतान है और यही वजह है कि लोग इन चूहों को भी भक्ति भाव से देखते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
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