Matsya Purana: सनातन धर्म के अष्टादश पुराणों में से एक मत्स्य पुराण बेहद महत्वपूर्ण पुराण होती है। जिसमें लगभग 291 अध्याय के साथ 14 हजार श्लोक सम्मिलित हैं। इस पुराण का सीधा संबंध भगवान विष्णु के मत्स्य यानी मछली अवतार से हैं, जिसके कारण ही ये पुराण मत्स्य पुराण के नाम से विख्यात हुई। इस पुराण में महात्म्य के द्वारा भगवान विष्णु ने मत्स्या अवतार में राजा वैवस्वत मनु तथा सप्त ऋषियों को उपदेश दिये थे।
इन उपदेशों में ही दान-पुण्य, यज्ञ, तप, व्रत, राजधर्म का वर्णन, नवग्रहों के स्वरूपों का वर्णन, स्वप्न शास्त्र, शकुन शास्त्र, ज्योतिष रत्न विज्ञान, देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के स्वरूप का वर्णन, वास्तु शास्त्र, तारकासुर आख्यान, नरसिंह वर्णन, ऋषियों के संपूर्ण वंश का वर्णन, आदि का ज्योतिष अनुसार वर्णन किया गया है। ऐसे में आज हम इस लेख के माध्यम से ज्योतिष शास्त्र के सबसे महत्वपूर्ण अंग यानी सभी 9 ग्रहों के स्वरूपों के बारे में जानेंगे, जिनका वर्णन स्वयं भगवान विष्णु ने अपने इस मत्स्य पुराण में किया था।
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मत्स्य पुराण में स्पष्ट नवग्रहों के स्वरूप का वर्णन
- सूर्य :
ग्रहों के राजा सूर्यदेव की दो भुजाएं होती हैं और उनके दोनों हाथों में कमल सुशोभित हैं। वे स्वयं भी कमल के आसन पर विराजमान रहते हैं। उनकी आभा कमल के भीतरी भाग की भांति हैं। साथ ही वे सात घोड़ों एवं सात रस्सियों से जुते एक विशाल व भव्य रथ पर आरूढ़ रहते हैं।
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- चंद्रमा :
चंद्रमा गौरवर्ण हैं अर्थात उनकी काया सुंदर व रंग गोरा है। उनकी दो भुजाएं हैं और उनके एक हाथ में गदा और दूसरा हाथ वरदमुद्रा में है। वे सदैव श्वेत/ सफ़ेद वस्त्र धारण करते हैं। उनका वाहन अश्वयुक्त रथ है और उनके अश्वों का रंग भी श्वेत है।
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- मंगल :
मंगल की चार भुजाएं होती हैं और उनके चारों हाथों में क्रमश: शक्ति, त्रिशूल, गदा एवं वरद मुद्रा है। उनके शरीर के रोएं का रंग लाल हैं। मंगल लाल रंग की पुष्पमाला और लाल रंग के वस्त्र धारण करते हैं।
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- बुध :
बुध की चार भुजाएं हैं और उनके चारों हाथों में क्रमश: तलवार, ढाल, गदा और वरद मुद्रा है। वे पीले रंग की पुष्पमाला और पीले वस्त्र धारण करते हैं। उनके शरीर की आभा कनेर के पुष्प की भांति है। बुध देव सिंह की सवारी करते हैं।
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- गुरु बृहस्पति :
बृहस्पति को समस्त देवताओं के गुरु की उपाधि प्राप्त है, इस कारण इसे गुरु भी कहते हैं। इनकी चार भुजाएं है और चारों हाथों में क्रमश: दंड, रुद्राक्ष की माला, कमंडलु और वरद मुद्रा में है। इनके शरीर का रंग पीला है। वे स्वयं भी पीले रंग के वस्त्र धारण करते हैं।
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- शुक्र :
दानवों के गुरु शुक्राचार्य ही शुक्र हैं, जिनके शरीर का रंग श्वेत है। इनकी भी चार भुजाएं होती है और चारों हाथों में क्रमश: दंड, रुद्राक्ष की माला, कमंडलु और वरमुद्रा है। शुक्र श्वेत रंग के ही वस्त्र धारण करते हैं।
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- शनि :
शनैश्चर यानी शनि की आभा इंद्रनीलमणि (नीले रंग के नीलम मणि/रत्न) के समान है। शनि गृद्ध की सवारी करते हैं। इनकी भी चार भुजाएं है और वे चारों हाथों में क्रमश: धनुष, बाण, त्रिशूल और वरमुद्रा में रहते हैं।
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- राहु :
राहु का मुख अत्यंत भयावह व भयंकर होता है। ये नील रंग के विशालकाय सिंहासन पर विराजित रहते हैं। इनकी चार भुजाएं है और चारों हाथों में क्रमश: तलवार, ढाल, त्रिशूल और वरमुद्रा सुशोभित रहते हैं।
विस्तारपूर्वक पढ़ें ज्योतिष अनुसार राहु ग्रह और उनसे संबंधित अन्य जानकारी!
- केतु :
केतु कोई एक नहीं बल्कि अनेकानेक हैं और उन सबकी दो-दो भुजाएं हैं। वे अपने दोनों हाथों में गदा और वरमुद्रा धारण किए रहते हैं। उनके शरीर और वस्त्रों का रंग धूम्र (धुएँ के रंग की भांति) हैं। उनके मुख विकृत हैं और वे नित्य गृद्ध की सवारी करते हैं।
विस्तारपूर्वक पढ़ें ज्योतिष अनुसार केतु ग्रह और उनसे संबंधित अन्य जानकारी!
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Nice information
जय अम्बे मा
बहुत अछी जानकारी प्राप्त हुइ