सनातन धर्म में चार धाम की यात्रा का बड़ा महत्व है। यही वजह है कि सनातन धर्म के अनुयायियों की आस्था का सम्मान करते हुए उत्तराखंड सरकार ने 20 जून को दो चरणों में चार धाम यात्रा शुरू करने की घोषणा की थी। इसके लिए पहले चरण की यात्रा में 01 जुलाई की तारीख तय हुई थी। इस दौरान 01 जुलाई से उत्तराखंड के चमोली, रुद्रप्रयाग, और उत्तरकाशी के निवासी चार धाम यात्रा कर सकते थे। दूसरे चरण में 11 जुलाई से राजी के बाकी हिस्से में रह रहे लोगों को चार धाम के यात्रा की मंजूरी दी जानी थी।
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लेकिन सरकार की इस योजना पर फिलहाल उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कोरोना महामारी की वजह से रोक लगा दी है। कोर्ट ने आदेश दिये हैं कि इस दौरान श्रद्धालुओं के लिए ऑनलाइन स्ट्रीमिंग की व्यवस्था की जाये। हालांकि यह अंतिम फैसला नहीं है और इस पर अगली सुनवाई 07 जुलाई को होगी। इसके अलावा अगर हाई कोर्ट अपने फैसले पर अडिग रहता है तो आगे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया जा सकता है लेकिन इस घटनाक्रम के बाद और देश पर कोरोना के नए वेरिएंट डेल्टा प्लस का मँडराता खतरा, इस साल होने वाले चार धाम की यात्रा को लेकर नकारात्मक स्थिति पैदा कर रहा है।
जाहिर है कि आम लोग जो साल भर चार धाम की यात्रा की तिथि का इंतजार कर रहे थे उन्हें इस फैसले से निराशा जरूर हुई होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि सनातन धर्म में चार धाम की यात्रा को बहुत ही पवित्र माना गया है। क्या है सनातन धर्म के अनुयायियों के बीच चार धाम के यात्रा का महत्व, आज के लेख में हम आपको इसी की जानकारी देने वाले हैं।
चार धाम यात्रा का सनातन धर्म में महत्व
सनातन धर्म में चारों धाम को बहुत ही पवित्र माना गया है। मान्यता है कि जो भी जातक चार धाम की यात्रा करते हैं उन्हें जन्म और मृत्यु के दुष्चक्र से मुक्ति मिल जाती है। चार धाम की यात्रा पापनाशिनी मानी गयी है यानी कि इसके दर्शन से मनुष्य के इस जीवन के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। सनातन धर्म में यह मान्यता है कि यह वही जगह है जहां स्वर्ग और पृथ्वी एकाकार होते हैं।
उत्तराखंड में बसे चार धाम में सबसे ज्यादा महत्व बद्रीनाथ धाम का है। इसे आठवाँ बैकुंठ भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस धाम की स्थापना खुद प्रभु श्रीराम ने की थी। यहां भगवान विष्णु को नर नारायण के विग्रह रूप में पूजा जाता है। बद्रीनाथ धाम के दर्शन से पहले केदारनाथ धाम के दर्शन करने जरूरी होते हैं। जहां बद्रीनाथ में भगवान विष्णु विराजमान हैं, वहीं केदारनाथ में भगवान शिव विराजमान हैं। इसके अलावा दो और पवित्र धाम गंगोत्री और यमुनोत्री हैं। जहां गंगोत्री गंगा का उद्गम स्थल है, वहीं यमुनोत्री माता यमुना का उद्गम स्थल है।
हिमालय में स्थित इन चार मंदिरों के समूह को छोटा चार धाम के नाम से जाना जाता है। प्रत्येक वर्ष गर्मियों के मौसम में इन धामों की यात्रा शुरू होती है और शरद ऋतु में मंदिर के कपाट बंद होने के साथ ही चार धाम की यात्रा भी रुक जाती है।
कैसे होती है चार धाम की यात्रा?
चार धाम की यात्रा में सबसे पहले भक्त यमुनोत्री और फिर गंगोत्री के दर्शन करते हैं। इसके बाद यहां से पवित्र जल लेकर केदारनाथ धाम की ओर कूच किया जाता है जहां भगवान शिव को यह जल अर्पित किया जाता है। इसके बाद सबसे अंत में बद्रीनाथ धाम के दर्शन के साथ ही चार धाम की यात्रा सम्पन्न हो जाती है।
मुश्किल है रास्ता
छोटा चार धाम की यात्रा आसान नहीं है। बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड के चमोली में स्थित है। वहीं केदारनाथ रुद्रप्रयाग और गंगोत्री व यमुनोत्री उत्तरकाशी जिले में स्थित है। चार धाम की इस यात्रा में श्रद्धालुओं को लगभग चार हजार मीटर से भी ज्यादा ऊंचाई पर चढ़ना होता है। यह पूरा रास्ता कहीं आसान तो कहीं बेहद दुर्गम होता है। लेकिन फिर भी सनातन धर्म के अनुयायी प्रत्येक साल लाखों की संख्या में छोटा चार धाम की यात्रा करते हैं। एक अनुमान के मुताबिक गढ़वाल के इन तीन जिलों में चार छोटा धाम की वजह से लगभग 12 हजार करोड़ का व्यापार होता है।
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